×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

1857 Kranti: जानिए कैसे हुई थी 1857 की क्रांति शुरु, आज ही के दिन (10 मई) को मेरठ से बदला था इतिहास

Meerut News: मेरठ का जिक्र होते ही देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की यादें ताजा हो जाती हैं। यहीं से उस महान संघर्ष की पहली चिंगारी (10 मई, 1857 को) उठी थी। मेरठ के क्रांति स्थल और अन्य धरोहर आज भी क्रांति की याद ताजा करती हैं।

Sushil Kumar
Published on: 11 May 2023 12:43 AM IST
1857 Kranti: जानिए कैसे हुई थी 1857 की क्रांति शुरु, आज ही के दिन (10 मई) को मेरठ से बदला था इतिहास
X
1857 की क्रांति: Photo- Newstrack

Meerut News: मेरठ का जिक्र होते ही देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की यादें ताजा हो जाती हैं। यहीं से उस महान संघर्ष की पहली चिंगारी (10 मई, 1857 को) उठी थी। मेरठ के क्रांति स्थल और अन्य धरोहर आज भी क्रांति की याद ताजा करती हैं। इतिहासकारों के मुताबिक 9 मई, 1857 को घुड़सवार सेना के 85 भारतीय सिपाहियों का कोर्ट मार्शल कर दिया गया था। इसके बाद 10 मई, 1857 को सिपाहियों ने खुली बगावत कर दी थी। इस क्रांति के महानायक शहीद धन सिंह कोतवाल की जन्मभूमि पांचली खुर्द भी मेरठ में ही है।

ऐसे जली थी अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने की अलख

इतिहास में दर्ज जानकारी के अनुसार सबसे पहले मेरठ के सदर बाजार में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ चिंगारी भड़की, जो पूरे देश में फैल गई। 1857 में अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए रणनीति तय की गई थी। एक साथ पूरे देश में आजादी का बिगुल फूंकना था, लेकिन मेरठ में तय तारीख से पहले अंग्रेजों के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। इतिहासकारों की मानें और राजकीय स्वतंत्रता संग्रहालय में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित रिकार्ड को देखें तो दस मई 1857 को शाम पांच बजे जब गिरिजाघर का घंटा बजा, तब लोग घरों से निकलकर सड़कों पर एकत्र होने लगे। सदर बाजार क्षेत्र में अंग्रेज फौज पर भीड़ ने हमला बोल दिया। नौ मई को 85 सैनिकों का कोर्ट मार्शल किया गया था। उन्हें विक्टोरिया पार्क स्थित नई जेल में बंद कर दिया था। दस मई की शाम इस जेल को तोड़कर 85 सैनिकों को आजाद करा दिया गया। कुछ सैनिक रात में ही दिल्ली पहुंच गए और कुछ सैनिक 11 मई की सुबह दिल्ली रवाना हुए और दिल्ली पर कब्जा कर लिया था।

गांवों तक पहुंच गई क्रांति

मेरठ शहर से शुरू हुई क्रांति गांवों तक पहुंच गई थी। सभी अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़े हुए। मेरठ-बागपत जिलों की सीमा पर हिंडन नदी पुल और बागपत में यमुना नदी पुल को क्रांतिकारियों ने तोड़ दिया था। अंग्रेजों से संबंधित जो भी दफ्तर, कोर्ट, आवास व अन्य स्थल थे, वह फूंक डाले थे। इतिहासकारों के अनुसार कि अंग्रेज अफसर मेरठ को सबसे अधिक सुरक्षित छावनी समझते थे। उन्हें इसका बिल्‍कुल अहसास नहीं था कि मेरठ में उनके सैनिक विद्रोह कर सकते हैं। बताते हैं कि मेरठ छावनी में सैनिकों को 23 अप्रैल 1857 को आपत्तिजनक कारतूस इस्तेमाल करने के लिए दिए गए।

भारतीय सैनिकों ने इन्हें इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया था। तब 24 अप्रैल 1857 को सामूहिक परेड बुलाई गई और परेड के दौरान 85 भारतीय सैनिकों ने इन कारतूसों को इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया। इस पर उन सभी का कोर्ट मार्शल कर दिया गया। छह, सात और आठ मई को कोर्ट मार्शल का ट्रायल हुआ, जिसमें 85 सैनिकों को नौ मई को सामूहिक कोर्ट मार्शल की सजा सुनाई गई। विक्टोरिया पार्क स्थित नई जेल में ले जाकर इन्हें बंद कर दिया गया।

इतिहासकार डा. विघ्नेश त्यागी कहते हैं कि क्रांति का विस्तार एवं फै़लाव लगभग समूचे देश में था। अंग्रेजी इतिहासकार ऐसा मानते है कि यह एक स्थानीय गदर था, लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं थी। यह बात जरुर सही है कि इसका केन्द्रीय क्षेत्र दिल्ली एवं पश्चिम उप्र के क्षेत्रों में था, लेकिन व्यापकता का असर लगभग समूचे देश में था।



\
Sushil Kumar

Sushil Kumar

Next Story