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दर्दनाक हादसा: साइकिल पर परिवार के साथ छत्तीसगढ़ जा रहा था मजदूर, हादसे में गई जान
लॉकडाउन में साइकिल से छत्तीसगढ़ निकले एक मजदूर परिवार को लखनऊ के शहीद पथ पर किसी अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी। इस हादसे में मजदूर दंपत्ति ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। गंभीर रूप से घायल दोनों बच्चों का इलाज लोहिया अस्पताल में चल रहा है।
जयपुर: लॉकडाउन में साइकिल से छत्तीसगढ़ निकले एक मजदूर परिवार को लखनऊ के शहीद पथ पर किसी अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी। इस हादसे में मजदूर दंपत्ति ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। गंभीर रूप से घायल दोनों बच्चों का इलाज लोहिया अस्पताल में चल रहा है। मूल रूप से छत्तीसगढ़ का रहने वाला 35 साल का कृष्णा जानकीपुरम इलाके में झोपड़पट्टी में परिवार समेत रहता था। पति-पत्नी राजधानी लखनऊ में अलग-अलग जगह पर जहां काम मिलता था वहां मजदूरी करते थे।
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शुक्रवार को जहां महाराष्ट्र में ट्रेन से कटकर 16 मजदूरों की मौत हो गई, तो वहीं दूसरी ओर लखनऊ के शहीद पथ पर साइकिल से छत्तीसगढ़ लौट रहा एक परिवार हादसे का शिकार हो गया।कोरोना की वजह से मजदूरी बंद हो गई थी और खाना के लिए पैसे भी नहीं बचे थे, जिसके चलते दंपति अपने मासूम बच्चों को साइकिल से गांव जा रहे थे। इस हादसे में दंपति के 2 मासूम बच्चे बच गए हैं। बेटे का नाम निखिल है, जो महज डेढ़ साल का है, जबकि बेटी का नाम चांदनी है, जो सिर्फ तीन साल की है। इस हादसे में दोनों मासूम बच्चे घायल हो गए हैं। इनके सिर पर चोट आई है। इन मासूम बच्चों के सिर से मां-बाप का साया हमेशा के लिए उठ गया है। मासूम बच्चे अपने मां-बाप को याद करके रो और बिलख रहे हैं।
इस मिली परिवार को सूचना
मृतक की बहन तुलसी ने बताया कि जब उसने अपने भाई को फोन कर जानकारी लेना चाहा कि वह कहां पहुंचे हैं, तो फोन पुलिस वालों ने उठाया और कहा कि दुर्घटना हो गई है. आप लोग आकर बच्चों को ले जाइए. इसके बाद तुलसी ने लखनऊ में रह रहे अपने दूसरे भाई और भाभी को फोन किया। सूचना मिलते ही मृतक के भाई राम कुमार घटनास्थल पहुंचे। वहीं, पुलिस ने पोस्टमॉर्टम कराने के बाद शवों को परिजनों को सौंप दिया। मृतक की बहन तुलसी का कहना है कि सरकार बच्चों के लिए कुछ मदद दें हम लोग बहुत परेशान हैं।हम लोग अपने घर छत्तीसगढ़ जाना चाहते हैं। हमारे पास बच्चों के इलाज के लिए भी पैसे नहीं हैं।
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ऐसे किया अंतिम संस्कार
हादसे की सूचना पाकर कृष्णा के परिजन लखनऊ पहुंचे और शवों का अंतिम संस्कार कराया। कृष्णा के भाई राजकुमार के अनुसार लॉकडाउन के चलते कृष्णा के पास कोई काम नहीं था। उसके पास बचत के पैसे थे जो बीते दिनों खर्च हो चुके थे। राजकुमार के पास भी आर्थिक तंगी के चलते शवों के अंतिम संस्कार का पैसा नहीं था, तब कुछ मजदूरों ने चंदा करके 15 हज़ार रुपये जुटाए, जिसके बाद देर शाम गुलाला घाट पर दोनों का अंतिम संस्कार किया गया।
परिजनों का दावा
मृतक के परिजनों का यह भी दावा है कि मृतक प्रमिला ने 30 हजार से ज्यादा के गहने पहने हुए थे, लेकिन पोस्टमॉर्टम के बाद वे नहीं मिले। परिजनों ने बताया कि मृतक के बच्चों को खिलाने के लिए राशन और 2500 रुपये मिले हैं। साथ ही हमसे उन लोगों की सूची मांगी गई है, जो ट्रेन से अपने घर जाना चाहते हैं।