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फंदा बुनती 'भ्रष्टाचार' की फाइलें, 300 करोड़ रुपए के पार होने की आशंका
आशुतोष सिंह
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को सपनों का शहर बनाना चाहते हैं। मोदी ने पांच साल पहले काशी को क्योटो बनाने की बात कही थी। इस दिशा में भाजपा सरकार काफी शिद्दत से काम भी कर रही है, लेकिन भ्रष्टाचार के दीमक के आगे सब मेहनत बेकार साबित हो रही है। वाराणसी शहर को संवारने और सजाने की बड़ी जिम्मेदारी नगर निगम के कंधो पर है, लेकिन निगम के कर्मचारी और अधिकारी भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हैं। नगर निगम में गाडिय़ों की खरीद फरोख्त और मरम्मत से जुड़ा एक घोटाला सामने आया है। घोटाले की रकम 300 करोड़ के आसपास बताई जा रही है। इस घोटाले से जुड़ी फाइलें पिछले दिनों कूड़े के ढेर पर मिलीं तो हड़कंप मच गया। फिलहाल इस मामले की जांच की जा रही है। माना जा रहा है कि घोटाले के तार लखनऊ में बैठे कई बड़े अफसरों से भी जुड़े हो सकते हैं।
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कैसे किया गया घोटाला
कैंट विधायक सौरभ श्रीवास्तव ने 25 दिसंबर को डीएम को पत्र लिखकर घोटाले की जांच कराने की मांग की थी। इसके बाद डीएम ने नगर निकाय निदेशालय को पत्र लिखकर मामले से अवगत कराया है। विधायक के पत्र लिखने के बाद नगर आयुक्त गौरांग राठी ने इस मामले की जांच के लिए चार सदस्यीय कमेटी गठित कर दी। इसकी शुरुआती रिपोर्ट ने घोटाले की ओर इशारा किया है। दरअसल, नगर निगम के परिवहन विभाग में वाहनों की मरम्मत के नाम पर पिछले पांच सालों से फर्जीवाड़े का खेल चल रहा है। बताया जाता है कि फर्जी फाइल बनाकर भुगतान कराने का खेल होता है। पिछले चार-पांच साल में इसमें करोड़ों रुपये की हेराफेरी की गई है। इसके लिए मनचाहे ठेकेदार को नियुक्त कर फर्जी फाइलों के जरिये भुगतान कराया जाता है। साथ ही वाहनों के मरम्मत और उसके पुर्जों की खरीद के लिए अलग अलग मदों का सहारा लिया जाता था। कई खर्चे ऐसे भी हैं जिनका भुगतान कई मदों से किया गया है।
परिवहन विभाग में वाहनों के रखरखाव पर मनमाने खर्च का नमूना दिसंबर में नगर निगम के सदन में पुनरीक्षित बजट के दौरान देखने को मिला। इसमें अन्य मद का जिक्र था जिसमें 3.71 करोड़ खर्च किए जा चुके थे। वर्ष 2018-19 में इस मद में 3.50 करोड़ खर्च किए गए थे। ये खर्च कहां और किसलिए किए गए इसका जवाब अधिकारियों के पास नहीं है। लेखाधिकारी मनोज त्रिपाठी के चार्ज लेने के बाद परिवहन विभाग का खर्च लगभग आठ गुना कम हो गया है। दस महीने बीतने के बाद लगभग अब तक साठ लाख खर्च हुए हैं जबकि पिछले वर्ष 2018-19 में यह खर्च साढ़े चार करोड़ से अधिक था।
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300 करोड़ रुपए के पार होने की आशंका
लक्सा के पार्षद लकी वर्मा और पार्षद राजेश यादव चल्लू के अनुसार नगर निगम के परिवहन विभाग में एक-एक गाड़ी की मरम्मत दस-दस बार कराई गई। औने-पौने दाम पर सामान खरीदकर अधिक दाम दिखाए गए। न तो टेंडर कराया गया न किसी बड़ी कंपनी से रेट लिस्ट ली गई। सदन में इस पर जवाब मांगा गया लेकिन आज तक जवाब नहीं मिला। पार्षदों ने घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग नगर आयुक्त से की थी। नगर आयुक्त आश्वस्त किया था कि प्रथम दृष्टया सबूत मिलने पर एफआईआर कराएंगे। लक्सा पार्षद ने कहा कि परिवहन विभाग में गाडिय़ों की मरम्मत के अलावा खरीददारी के नाम पर पैसों की बंदरबांट होती है। कायदे से जांच हुई तो तीन सौ करोड़ रुपये का घोटाला सामने आएगा। उन्होंने कहा कि 2014 में खरीदी गईं गाडिय़ां खड़े-खड़े खराब हो गईं। इसके पार्ट्स दूसरी गाडिय़ों में लगा दिए गए हैं। मरम्मत के नाम पर जाने वाली गाडिय़ां का बिल 50 हजार रुपये तक बना है। 23 हजार रुपये के टायर को 95 हजार रुपये में खरीदना दिखाया गया है।
कैग ने भी लगाई मुहर
सीएजी (कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) ने वर्ष 2018-19 की रिपोर्ट में माना है कि परिवहन विभाग में सामानों की खरीद और वाहनों के मरम्मत के नाम पर अनियमितता हुई है। नगर आयुक्त, लेखाधिकारी और मुख्य नगर लेखा परीक्षक को भेेजी रिपोर्ट में सीएजी ने इस पर रोक लगाने के लिए कहा है। साथ ही पूछा है कि अनियमितताओं पर रोक लगाने के लिए की गई कार्रवाई से अवगत कराएं। कैग ने कहा है कि चेतावनी के बावजूद कठोर कदम नहीं उठाए गए तो केंद्र से मिलने वाली निधियों को रोकने की सिफारिश करने के लिए वो बाध्य होगी। कैग ने यह रिपोर्ट केंद्रीय निधियों से मिलने वाली खर्च के आधार पर दी है। इसके जांच के लिए टीम सितंबर 2019 में आई थी। कैग टीम फिर आने वाली है और नगर निगम के अन्य खर्चों से संबंधित कागजात की जांच करेगी। इसके बाद अन्य विभागों में मनमाने खर्च का रहस्योद्घाटन हो सकता है। इससे नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग के स्टोर और इंजीनियरिंग विभाग के मामले भी उजागर हो सकते हैं।
गोदाम में मिले घोटाले से जुड़ी फाइलें
नगर निगम की जांच कमेटी को घोटाले से जुड़ी 506 फाइलों की तलाश थी। इनमें से 186 फाइलें अचानक विभाग से गायब हो गईं। लेकिन पिछले दिनों इनमें से 108 फाइलें गोदाम में पड़ी मिलीं। बाकी की तलाश जारी हैं। वहीं सूत्रों के अनुसार इन फाइलों की संख्या 120 है जिसमें सवा सौ करोड़ रुपये का ब्यौरा दर्ज है।
कैसे पूरा होगा मोदी का सपना ?
भ्रष्ट अफसरों के कारण शहर का सफाई अभियान पहले ही पिछड़ा हुआ है। गलियों में ही बनारस बसता है लेकिन स्वच्छता के मामले में इन गलियों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। पक्के महाल को छोड़कर शहर की अधिकांश गलियां कूड़े से पटी रहती हैं। सफाई कर्मी सिर्फ रस्मअदायगी के लिए कूड़ा उठान करते हैं। यही हाल बनारस के घाटों का भी है। चुनिंदा घाटों को छोड़कर अधिकांश घाट कूड़े से पटे रहते हैं। स्थानीय लोग और स्वयंसेवी संस्था मिलकर सफाई का जिम्मा अपने कंधों पर उठा रहे हैं।
स्वच्छता अभियान में पिछडऩे के पीछे शहर में चल रही योजनाओं को भी एक कारण बताया जा रहा है। नगर निगम के अधिकारियों के मुताबिक शहर में आईपीडीएस और गैस पाइप लाइन बिछाने का कार्य चल रहा है। इसके अलावा फ्लाईओवर निर्माण के साथ ही हृदय और अमृत योजना के चलते जगह-जगह सड़कों की खुदाई हुई है। निर्माण कार्यों के कारण कूड़ा उठान में दिक्कत हो रही है। नगर स्वास्थ्य अधिकारी के मुताबिक योजनाओं के कारण स्वच्छता की रफ्तार धीमी जरूर पड़ी है। गलियों में कूड़ा उठाने की समस्या सबसे अधिक है। सफाई को लेकर लोगों की मानसिकता में भी बदलाव नहीं हो पा रहा है। तमाम हिदायतों के बाद भी लोग सड़कों पर कूड़ा फेंकने से बाज नहीं आते। ऐसे लोगों पर नकेल कसने के लिए नगर निगम अब कड़ा कानून बनाने जा रहा है। कानून का खाका तैयार है, जल्द ही सहमति मिलते ही इसे लागू कर दिया जाएगा।
आंकड़ों में नगर निगम
- रोजना शहर के निकलने वाला कूड़ा - 600 मीट्रिक टन
-हर महीने सफाई व्यवस्था पर खर्च - 4.50 करोड़ रुपए
-अधिकारियों, कर्मचारियों की संख्या -करीब 100
- नियमित सफाईकर्मी -1100
- संविदा सफाईकर्मी - 1150
-आउटसोर्सिंग पर सफाईकर्मी - 600
-नगर निगम के अलावा आईएलएफएस, कियाना सोल्यूसंस और इकोपाल को डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन की जिम्मेदारी
-कूड़ा निस्तारण के चार प्लांट