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लखनिया दरीः ये है गुमनाम टूरिस्ट स्टेशन, यहां की गुफाओं के रहस्य हैं गहरे
जहाँ पर प्राचीन काल में पत्थरों पर बने अवशेष और भित्ति चित्र आज भी मिलते है। ऐसा ही एक अनोखा झरना जो जिला मुख्यालय से करीब 58 किमी दूरी पर स्थित है लखनिया दरी झरना जो आज से समय मे हिल स्टेशन से कम नही है।
मिर्ज़ापुर:विंध्य पर्वत पर अद्भुत झरने आज भी मौजूद है । जहाँ पर प्राचीन काल में पत्थरों पर बने अवशेष और भित्ति चित्र आज भी मिलते है। ऐसा ही एक अनोखा झरना जो जिला मुख्यालय से करीब 58 किमी दूरी पर स्थित है लखनिया दरी झरना जो आज से समय मे हिल स्टेशन से कम नही है। प्राचीन काल मे राजा महाराजा के समय मे यहां आने जाने के लिए कोई मार्ग नही था। यहाँ पर केवल और केवल घनघोर जंगल था। इस जंगल मे बड़े बड़े विशाल जानवर रहते थे। बताते चले प्राचीन काल मे चुनार नगर था जहाँ पर समुद्री मार्ग से कलकत्ता महानगर व्यापार करने का प्रमुख स्थान था। प्राचीन काल मे व्यापार का केंद्र भी रह चुका है।
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पठारी मार्ग व्यापारियों के लिए सुगम मार्ग
यहाँ पर व्यापार के लिए लोग भारी संख्या में पैदल ऊंट,खच्चर से सामान लादकर क्रय विक्रय करने के लिए आते थे। सोनभद्र, झारखंड, मध्यप्रदेश के सिंगरौली , सीधी जिले तक से लोग पैदल सफर करके व्यापार करने आते थे । यह पठारी इलाका जंगल और झाड़ियो के खतरनाक रास्ते डरावनी और खौफ पैदा करने वाली होती थी ।
लेकिन यही पठारी मार्ग व्यापारियों के लिए सुगम मार्ग भी था। व्यापारियों के रास्ते मे एक झील पड़ती थी जिसका नाम लखनिया दरी था। लखनिया दरी झरने में बेहद साफ जल और भोजन करने के लिए उपयुक्त स्थान था। लेकिन यह मार्ग व्यापारियों के लिए बेहद खौफनाक था जहां पर केवल और केवल खौफ जर्रे जर्रे में तिलिस्म और पत्थरों का चटटान ही था ।
यह लखनिया दरी पहाड़ के दो दर्रो के बीच से निकली सबसे गहरी झील है। जिसका नाम आज भी इतिहास के पन्नो पर दर्ज है। इस तिलस्मी झरने से होकर व्यापारी जब गुजरते थे तो उनके मन मे भय बना रहता था। लेकिन सच कहें तो मजबूरी भी था यह मार्ग लोगो की दूरी को कम करता था। व्यापारियों को बनाने के लिए पर्याप्त पानी और पहाड़ होने के कारण जंगल से लकड़ियां भी मिल जाती थी। व्यापारी अपना भोजन बनाते और इन्ही पत्थरो पर विश्राम करते थे।
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झरने की कन्दराओं के भित्ति चित्रों में छिपा अद्भुत रहस्य
विन्ध्य पर्वत जो रहस्यो और तिलिस्म के लिए देश भर में सुविख्यात है। पर्वतों की घनघोर वादियों में लखनिया दरी में स्थित मनमोहक झरने में पहाड़ की कन्दराओं में बने भित्ति चित्र यहां जाने वाले सैलानियों को छिपे रहस्यो से कुछ बतलाती है । यह भित्ति चित्र आदिमानव काल से जुड़ी होने की चर्चा जोरों पर रहती है।
इन भित्ति चित्रो को देखकर आदिमानव काल के प्राचीन सभ्यता का पता चलता है। भित्ति चित्रों के बारे में जानकारी के लिए न्यूस्ट्रैक के रिपोर्टर ने आस पास के स्थानीय लोगो से बात करके जानना चाहा तो वे लोगों बताते है । प्राचीन काल मे बारिश के मौसम में एक ऐसी काली रात आयी थी जो सैकड़ों वर्ष पूर्व लखनिया दरी के झरने पर एक राजा अपनी लाव-लश्कर के साथ अपनी रानी को सैर सपाटे और आखेट कराने लाए थे।
पूरा राज्य बाढ़ से प्रभावित
वह मौसम बरसात का था पूरा विंध्य क्षेत्र उस समय बाढ़ की चपेट में था। पूरा राज्य बाढ़ से प्रभावित था। लेकिन वह राजा जिद्दी था और सैनिकों से तम्बू लगाने को कहा राजा के कहने पर सैनिको ने तम्बू लगाकर भोजन पानी के प्रबंध में जुट गए । लेकिन उसी समय अचानक आयी बाढ़ ने ऐसी अनहोनी घटित कर दिया। जिसके चलते राजा के सैनिक और हाथी-घोड़े इस पहाड़ के लखनिया दरी में समाहित होकर बह गए। लेकिन राजा अपनी रानी से बहुत प्यार करता था। राजा ने रानी को उसी वक्त इन्ही पहाड़ की कंदराओं में छिपा दिया।
राजा अपने लाव लश्कर को बचाने का प्रयत्न करने लगा लेकिन विफल हो गया। एक समय ऐसा आया कि राजा भी इसी झरने में काल की गाल में समा गए। बारीस थमी नही लगातार होती रही अंधेरा हो गया रानी अकेली बच गयी ।
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बचाओ-बचाओ कोई है हमारे राजा को बचाओ
रानी अपने राजा और सैनिकों को बचाने के लिए बहुत जोर जोर से आवाज लगाने लगी बचाओ-बचाओ कोई है हमारे राजा को बचाओ लेकिन घने जंगल के बीच गरज चमक के साथ पानी के आवाज ने रानी की चीख पुकार को दबा दिया। रात्रि का समय रानी इन्ही पहाड़ की कन्दराओं में रोती रही और पत्थरो पर अपने खून से चित्र बनाती रही। लेकिन राजा को बचाने कोई नही पहुचा।
एक समय ऐसा आने लगा जब पानी ऊपर झरने में भरने लगा और पानी इतना भर गया कि झरने के ऊपर से चलने लगा रानी अपने आपको बचाने का प्रयत्न करती रही लेकिन जब उन्हें लगा वह भी नहीं बचेंगी तो उन्होंने अपने खून से पहाड़ के चट्टान पर राजा, सैनिक, हाथी, घोड़ा की तस्वीरें उकेर दीं। जिससे लोगो को पता चल सके कि बाढ़ में फंसने की वजह से कोई जीवित नहीं बच सका था। भित्ति चित्र को देखकर पुरातत्व विभाग के अधिकारी भी इसे मानव के खून से बना हुआ बताते हैं।
अंग्रेजो के समय लखनिया झरने पर बना था तीन तखवा पुल
अंग्रेजी हुकूमत के दौर में सन 1827 में लखनिया दरी झरने पर व्यापारियों की सुगमता हेतु सोनभद्र, झारखंड, मध्यप्रदेश जाने के लिए कम समय का रास्ता लेकिन दो पहाड़ो के बीच इतनी बड़ी झील होने से जंगल का रास्ता था। जिसमे व्यापारी अपने को असुरक्षित महसूस करते थे। क्योंकि कभी कभी व्यापारियों को डाकुओ द्वारा जंगल भी लूट लिया जाता था।
व्यापारियों की दरख्वास्त पर अंग्रेजी हुकूमत ने सोनभद्र जाने के लिए तीन तखवा पुल बनाया । जिससे व्यापारियों को आने जाने में सुगम रास्ता मिल गया। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान लखनिया दरी झरने पर जाने के लिए कोई सुगम मार्ग नहीं था। लोग जंगल एवं पहाड़ों से होकर जाते थे। प्रथम पंचवर्षीय योजना में 1951 से 1956 के मध्य वाराणसी से सोनभद्र जाने के लिए सड़क का निर्माण कराया गया था। इसके बाद लखनिया दरी पर आने जाने का रास्ता सुगम हुआ।
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सैलानियों के लिए अद्भुत झरना
लखनिया दरी का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। पहाड़ की कंदराओं में काफी ऊंचाई से निकलने वाला जल झरने में गिरता है। जिसका शोर बहुत तेजी से होता है। झरने में जहाँ जल गिरता है वहां इतना तेजी से धारा प्रवाह होता है जिसको धुंआधार कहा जाता है। कोहरे और धुंध के समान झरने के आसपास मौसम देखने मे लगता है । यहाँ वास्तव में घने जंगलों के बीच चिड़ियों की चहचहाहट प्राकृतिक सौंदर्यता मनमोहक पहाड़ पर सैलानियों का तांता लगा रहता है।
इन्ही पहाड़ की कंदराओं में बरसात के मौसम में सैलानी बरसात के पानी से बचने के लिए कंदराओं का सहारा लेते है। जब बारिश बन्द हो जाती है तो बाहर निकलकर आने मौज मस्ती में जुट जाते है। इस झरने पर शैर करने के लिए दूर दूर से सैलानी आते है। यहां पर विदेशी सैलानी भी आकर शैर सपाटा करते है।
रिपोर्ट- बृजेन्द्र दुबे, मिर्ज़ापुर
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