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इस दिव्यांग से सीखें कैसे की जाती है मेहनत, लोग करते हैं सलाम

बीए पास करने के बाद अक्सर लोग जाॅब की तलाश में जुट जाते है। लेकिन यूपी के शाहजहांपुर में एक ऐसा शख्स है। जो बीए पास तो है लेकिन वह जाॅब नही बल्कि चाय की दुकान चला रहा है।

Shreya
Published on: 7 Feb 2020 7:32 AM GMT
इस दिव्यांग से सीखें कैसे की जाती है मेहनत, लोग करते हैं सलाम
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आसिफ अली

शाहजहांपुर: बीए पास करने के बाद अक्सर लोग जाॅब की तलाश में जुट जाते है। लेकिन यूपी के शाहजहांपुर में एक ऐसा शख्स है। जो बीए पास तो है लेकिन वह जाॅब नही बल्कि चाय की दुकान चला रहा है। खास बात ये है कि वह पोलियो ग्रस्थ है। उसके दोनों पैर बेकार है। वह चाये बनाने के बाद खुद अपनी ट्राई साईकिल से लोगों तक चाय पहुंचाने भी जाता है।

विकलांग शख्स बना कई के लिए प्रेरणा

इस दिव्यांग शख्स की हिम्मत, मेनहत और काम के प्रति लगन देखकर उनके प्रेरणा ले रहे है। लेकिन ये शख्स इतना ही कमा पाता है जिससे वह अपने परिवार का बमुश्किल भरण-पोषण कर पाता है। लेकिन अब उसकी ट्राई साईकिल बेकार हो चुकी है। वह नई ट्राई साईकिल नहीं ले पा रहा है।

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बचपन से ही पोलियो पीड़ित

ट्राई साईकिल पर बैठकर चाये बेच रहे इस शख्स का नाम 30 वरिष्ठ रतनेश कुमार पुत्र बेचेंलाल। ये मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर थाना मिर्जापुर के कुतलूपुर गांव मे रहते है। उनके पिता मेनहत मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालते रहे। उसके बाद वही जिम्मेदारी अब पैरों से विकलांग रतनेश के ऊपर आ गई है। हालांकि रतनेश भी अच्छी नौकरी करना चाहता था। इसलिए उसने बीए तक शिक्षा हासिल की थी। लेकिन पैरों ने उसका साथ नही दिया। क्योंकि उसको बचपन से ही पोलियो है।

विकलांग होने के बाद भी बन रहा मिसाल

हालांकि उसकी शादी को करीब सात साल बीत चुके है। उसके तीन बच्चे भी है। जिनको वह अच्छी शिक्षा देना चाहता है। उसके लिए वह पैरों से दिव्यांग होने के बाद भी मेनहत करके लोगों के लिए मिसाल बनता जा रहा है। रतनेश कुमार उन लोगों के लिए मिसाल है। जो लोग शहर मे काम न होने का हवाला देकर घरों मे बैठे रहते है या फिर शरीर के किसी भी अंग को खराब होने के बाद भीख मांगना शुरू कर देते है।

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पैर बेकार है तो क्या हुआ- रतनेश कुमार

दरअसल अपने तीन बच्चों का अच्छा भविष्य बनाने के लिए रतनेश कुमार कहते है कि पैर बेकार है तो क्या हुआ। मेनहत करेंगे तो उसका फल जरूर मिलेगा। इसलिए वह थाने के पास ही चाये का होटल लगाता है। चाये भी वह खुद बनाता है। चाये का आर्डर आने के बाद वह खुद अपनी ट्राई साईकिल से केतली मे भरकर चाये का आर्डर पहुंचाने के लिए निकल पङता है। फिर चाहे थाने की पुलिस हो या फिर आसपास के रहने वाले लोग। सभी इस रतनेश से ही चाये पीते है।

रतनेश ने newstrack.com से बात करते हुए कहा कि वह एक दिन में दो से तीन सौ रूपये तक की चाय बेंच लेते हैं। उससे वह अपने परिवार का भरण-पोषण से लेकर उतनी ही कमाई मे बच्चों की शिक्षा भी देनी होती है। उनका कहना है कि इतना पैसा नहीं कमा पाते है कि जिससे वह अपने लिए नई ट्राई साईकिल खरीद सके।

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रतनेश उन लोगों के लिए प्रेरणा बनता जा रहा है। जो थोड़ी सी परेशानी आने के बाद या फिर हार मान लेते है या फिर भीङ मांगना शुरू कर देते है। ऐसे मे जरूरत ऐसे लोग आगे है जो गरीबों का मसीहा होने का दम भरते है।

लोग भी करते हैं रतनेश की तारीफ

थाने के आसपास के रहने वाले लोग और रतनेश के होटल पर आने वाले ग्राहकों से newstrack.com ने बात की तो सभी इस दिव्यांग रतनेश की तारीफ करते देखे गए। उनका कहना है कि रतनेश बेहद सीधा साधा शख्स है। वह कभी किसी को गाली नही देता है और किसी से लङता नही है।

वह सिर्फ अपने काम से काम करता है और अपने काम के प्रति इमानदार रहता है। दोनो पैर से विकलांग होने के बाद लोग जीना छोड़ देते है। लेकिन रतनेश ने उन सबको गलत साबित कर दिया। क्योंकि रतनेश दोनो पैर से विकलांग होने के बाद भी खुद जी रहा है और पत्नी तीन बच्चों का पेट भी पाल रहा है। सलाम है इस तरह से मेनहत करने वाले हर रतनेश को।

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