किसानों को समृद्ध बना सकती है नकदी की फसल, जानिए इसके बारे में

डॉक्टर जगदीश कुमार ने हमें बताया कि कपास को नकदी फसल के नाम से भी जाना जाता है। अन्य फसलों की अपेक्षा में लागत बेहद कम लगती है

Aradhya Tripathi
Published on: 29 Jun 2020 4:40 PM GMT
किसानों को समृद्ध बना सकती है नकदी की फसल, जानिए इसके बारे में
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लखनऊ: आज हम आपको एक ऐसी फसल के बारे में बताएंगे जिस फसल को नकद फसल के नाम से भी जाना जाता है और यह फसल किसानों को समृद्ध बनाने में भी बेहद सहयोगी होती है। नकदी फसल के बारे में जानने के लिए चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के प्रभारी अधिकारी डॉक्टर जगदीश कुमार से बातचीत कर जानकारी प्राप्त की है।

बहु उपयोगी है नकदी की फसल

डॉक्टर जगदीश कुमार ने हमें बताया कि कपास को नकदी फसल के नाम से भी जाना जाता है। अन्य फसलों की अपेक्षा में लागत बेहद कम लगती है और इसके पीछे की एक और मुख्य वजह यह है कि इस फसल को तत्काल प्रभाव से बेचना बेहद आसान होता है और दाम भी अच्छे मिलते हैं। क्योंकि कपास के रेशे को कंबल, दरियां, फर्श आदि के निर्माण में उपयोग किया जाता है। तथा कपास के रेशों से सूती वस्त्र, मेडिकल कार्य हेतु प्रयोग तथा होजरी के सामान का निर्माण किया जाता है। उन्होंने बताया कि कपास से निकलने वाले बिनौलो से पशुओं का आहार भी तैयार किया जाता है।

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डॉक्टर जगदीश कुमार ने बताया कि उत्तर प्रदेश में कपास का क्षेत्रफल लगभग 6000 हेक्टेयर है। प्रदेश में वर्ष 2018-19 में रुई की उत्पादकता 343 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा कपास की उत्पादकता 10 कुंतल प्रति हेक्टेयर थी। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018-19 में कुल रुई का उत्पादन 1951 टन तथा कपास का उत्पादन 64,383 टन था। उन्होंने बताया कि किसानों के खेतों में इस समय कपास की फसल लगभग एक महीने की हो गई है। इसलिए अब कपास की फसल में खरपतवार प्रबंधन बहुत जरूरी है। इसके लिए किसान भाई खुरपी की सहायता से खरपतवार निकालने तथा घने पौधों का विरलीकरण कर दें।

फसल को कीड़ों से और बर्बाद होने से बचाने के लिए करें ये उपाय

डॉ जगदीश ने बताया कि वर्षा काल के समय खेत में पर्याप्त जल निकास की सुविधा हो जिससे वर्षा का पानी खेत में ठहरने न पाए। कलियां, फूल व गूलर बनते समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। कपास की फसल में कीट प्रबंधन के बारे में बताया की गूलर भेदक की रोकथाम के लिए क्विनालफास 25 ईसी 2 लीटर दवा को 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर दो-तीन सप्ताह के अंतराल पर तीन या चार बार छिड़काव कर दें।

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उन्होंने बताया कि कपास की फसल में साकाडू झुलसा एवं अन्य परडी झुलसा बीमारी लगती है जिस की रोकथाम के लिए डेढ़ किलोग्राम ब्लाईटॉक्स 50% डब्ल्यूपी को कीटनाशक दवाइयों के साथ मिलाकर छिड़काव कर दें।

रिपोर्ट- अवनीश कुमार

Aradhya Tripathi

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