×

माइनर को धरती निगल गई या आसमान

seema
Published on: 17 Jan 2020 7:54 AM GMT
माइनर को धरती निगल गई या आसमान
X

सुशील कुमार

मेरठ : सरकारी जमीन पर कब्जों की परत-दर-परत खुलती जा रही है लेकिन प्रशासनिक स्तर से कार्रवाई अभी तक शून्य है। किसी मामले में जांच की बात कही जा रही है तो किसी की फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी गई है। हद की बात तो यह है कि अंग्रेजों की हुकूमत में खेतों की सिंचाई के लिए नहर, रजबहा, माइनरों का जो जाल बिछाया गया था उसमें से मेरठ माइनर अवैध कब्जों की भेट चढ़ चुकी है। हरियाली देने वाले माइनर को धरती निगल गई या आसमान, इसका जवाब देने के लिए सिंचाई विभाग पर उंगली उठ रही है।

मेरठ में मलियाना से नूरनगर तक फसलों को हरियाली देने वाले माइनर मौके से कैसे और कब गायब हो गए, इसका जवाब सिंचाई विभाग के स्थानीय अफसरों के पास नही है। करीब 20 साल से कहीं पर भी माइनर का नामोनिशान नहीं दिखाई दे रहा है। अरबों रुपये की जमीन पर अवैध कब्जे हो गए हैं। कहीं लोगों ने मकान बना लिए तो बिल्डरों ने कॉलोनी काट दीं। सिंचाई विभाग सब देखता रहा, अधिकारियों का आना-जाना लगा रहा और किसी ने भी सरकारी जमीन को तलाशने का काम नहीं किया। अगर जमीन पर कब्जे को लेकर अब विधिवत कार्रवाई होती है तो यहां बने मकान, सड़क व नालों पर बुलडोजर चलेगा।

यह भी पढ़ें: 15 वर्षों तक किसान आत्महत्या को मजबूर रहा- सीएम योगी आदित्यनाथ

सिंचाई का था इंतजाम

ब्रिटिश हुकूमत के दौरान खेतों की सिंचाई के लिए नहर, रजबहा और माइनरों का जाल बिछाया गया था। उसी में मेरठ माइनर भी शामिल था। गंगनहर से निकलकर बिजली बंबा से गुजर रहे रजबहा से मेरठ माइनर निकाला गया। इससे मलियाना, मोहकमपुर, लिसाड़ी, फतेहउल्लापुर के गांवों के किसान फसलों की सिंचाई करते थे। 12 मीटर चौड़े और पांच किलोमीटर लंबे मेरठ माइनर का आज नामोनिशान मिट चुका है। सिंचाई विभाग में भी माइनर का रिकॉर्ड नहीं मिल रहा है। सूत्रों का कहना है कि 25 साल पहले सिंचाई विभाग के ही अधिकारियों ने प्राइवेट बिल्डरों से साठगांठ करके माइनर का अस्तित्व मिटा डाला। जहां बिल्डरों ने माइनर पर सड़क बना दी, वहीं पटरी को कॉलोनियों में शामिल कर दिया गया। अब तो माइनर पर बनी सड़क को भी कॉलोनियों के नाम से ही जाना जाता है। मामला स्थानीय मीडिया में आने के बाद सिंचाई विभाग के अधिकारी रिकॉर्ड तलाशने जुट तो गए हैं, लेकिन अभी तक उन्हें कामयाबी नही मिल सकी है। आशंका जताई जा रही है विभाग के तत्कालीन अधिकारियों ने माइनर के साथ सरकारी भूमि के अभिलेख भी गायब कर दिए होंगे।

यह भी पढ़ें: यात्रीगण हो जाएं अलर्ट! 17 से 24 जनवरी तक कई ट्रेनें रद्द, इनका बदला रूट

सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता आशुतोष सारस्वत कहते हैं कि मेरठ माइनर की फाइल मिलने के बाद ही आगे की कार्रवाई तय की जाएगी। फाइल क्यों नहीं मिल पा रही इस बारे में उनका जवाब था कि मेरठ माइनर का रिकार्ड 30-40 साल पुराना होने के कारण उसे तलाशने में दिक्कत आ रही हैं। पुराने अधिकारी व कर्मचारी रिटायर होकर जा चुके हैं। आशुतोष सारस्वत का कहना है कि सभी संबंधित अधिकारी व कर्मचारियों को जिम्मेदारी दी गई है। जल्दी ही पूरी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

स्थानीय बाशिंदों के अनुसार एमआईईटी कालेज के निकट बाईपास से होते हुए रजबहा निकला है जो संजय वन के बराबर से बिजली बंबा बाईपास से गुजर रहा है। कागजों में इसकी चौड़ाई 22 से 27 मीटर है। मलियाना में इसी रजवाहा से नूरनगर के लिए लगभग 12 फीट चौड़ा माइनर निकाला गया था। इसकी लंबाई लगभग साढ़े चार किमी थी। जिससे मलियाना, मोहकमपुर, हाफिजाबाद मेवला, सरस्वती लोक मार्ग से नूरनगर तक खेतों की सिंचाई होती थी। फतेहउल्लापुर तालाब तक माइनर का पानी पहुंचता था। यह माइनर फसलों के लिए वरदान साबित होता था।

अगर कोई विभाग किसी दूसरे विभाग की भूमि पर अपनी योजना संचालित करता है तो उसको संबंधित विभाग यानी भूमि स्वामित्व विभाग से एनओसी लेनी होती है। साथ ही या तो उस भूमि की एवज में दूसरे स्थान पर जमीन देनी होती है या फिर उस जमीन की कीमत। यह प्रक्रिया भी स्थानीय स्तर पर नहीं की जा सकती है। इसके लिए भूमि के स्वामित्व वाले विभाग और उस भूमि पर अपनी कोई योजना संचालित करने वाले विभाग को भूमि हस्तांतरित करने के लिए शासन स्तर से स्वीकृति दी जाती है। लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ और जमीन पर कब्जे कर लिए गए। जाहिर है कि यहां पर माइनर की भूमि पर कब्जा करने वाले किसी सरकारी अथवा प्राइवेट व्यक्ति ने सिंचाई विभाग से न तो हस्तांतरित करने के लिए कोई पत्र व्यवहार किया और न ही विभाग के खजाने में भूमि की कीमत जमा की। इतना ही नहीं सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने भी अरबों रुपये की बेशकीमती जमीन को मिलीभगत करके लुटने दिया। शहर का विस्तार होता गया। खेत कंकरीट के जंगलों में तब्दील होते गए। इस प्रक्रिया में सिंचाई विभाग के रजवाहे और माइनर भी लुप्त होते गए। सभी की फाइलें विभाग की अलमारी में कैद कर दी गयी।

seema

seema

सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

Next Story