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कोरोना के आनुवांशिक तत्वों की जानकारी से जल्द होगा खत्म, आसान होगा इलाज

कोरोना वायरस की रोकथाम में दुनिया भर के वैज्ञानिक जुटे हुए है। विभिन्न देशों के वैज्ञानिक इसके इलाज के लिए रिसर्च में लगे है और ब्रिटेन के कुछ वैज्ञानिक तो इस वैक्सीन के करीब भी पहुंच गए है और अब इसके मानव ट्रायल की तैयारी कर रहे है।

Vidushi Mishra
Published on: 23 April 2020 1:20 PM GMT
कोरोना के आनुवांशिक तत्वों की जानकारी से जल्द होगा खत्म, आसान होगा इलाज
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कोरोना के आनुवांशिक तत्वों की जानकारी से जल्द होगा खत्म, आसान होगा इलाज

लखनऊ। कोरोना वायरस की रोकथाम में दुनिया भर के वैज्ञानिक जुटे हुए है। विभिन्न देशों के वैज्ञानिक इसके इलाज के लिए रिसर्च में लगे है और ब्रिटेन के कुछ वैज्ञानिक तो इस वैक्सीन के करीब भी पहुंच गए है और अब इसके मानव ट्रायल की तैयारी कर रहे है। इधर, वैज्ञानिक इस खतरनाक वायरस के आनुवांशिक तत्वों की पहचान करने भी जुटे है। इन वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे कोरोना वायरस का इलाज आसान होगा वहीं अगर वायरस अपने स्वरूप को बदलता है तो उसकी भी जानकारी हो जायेगी।

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जीनोम सीक्वेंसिंग

अमेरिका के मैरीलैंड स्थित जान्स हापकिन्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों पीटर थाइलिन और थामिस मेहोक ने कहा है कि कोरोना के आनुवांशिक तत्वों की पहचान कर ली गई तो पूरी दुनिया में फैले इस वायरस के अलग-अलग रूपों की जानकारी हो सकेगी, जिससे इसके हर रूप की प्रभावी वैक्सीन बनाने में सहायता मिलेगी। हापकिन्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इन आनुवांशिक तत्वों को क्रमबद्ध करेंगे, जिसे जीनोम सीक्वेंसिंग कहा जाता है।

वायरस के आनुवांशिक तत्वों की क्रमबद्धता यानी जीनोम सीक्वेंसिंग किए जाने से उक्त वायरस के डीएनए व आरएनए में मौजूद आनुवांशिक सूचनाओं की जानकारी मिल जाती है।

कोरोना वायरस के प्रसार को गति

इसमे वैज्ञानिक यह जानकारी जुटा रहे है कि वायरस का विकास किस तरह से हो रहा है। इसके साथ ही अगर वायरस अपने रूप को बदल रहा है तो यह भी पता चल सकेगा कि वह कितने मरीजों को संक्रमित करने के बाद या कितने अंतराल पर अपना रूप बदल रहा है।

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एक हजार जीनोमों की पहचान की गई

साथ ही यह भी पता चल सकेगा कि गर्म जलवायु व ठंडी जलवायु वाले देशों में यह वायरस किस तरह का है। बता दे कि कोरोना वायरस के करीब एक हजार जीनोमों की पहचान की गई है।

दरअसल, जीनोम सीक्वेंसिंग के जरिए यह जाना जाता है कि दुनिया के किसी भी देश में अगर किसी मरीज में वायरस मिलता है तो यह पता चल जायेगा कि उक्त वायरस किस देश में पाए गए वायरस का रूप है, इससे उक्त व्यक्ति का इलाज उस देश में उपलब्ध इलाज की तर्ज पर किया जायेगा।

इसके साथ ही जीनोम सीक्वेंसिंग से यह भी जानकारी मिल सकती है कि किन खास परिस्थितियों या जलवायु में कोरोना वायरस के प्रसार को गति मिलती है।

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इसकी वैक्सीन बनाने में आसानी होगी

जाहिर है कि जब दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस की जीनोम सिक्वेंसिंग कर ली जायेगी तो न केवल इसकी वैक्सीन बनाने में आसानी होगी बल्कि इसकों रोका भी जा सकेगा।

हालांकि इसके लिए सभी देशों को कोरोना वायरस के संबंध में अपनी-अपनी पूरी जानकारी को साझा करना होगा और कोरोना वायरस के संबंध में सभी देश इसकी जानकारी आपस में साझा कर रहे है। क्योंकि इसके संबंध में जानकारी साझा करने के लिए किसी बड़ी प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं है।

मरीजों की नाक से मिले स्वाब के सैंपल से डीएनए सीक्वेंसर से आनुवांशिक तत्व अलग किए जाते हैं। जितने अलग-अलग स्थानों से सैंपल जुटाए जाते हैं, जीनोम सीक्वेंसिंग उतनी ही विस्तृत होती है। इस डाटा को डाटाबेस में अपलोड किया जाता है, जिससे वायरस के नए रूपों के बारे में पूरी दुनिया को बताया जाता है।

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Vidushi Mishra

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