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क्यों मनाया जाता है कंस वध मेला, क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी, यहां जानें सबकुछ

मथुरा के अंदर कंस वध मेला का आयोजन कंस टीले पर किया जाता है। उस दिन मेले में सभी युवक अपनी अपनी लाठियों को अच्छे से सजा कर कंस टीले तक जाते हैं। आगे -आगे कई झांकियां चलती हैं।

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Published on: 21 Nov 2020 3:08 PM GMT
क्यों मनाया जाता है कंस वध मेला, क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी, यहां जानें सबकुछ
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इस दौरान सुदामा-श्रीकृष्ण मिलाप जैसे कई दृश्यों का नाट्यरुपांतरण भी बीच -बीच में लोगों को देखने को मिलता है। कंस टीले पर कंस का पुतला होता है जिसे मार कर नष्ट किया जाता है।

मथुरा: गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी यूपी के मथुरा में कंस मेले का आयोजन किया जायेगा। इस बार ये मेला 22 नवंबर से 26 नवंबर तक आयोजित होगा। 24 नवंबर को कंस वध लीला होगी।

इस बार कोरोना काल में इस मेले का आयोजन किया जा रहा है। ऐसे में कोरोना से बचाव के नियमों का भी सख्ती के साथ पालन कराया जाएगा।

इस वर्ष कोई भी शोभा यात्रा नहीं निकलेगी और गाइड लाइन के अनुसार ही मेला सम्पन्न होगा। इस बार मेले में लोगों की संख्या को भी सीमित रखा गया है। कंस को झूरने (मारने) के लिए लाठियों को तेल पिलाया जा रहा है। मेले को लेकर चल रही तैयारियां पूर्ण हो चुकी है।

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Lord Krishna क्यों मनाया जाता है कंस वध मेला, क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी, यहां जानें सबकुछ (फोटो:सोशल मीडिया)

यहां जानें पूरा कार्यक्रम

22 नवम्बर को प्रातः 10 बजे पुण्य तीर्थ विश्राम घाट पर गौचारण लीला का आयोजन होगा और सांयकाल 4 बजे गोपाल बाग पुराने बस स्टैण्ड पर ठाकुर जी गौ चराने के लिए जायेंगे और यह लीला करके ठाकुर जी पुनः वापस आयेंगे।

23 नवम्बर 2020 को सांय 7 बजे पुण्य तीर्थ विश्राम घाट पर अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया जायेगा, जिसमें दिल्ली, आगरा, इटावा, के अलावा स्थानीय कवि भी मौजूद रहेंगे।

24 नवम्बर को सांय 4 बजे कंस टीले पर भगवान श्रीकृष्ण बलराम के इशारे पर चतुर्वेदी समाज के लोग कंस के पुतले को लाठियों से झूरेंगे और उसके बाद ठाकुर जी विश्राम घाट आयेंगे और उस दिन पहले ठाकुर जी की आरती होती है और तत्पश्चात् मां यमुना की आरती होती है।

26 नवम्बर को प्रातःकाल 11 बजे यमुना पूजन किया जाएगा। सांयकाल 6 बजे पुण्य तीर्थ विश्राम घाट पर भव्य दीप दान का आयोजन होगा।

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हर साल कार्तिक महीने में कंस मेला का आयोजन

प्राप्त जानकारी के अनुसार मथुरा में कंस मेला हर साल कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष के दसवें दिन लगता है। जिसमें भगवान श्री कृष्ण के द्वारा कंस के वध का मंचन किया जाता है।

इस दिन ऐसा लगता है जैसे मानो मथुरा फिर से उसी युग में चली गई हो। सब लोग पारंपरिक परिधान पहनते हैं। हाथों में चमकदार डंडे लिये एक यात्रा निकलती है। लोग नृत्य करते हुए आगे बढ़ते हैं, विजय गीत गाए जाते हैं। दूर-दूर केवल ढोल की थाप पर जयकारे ही सुनाई देते हैं।

कंस वध मेले में आखिर क्या-क्या होता है?

मथुरा के अंदर कंस वध मेला का आयोजन कंस टीले पर किया जाता है। उस दिन मेले में सभी युवक अपनी अपनी लाठियों को अच्छे से सजा कर कंस टीले तक जाते हैं। आगे -आगे कई झांकियां चलती हैं।

इस दौरान सुदामा-श्रीकृष्ण मिलाप जैसे कई दृश्यों का नाट्यरुपांतरण भी बीच बीच में लोगों को देखने को मिलता है। कंस टीले पर कंस का पुतला होता है जिसे मार कर नष्ट किया जाता है।

कंस के सिर को कंसखार पर तोड़ा जाता है। इसके बाद सब लोग विश्राम घाट पर आ जाते हैं और भगवान को विश्राम देकर उनका पूजन करते हैं। इस दौरान हर तरह भगवान श्री कृष्ण का जयकारा ही सुनाई पड़ता है।

पूरी मथुरा नगरी भगवान की स्तुति में लीन नजर आती है। ऐसा लगता है जैसे लोग पुराने समय में पहुंच गये हो।

Mathura क्यों मनाया जाता है कंस वध मेला, क्या है इसके पीछे की पूरी कहानी, यहां जानें सबकुछ (फोटो:सोशल मीडिया)

भगवान श्रीकृष्ण ने कैसे मारा था कंस को?

बता दें कि मल्ल युद्ध के अंदर जब भगवान श्रीकृष्ण ने एक -एक करके कंस के सभी पहलवानों को हरा दिया था तो चारों ओर भगवान श्री कृष्ण और बलराम की बहादुरी की चर्चा हो रही थी।

ये बात जब कंस के कानों तक पहुंची तो वह क्रोधित हो उठा। कंस ने अपने सेवकों से कहा कि वासुदेव के लड़कों को बाहर निकाल दो, नंद को बंदी बना लो और वासुदेव-देवकी को मार डालो। उग्रसेन मेरे पिता होने पर भी शत्रुओं से मिले हुए हैं। इसलिए उन्हें भी ज़िंदा मत छोड़ो।

अभी कंस आदेश दे ही रहा था कि इसी दौरान भगवान श्री कृष्ण उसके मंच पर पहुंच गए। कंस भी तलवार लेकर उनकी तरफ बढ़ा।

श्री कृष्ण ने गरुड़ की तरह कंस को पकड़ कर मुकुट गिरा दिया और फिर बालों से पकड़ कर जमीन पर पटक दिया। श्री कृष्ण ने कंस के ऊपर छलांग लगा दी और उनके कूदते ही कंस के प्राण निकल गये।

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