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लखनऊ की बेटी बनी मिसाल: लाखों चेहरों की मुस्कान के लिए कर रही ये काम
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के प्रतिष्ठित ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज में 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली 18 साल छात्रा कृति घई अपने सराहनीय कार्यों से जिले का नाम रौशन कर रही हैं।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ (Lucknow) के प्रतिष्ठित ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज में 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली 18 साल छात्रा कृति घई (Kriti Ghai) अपने सराहनीय कार्यों से जिले का नाम रौशन कर रही हैं। कृति एक अच्छी डिबेटर है और कला व सांस्कृतिक गतिविधियों, जैसे रंगमंच, अभिरुचि, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं और भाषण आदि में गहरी रुचि रखती है।
कम उम्र में सोशल वर्क के जरिये कर रही लोगों की मदद:
अंतर्राष्ट्रीय सम्बंधों की विशेषज्ञ (इंटरनेशनल रिलेशनशिप एक्सपर्ट), कृति दया-भाव की शक्ति में विश्वास करती है। उसने गरीबों के लिए वस्त्र वितरण अभियान का आयोजन किया है। कैंसर के बाल रोगियों के लिए ईश्वर चाइल्ड फाउंडेशन, परित्यक्त बच्चों को अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराने के लिए राजकीय बाल गृह जैसे एनजीओ (गैर-सरकारी संगठन) के साथ काम किया है। वहीं पुलवामा के शहीदों के परिजनों के लिए लोगों से चंदा जमा करने के अभियान का आयोजन भी सफलतापूर्वक किया है।
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ये वो वेबसाइट है, जिसके जरिये कृति शहीदों के परिवार की मदद के लिए चंदा एकत्र कर रहीं हैं। (https://www.ketto.org/bharatkeveer)
लीलावती बालिका अनाथालय से जुड़ी हैं कृति:
अपने 18वें जन्मदिन के मौके पर कृति ने पुनः एक एनजीओ - लीलावती बालिका अनाथालय का सहयोग करने का निर्णय किया है। यह काम उसके दिल के बहुत करीब रहा है। यह एक वस्त्र एकत्रीकरण व वितरण अभियान के रूप में है, जिसमें कृति परिवार, दोस्तों और माता-पिता के परिचितों से उदारतापूर्वक कपड़े, स्टेशनरी, बेड लिनन आदि दान करने के लिए सम्पर्क कर रही है। यह अभियान 21 जनवरी को समाप्त होगा, जब कृति और अन्य दानदाताओं के दान से इस अनाथालय की वंचित कन्याओं में हर्ष का संचार होगा।
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कृति अपनी उम्र के अन्य लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहती है, क्योंकि उसका मानना है कि कोई भी प्रयास बहुत छोटा या महत्वहीन नहीं होता है।
वह कहती हैं -'वर्तमान राजनीतिक माहौल की उठा-पटक और शोर-गुल के बीच, युवा को ऐसे कार्य करने चाहिए, जिनसे यह लगे कि अभी भी मानवता जीवित है। कुछ लोग विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरते हैं, कुछ कविता लिखते हैं, जबकि मेरा तरीका अपने परिवारों द्वारा छोड़ी गई लड़कियों के रोजमर्रा के जीवन में सुधार करने का है।'
बता दें कि लखनऊ के मोतीनगर में स्थित लीलावती बालिका अनाथालय में 6 माह तक की छोटी कन्याओं की देखभाल भी की जाती है। इसी परिसर में एक वृद्धाश्रम भी है।
लड़की होने के कारण मासूमों को छोड़ जाते हैं माता पिता:
इनमें से कई बच्चों को केवल इसलिए रेलवे और बस स्टेशनों पर छोड़ दिया गया क्योंकि वे लड़कियां हैं। जबकि देश ने लैंगिक असमानता को कम करने के उपायों में कुछ हद तक सफलता मिली है, लेकिन इस तरह की रूढ़िवादी सोच अभी भी मौजूद है।
इस अभियान के लिए कृति को अपने माता-पिता, परिवार, दोस्तों और उनकी प्रिंसिपल, श्रीमती आश्रितादास से प्रेरणा मिली है। अपनी प्रिंसिपल के विषय में बताते हुए कृति कहती है कि वे न केवल मेरे लिए, बल्कि हर युवा बालिका के लिए प्रेरणा का एक निरंतर स्रोत हैं।