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UP Politics: सबसे बड़े सूबे में साझा प्रत्याशी की INDIA की रणनीति फेल, मायावती के ऐलान से त्रिकोणीय जंग का रास्ता साफ

UP Politics: भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन एनडीए के खिलाफ साझा उम्मीदवार उतारने की रणनीति के साथ विपक्षी दलों ने मोर्चा बनाया है मगर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का रुख विपक्षी गठबंधन पर भारी पड़ता दिख रहा है।

Anshuman Tiwari
Published on: 31 Aug 2023 10:44 AM IST
UP Politics: सबसे बड़े सूबे में साझा प्रत्याशी की INDIA की रणनीति फेल, मायावती के ऐलान से त्रिकोणीय जंग का रास्ता साफ
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Mayawati (photo: social media )

UP Politics: देश में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बने विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया की रणनीति देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में ही फेल होती हुई नजर आ रही है। भाजपा की अगुवाई वाले गठबंधन एनडीए के खिलाफ साझा उम्मीदवार उतारने की रणनीति के साथ विपक्षी दलों ने मोर्चा बनाया है मगर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती का रुख विपक्षी गठबंधन पर भारी पड़ता दिख रहा है। विपक्षी गठबंधन इंडिया की मुंबई बैठक से पूर्व मायावती ने 2024 की सियासी जंग के लिए अपने पत्ते खोल दिए हैं।

मायावती ने साफ कर दिया है कि वे इंडिया और एनडीए दोनों गठबंधन में शामिल नहीं होगी। ऐसे में विभिन्न राज्यों और खासकर उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर मजबूत लड़ाई लड़ने का विपक्षी गठबंधन इंडिया का सपना चकनाचूर होता हुआ दिख रहा है। बसपा को उत्तर प्रदेश में प्रमुख सियासी ताकत माना जाता रहा है। 2024 की सियासी जंग में बसपा उम्मीदवारों के भी चुनावी अखाड़े में कूदने से त्रिकोणीय मुकाबले के आसार दिख रहे हैं। इसके साथ ही भाजपा विरोधी मतों के बंटवारे से भाजपा को सियासी फायदा होने की उम्मीद भी जताई जाने लगी है।

मायावती का दोनों गठबंधनों पर हमला

बसपा मुखिया मायावती ने बुधवार को साफ कर दिया कि उनकी पार्टी पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अकेले सियासी अखाड़े में उतरेगी। विपक्षी गठबंधन इंडिया की मुंबई बैठक से पहले विपक्ष के कुछ नेताओं ने मायावती से संपर्क साधा था। इसके बाद मायावती के भावी रुख को लेकर कयासबाजी तेज हो गई थी मगर अब मायावती ने अपना रुख पूरी तरह साफ कर दिया है। मायावती ने सोशल मीडिया पर इंडिया और एनडीए दोनों गठबंधनों पर हमला बोलते हुए अपना रुख साफ किया।

बसपा मुखिया ने कहा कि एनडीए और इंडिया दोनों गठबंधन में गरीब विरोधी, जातिवादी, सांप्रदायिक, धन्ना सेठ समर्थक और पूंजीवादी नीतियों वाली पार्टियों हैं। ऐसे दलों की नीतियों के खिलाफ बसपा मजबूत लड़ाई लड़ रही है। ऐसे में इन दलों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि बसपा 2007 की तरह विधानसभा और लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। मायावती ने कहा कि मीडिया को बसपा के रुख को लेकर बार-बार भ्रांतियां नहीं फैलानी चाहिए।

सभी दल अपने साथ मिलाने को आतुर

मायावती ने इंडिया गठबंधन में शामिल दलों और उनके नेताओं पर भी तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि बहुजन समाज पार्टी से हाथ मिलाने को सभी दल आतुर हैं मगर ऐसा न करने पर विपक्षी पार्टियों की ओर से खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तरह भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगाया जाता है। यह बिल्कुल इस तरह है जैसे इन दलों के साथ मिल जाएं तो सेक्युलर और अगर न मिलें तो भाजपाई। यह बिल्कुल उस कहावत की तरह है जैसे अंगूर मिल जाए तो ठीक वरना अंगूर खट्टे हैं।

मायावती के बयान की टाइमिंग महत्वपूर्ण

मायावती के इस बयान की टाइमिंग भी काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने बुधवार को ऐसे समय में यह बयान दिया जब मुंबई में विपक्षी गठबंधन की बैठक की जोरदार तैयारियां चल रही थीं। मुंबई में गुरुवार को बैठक की शुरुआत से पहले ही मायावती ने विपक्षी गठबंधन को करारा झटका दिया है। मायावती के इस बयान पर विपक्षी नेताओं को कितना मिर्चा लगा है,यह राजद मुखिया लालू यादव के बयान से समझा जा सकता है।

मायावती की ओर से अपना रुख साफ किए जाने के बाद राजद मुखिया लालू यादव ने कहा कि उन्हें गठबंधन का न्योता ही किसने दिया था। जबकि सच्चाई है कि गठबंधन के कुछ नेताओं की ओर से मायावती को इंडिया की छतरी के नीचे लाने की कोशिश की जा रही थी। सूत्रों के मुताबिक नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने इस बाबत मायावती से बातचीत भी की थी।

विपक्ष के लिए भारी पड़ सकता है मायावती का फैसला

मायावती का यह रुख कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 की सियासी जंग में विपक्षी गठबंधन के लिए भारी पड़ सकता है। राजनीतिक गलियारों में हमेशा यह बात कही जाती रही है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं और 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को ताकतवर बनाने में उत्तर प्रदेश ने बड़ी भूमिका निभाई थी।

हालांकि यह भी सच्चाई है कि उत्तर प्रदेश में मायावती की पकड़ पहले की अपेक्षा कमजोर पड़ी है मगर इसके साथ यह भी सच्चाई है कि अभी भी दलित और मुसलमानों के एक बड़े वर्ग का समर्थन उन्हें हासिल है। इसके साथ ही ओबीसी मतदाताओं में भी मायावती पैठ बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। उनके अलग चुनाव लड़ने के फैसले से उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बनते दिख रहे हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा को सियासी फायदा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।

मायावती पर सपा हुई हमलावर

मायावती ने उत्तर प्रदेश में 2019 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके लड़ा था। इस चुनाव में बसपा 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी जबकि समाजवादी पार्टी को सिर्फ पांच सीटों पर ही जीत मिल सकी थी। चुनाव नतीजे की घोषणा के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि हमारे वोट तो बसपा को ट्रांसफर हो गए मगर बसपा के वोट हमें नहीं मिल सके।

मायावती के अकेले चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद सपा प्रवक्ता जूही सिंह ने तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि मायावती के रुख से साफ है कि वे बीजेपी के साथ हैं और इसी कारण वे इंडिया गठबंधन में नहीं शामिल हो रही हैं। इंडिया गठबंधन से बाहर रहकर वे एनडीए को फायदा पहुंचा रही हैं।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मायावती दूसरे कैंडिडेट को हराने के लिए अपने उम्मीदवार खड़े करती हैं। वे विपक्ष के साथ नहीं खड़ी होतीं और हमेशा अपना फायदा देखने में जुटी रहती हैं और इसी कारण दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों का समर्थन उनके साथ नहीं है।

भाजपा की ओर से डोरे डालने की कोशिश

दूसरी ओर भाजपा की ओर से मायावती पर डोरे डालने की कोशिश की जा रही है। भाजपा नेता और यूपी सरकार में मंत्री रह चुके मोहसिन रजा ने कहा कि मायावती को बड़ा दिल दिखाते हुए एनडीए के साथ आ जाना चाहिए। भाजपा ने पहले भी मायावती को पूरा सम्मान देते हुए प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था।

भाजपा ने ऐसे वक्त पर मायावती का साथ दिया था जब समाजवादी पार्टी के नेता उनकी बेइज्जती कर रहे थे। सपा ने हमेशा उनका तिरस्कार करने के साथ राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचाने का भी प्रयास किया है। एनडीए में मायावती को पूरा सम्मान मिलेगा और दलित उत्थान की लड़ाई और मजबूत होगी।

अब बहन जी की ताकत पर सबकी निगाहें

2014 की मोदी लहर में बसपा को उत्तर प्रदेश में बड़ा सियासी नुकसान उठाना पड़ा था और पार्टी लोकसभा की एक भी सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब नहीं हुई थी। 2019 में सपा से गठबंधन का पार्टी को फायदा मिला और मायावती 10 सीटें हासिल करने में कामयाब रही।

2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा को सिर्फ 19 सीटों पर जीत हासिल हुई थी जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव बसपा का काफी बुरा हश्र हुआ था और पार्टी को सिर्फ एक सीट पर ही जीत मिल सकी थी। अब मायावती ने 2024 की सियासी जंग अकेले लड़ने का ऐलान किया है और ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि वे अपनी ताकत दिखाने में कामयाब हो पाती हैं या नहीं।



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Anshuman Tiwari

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