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Meerut News: तो क्या लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का कदम बसपा के लिए आत्मघाती साबित होगा, पार्टी में भगदड़ मचने के आसार
BSP Preparation Lok Sabha Elections: बसपा सुप्रीमों मायावती के अकेले दम पर चुनाव लडने की घोषणा से विपक्षी गठबंधन को तो धक्का लगा ही है खुद पार्टी के भीतर भी उन नेताओं को धक्का लगा है जो कि बसपा के टिकट पर सासंद बनने का ख्वाब पाले हुए हैं।
Meerut News: बसपा सुप्रीमों मायावती (BSP Preparation Lok Sabha Elections) के अकेले दम पर चुनाव लडने की घोषणा से विपक्षी गठबंधन को तो धक्का लगा ही है खुद पार्टी के भीतर भी उन नेताओं को धक्का लगा है जो कि बसपा के टिकट पर सासंद बनने का ख्वाब पाले हुए हैं। ऐसे बसपा नेताओं की अपने राजनैतिक भविष्य को लेकर चिंता और बैचेनी पार्टी सुप्रीमो की इस घोषणा के बाद बढ़ गई है। ऐसे नेता मायावती के ताजा कदम को आत्मघाती कदम से अधिक कुछ नहीं मान रहे हैं। उनका कहना है कि बिना किसी गठबंधन के बसपा अगर चुनावी मैदान में उतरी तो उसका हश्र 2014 जैसे होना तय है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस हालात में पार्टी में भगदड़ मच सकती है। बसपा बिखरने लगी।
दरअसल, बसपा नेताओं की चिंता और बैचेनी गलत भी नहीं है। जैसा कि पार्टी के वेस्ट यूपी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता नाम ना छापने की शर्त पर कहते हैं- बहनजी 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले दम पर लड़ कर देख चुकी है। क्या नतीजा मिला था बसपा जीरो पर आ गई थी। वहीं सपा ने अकेले लड़ कर पांच सीटें जीत गई थी। कांग्रेस भी दो सीट जीतने में सफल रही थी। इसके बाद 2019 में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था, जिसमें बसपा की सीटें जीरो से बढ़ कर 10 हो गईं थी।
इस बसपा नेता के अनुसार इस तरह देखा जाए तो मायावती की लोकसभा चुनाव में किसी के साथ भी गठबंधन नहीं करने की इस दलील में कोई दम नहीं है कि पहले के चुनाव में गठबंधन से बसपा को नहीं बल्कि गठबंधन करने वाली दूसरी पार्टी को फायदा पहुंचा था। इस नेता के अनुसार यदि यह सच होता तो 2014 में अकेले दम पर चुनाव लड़ जीरो पर रहने वाली बसपा को सपा के साथ गठबंधन में 10 सीटें नहीं मिलती। इस नेता की मानें तो अगर बहनजी ने अकेले लड़ने का अपना इरादा नहीं बदला तो चुनाव से पहले पार्टी में इतनी भगदड़ मचेगी की बहनजी को संभालना मुश्किल पड़ जाएगा।
क्या किसी दबाव में हैं मायावती?
वहीं इस मामले में सपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री राजपाल सिंह कहते हैं-दरअसल,मायावती किसी दबाव में हैं। यही वजह है कि बहनजी सच्चाई से नजरे छिपा रही है। मायावती का यह कहना कि दूसरी पार्टियां अपना वोट बसपा उम्मीदवार को ट्रांसफर कराने की सही नीयत नहीं रखती हैं। बिल्कुल सच्चाई से परे हैं। अगर ऐसा होता तो 2014 में जीरो पर रहने वाली बसपा 2019 में सपा के गठबंधन में 10 पर नहीं पहुंचती। हकीकत तो यह है कि बहनजी की पार्टी का वोट सपा को ट्रांसफर नहीं हुआ। नतीजन, बसपा की जीरो से 10 पर पहुंच गईं और सपा को कुल पांच सीटे ही मिल सकी। जाहिर है चुनाव में सपा का यादव और मुस्लिम वोट तो बसपा को गया लेकिन बसपा का दलित वोट सपा के साथ जाने की बजाय भाजपा के साथ चला गया।
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