साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं अपितु पूरक है: नीलिमा कटियार

उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ द्वारा ‘उत्तर प्रदेश दिवस’ के अवसर पर भारतेंदु नाट्य अकादमी के सभागार में पुस्तक विमोचन, संगोष्ठी, एवं साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन किया गया।

Aditya Mishra
Published on: 24 Jan 2020 2:55 PM GMT
साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं अपितु पूरक है: नीलिमा कटियार
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान, लखनऊ द्वारा ‘उत्तर प्रदेश दिवस’ के अवसर पर भारतेंदु नाट्य अकादमी के सभागार में पुस्तक विमोचन, संगोष्ठी, एवं साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम का शुभारंभ उच्च शिक्षा राज्य मंत्री नीलिमा कटियार, भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ. राजनारायण शुक्ल, वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ सूर्यप्रसाद दीक्षित, वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. हरिशंकर मिश्र, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के डाॅ शिशिर पाण्डेय द्वारा किया गया।

इस अवसर पर कश्मीर की पाण्डित्य परंपरा, कृष्ण चरित मानस और अरूणाॅचल प्रदेश की निषी लोककथाए पुस्तकों का संयुक्त रूप से विमोचन किया गया।

मुख्य अतिथि के रूप में इस अवसर पर उच्च शिक्षा राज्य मंत्री नीलिमा कटियार ने अपने संबोधन में कहा-‘‘भाषा मतलब सम्प्रेषण, सम्प्रेषण मतलब सामूहिकता और इसी सामूहिकता की प्रगति के प्रति भाषा संस्थान कटिबद्ध है, जो बहुत संतोषजनक है।

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साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं अपितु पूरक है।’’ उन्होंने कहा कि ‘उत्तर प्रदेश दिवस’ के अवसर पर भाषा संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के माध्यम से आज के युवा भी प्रदेश के साहित्यकारों द्वारा साहित्य के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए योगदान से प्रेरणा लेकर साहित्य सृजन में अपना भी अमूल्य योगदान देंगे।

समारोह में उत्तर प्रदेश एवं साहित्य के क्षेत्र में साहित्यिक विनिमय, सौहार्द, समृद्धि और समन्वय को सम्पुष्ट करने के लिए प्रो0 त्रिलोक चन्द्र गोयल, डाॅ. प्रणव शर्मा शास्त्री, डाॅ अनिल सिंह गहलौत, प्रो. उषा सिन्हा, प्रो. कैलाश देवी सिंह, डाॅ0 अनिल कुमार विश्वकर्मा, डाॅ0 बलजीत कुमार श्रीवास्तव, डाॅ. विवेक राठौड, डाॅ राजेश चन्द्र पाण्डेय, को भाषा सम्मान से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर ‘‘‘‘हिन्दी साहित्य के संवर्धन में उ.प्र. के साहित्यकारों का प्रदेय‘‘ विषय पर परिचर्चा का भी आयोजन किया गया।

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उप्र भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ राजनारायण शुक्ल ने कहा कि संस्थान प्रदेश की विभिन्न लोकबोलियों यथा ब्रज,बुन्देली , अवधी, तथा अन्य भारतीय भाषाओं के विकास, संवर्धन और उत्तरोत्तर प्रगति के लिए समर्पित है और निरंतर अपने सकारात्मक प्रयासों से उन्नति की ओर अग्रसर है।

वरिष्ठ रचनाधर्मी डाॅ. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने कहा कि हिन्दी साहित्य को सर्वाधिक सम्पुष्ट उत्तर प्रदेश के साहित्यकारों ने ही किया है। प्रदेश के बाहर के साहित्यकारों को तो सहजता से गिना जा सकता है। यह भी शोधपरक तथ्य है कि सूफी साहित्य सिर्फ और सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही लिखा गया।

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Aditya Mishra

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