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125 साल की उम्र में भी न दवाई, न चश्मा, ये है सेहत का राज

वर्तमान बांग्लादेश के हबीबगंज जिले में जन्में स्वामी शिवानंद के आधार कार्ड में जन्मतिथि के कालम में 8 अगस्त 1896 छपा है। यानी वर्तमान में उनकी उम्र 125 वर्ष की है।

Roshni Khan
Published on: 8 March 2021 5:39 AM GMT
125 साल की उम्र में भी न दवाई, न चश्मा, ये है सेहत का राज
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125 साल की उम्र में भी न दवाई, न चश्मा, ये है सेहत का राज (PC: social media)

गोरखपुर: उम्र 125 वर्ष। दवा के नाम पर कुछ नहीं। बिना चश्मा फर्राटे से अखबार पढ़ते हैं। 50 देशों का भ्रमण। ये परिचय है वाराणसी के रहने वाले बाल ब्रह्मचारी स्वामी शिवानंद का। वे इन दिनों गोरखपुर के आरोग्य मंदिर में योग साधना सिखाने आए हैं। चुस्त दुरूस्त स्वामी की सुबह योग से होती है। पूरे दिन सिर्फ उबला भोजन, संयमित दिनचर्या, लोगों की सेवा उनकी सेहत का राज है। उनके शिष्य सबसे उम्र दराज व्यक्ति के दावे को लेकर गिनिज बुक ऑफ रिकॉर्ड में आवेदन की तैयारी में हैं।

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वर्तमान बांग्लादेश के हबीबगंज जिले में जन्में स्वामी शिवानंद के आधार कार्ड में जन्मतिथि के कालम में 8 अगस्त 1896 छपा है। यानी वर्तमान में उनकी उम्र 125 वर्ष की है। उम्र से चेहरे के सामने जो अक्स आता है, वह असहाय का ही हो सकता है। लेकिन इसके उलट स्वामी शिवानंद पूरी तरह स्वास्थ हैं। एक भी दवा नहीं खाते हैं। दिनचर्या की उनके सेहत का राज है। उनके भोजन से तेल गायब है। वे सिर्फ उबला ही ग्रहण करते हैं। आज भी वे बिना चश्मा के अखबार पढ़ते हुए नजर आते हैं। स्वामी शिवानंद अपने शिष्यों को गोरखपुर के आरोग्य मंदिर में योग साधना का पाठ पढ़ाने आए हैं। योग साधक स्वामी अपने शिष्यों के बुलावे पर 50 से अधिक देशों का भ्रमण कर चुके हैं।

'मिजाज कूल लाइफ ब्यूटीफुल'

अपने सेहत के सवाल पर स्वामी कहते हैं कि मिजाज कूल लाइफ ब्यूटीफुल। निंयत्रित उबला भोजन, संतुलित दिनचर्या, योग और व्यायाम सेहत का राज है। अभी कोई बीमारी नहीं है। अभी तो लंबा जीवन है। स्वामी बताते हैं कि रात के 8 बजे बिस्तर पर चला जाता हूं। सामाजिक कार्यों में पूरी तरह सक्रिय रहता हूं। प्रतिवर्ष 500 से अधिक कुष्ठ रोगियों का इलाज कराता हूं।

16 वर्ष की उम्र में पश्चिम बंगाल आ गए

स्वामी शिवानंद का जन्म सिलहट्ट जिला ( वर्तमान में बांग्लादेश का हबीबगंज जिला ) स्थित हरिपुर गांव में भगवती देवी एवं श्रीनाथ ठाकुर के घर हुआ था । घोर आर्थिक तंगी के कारण माता -पिता ने चार साल की उम्र में उन्हें बाबा ओंकारानंद गोस्वामी को दान कर दिया था। जब छह वर्ष के थे, तभी उनके माता - पिता और बड़ी बहन का निधन हो गया था। बाबा ओंकारानंद के सानिध्य में ही उन्होंने वैदिक ज्ञान हासिल किया और 16 वर्ष की उम्र में पश्चिम बंगाल आ गए।

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आरोग्य मंदिर का विदेशों में डंका

महानगर में प्राकृतिक चिकित्सा के केन्द्र आरोग्य मंदिर का डंका जर्मनी तक बज रहा है। जर्मनी की इंजीनियर जेनेलिया आरोग्य मंदिर में प्राकृतिक चिकित्सा विधि से इलाज करा कर जंगी हो चुकी हैं। वह खून में टॉक्सिन की मात्रा बढ़ने के कारण वह त्वचा के सूखने की बीमारी से जूझ रही थी। इससे उसे लिवर संक्रमण भी हो गया।

रिपोर्ट- पूर्णिमा श्रीवास्तव

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