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किसी ने सोचा नहीं था 40 की उम्र में देश में छा जाएगी ये पार्टी
2019 में लोकसभा का चुनाव आया तो अपनी कार्यशैली के चलते इस बार और ताकतवर बनकर उभरे। उन्हें इस बार और बहुमत मिला। पार्टी को 303 सीटें हासिल हुईं और इस समय देश के प्रधानमंत्री के तौर पर भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाए हुए हैं।
श्रीधर अग्निहोत्री
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना जिस समय की गई थी, उस समय सांस्कृतिक विचारधारा के लोग तो देश में खूब थे लेकिन उन्हें दिशा देने वाले कुछ मुट्ठी भर नेता ही थे। भाजपा जब अपने शैशवकाल में थी तो किसी ने कल्पना नहीं की थी कि 40 की उम्र आते आते वह केन्द्र की सत्ता के अलावा 17 राज्यों में भी सत्तासीन दल हो जाएगी।
भाजपा के सफर की बात की जाए तो उसका सफर काफी उतार चढाव वाला रहा है। राजनीति की रपटीली राहों में वह कई बार फिसलकर संभल चुकी है। मूल रूप से जनसंघ के तौर पर पहचान रखने वाली भाजपा नेहरू-इंदिरा के दौर में भी काफी अच्छी स्थिति में रहती थी, पर आपातकाल के बाद जब इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाने की रणनीति लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने बनाई तो जनसंघ को भी अन्य दलों की तरफ जनता पार्टी में समाहित करना पड़ा।
जनता पार्टी के विघटन से हुआ जन्म
जनता पार्टी को सफलता भी मिली और पार्टी के सवर्मान्य नेता अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री और लालकृष्ण आडवाणी सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने, पर जनता पार्टी में शामिल विभिन्न दलों के आपसी तालमेल और विचारों में एकरूपता न होने के कारण यह दल बिखर गया। जिसके बाद पुरानी जनसंघ पार्टी का नई भारतीय जनता पार्टी के तौर पर जन्म हुआ।
छह अप्रैल 1980 को मुम्बई में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, भेरो सिंह शेखावत, राजमाता सिंधिया, डा. मुरली मनोहर जोशी, सुंदर सिंह भंडारी, कुशाभाऊ ठाकरे, शांताकुमार, के आर मलकानी, विजय कुमार मल्होत्रा और मदन लाल खुराना समेत अन्य कई नेताओं की उपस्थिति में पार्टी का गठन किया। जिसके पहले अध्यक्ष अटल विहारी वाजपेयी बनाए गए।
पहले चुनाव में चारों खाने चित्त
पार्टी के गठन के बाद लोकसभा का जब पहला चुनाव हुआ तो भाजपा ने भी अपने प्रत्याशी उतारे। लेकिन दुर्भाग्यवश इस वर्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षको ने हत्या कर दी जिसके बाद देश में उपजी सहानुभूति की लहर से भाजपा चारों खाने चित्त हो गयी।
भाजपा केवल दो सीटे ही जीत सकी एक हनामकोड़ा (आंध्र प्रदेश)। जहां पर भाजपा के चंदूपाटिया रेड्डी ने चुनाव जीता था। रेड्डी ने कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री नरसिम्हा राव को हराया था। जबकि दूसरी सीट गुजरात के मेहसाना से जीती थी। यहां भाजपा के एके पटेल विजयी हुए थे।
भाजपा को इनती बुरी हार की उम्मीद नहीं थी। इसके बाद पार्टी के अंदर दबे स्वर में अटल के उदारवादी रूख की आलोचना होने लगी। इसके बाद पार्टी की कमान लालकृष्ण आडवाणी को सौंपी गयी। तो उन्होंने पार्टी को अपने ढंग से मांजने का काम किया।
आडवाणी ने मांजा पार्टी को
पार्टी में कई युवा नेताओं अरूण जेटली, सुषमा स्वराज, प्रमोद महाजन को मुख्य धारा में लाने का काम हुआ। वहीं यूपी में कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र, लालजी टंडन, ओमप्रकाश सिंह, विनय कटियार जैसे नेताओं का जन्म हुआ। इसके अलावा अन्य राज्यों में रविशंकर प्रसाद, नितिन गडकरी, नरेन्द्र सिंह तोमर अर्जुन मुंडा जैसे नेता पैदा हुए।
यही वह समय था जब अटल आडवाणी ने एक बार फिर देश में गठित हुई दूसरी गैर कांग्रेसी सरकार को समर्थन दिया। वीपी सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी, लेकिन वही हश्र हुआ जिसकी सबको उम्मीद थी। अयोध्या आंदोलन के चलते भाजपा अध्यक्ष लालकृण आडवाणी की रामरथ यात्रा को जनता दल की बिहार सरकार ने रोका तो भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया।
राजीव की हत्या से फिर औंधे मुंह गिरी भाजपा
जनता दल की सरकार गिर गयी और 1991 में हुए मध्यावधि चुनाव में भाजपा को जबरदस्त लाभ मिला। वह 89 से 120 सीटों तक पहुंचकर एक मजबूत विपक्ष के रूप में लोकसभा में विराजमान हो गयी। इसे भाजपा का दुर्भाग्य ही कहिए कि इसी साल चुनाव के बीच में ही कांग्रेस नेता राजीव गांधी की हत्या हो गयी जिसका लाभ कांग्रेस को मिल गया और वह एक बार फिर सत्ता में आ गयी।
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नब्बे के दशक को भाजपा का जवानी का दौर कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगा क्यांकिे इस समय वह 20 की उम्र पार कर चुकी थी और अपनी पूरी जवानी पर थी। 1991 से लेकर 1996 तक केन्द्र में चली उठापटक के चलते जब 1996 में लोकसभा चुनाव हुए तो भाजपा एक बार ताकत के साथ चुनाव में उतरी और उसे इस चुनाव में 161 सीटे मिलीं।
सत्ता की चाहत का दंश
सत्ता की चाहत में भाजपा सबसे बड़े दल के तौर पर सत्ता पाने की चाहत में फंस गयी और बिना मजबूत समर्थन के ही केन्द्र में सरकार बना डाली। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बने लेकिन संसद में बहुमत साबित करने का मौका आया तो भाजपा चारो खाने चित्त हो गयी और उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
इसके बाद बनी राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार जब 1998 में धड़ाम हो गयी और लोकसभा के मध्यावधि चुनाव हुए तो भाजपा की ताकत की ताकत ओर बढ़ी, उसे 182 सीटें मिलीं। भाजपा एक बार फिर सत्ता पर काबिज हुई और अटल विहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने लेकिन सहयोगी दलों के असहयोगात्मक रूख के कारण यह सरकार भी 13 महीने ही चल सकी।
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इस दशक में राजनीतिक उठापटक के चलते जमकर मध्यावधि चुनाव हुए। इसके बाद जब 1999 में लोकसभा के चुनाव हुए तो भाजपा सत्ता चलाने के लिए अब मैच्योर हो चुकी थी। अटल विहारी वाजपेयी ने 28 दलों का साथ लेकर सरकार बनाई जो पूरे पांच साल चली।
भाजपा की निऱाशा का दौर
जब 2004 में लोकसभा के चुनाव हुए तो भाजप अति आत्मविश्वास के के मोहपाश में फंस चुकी थी। फील गुड का उसका फार्मूला फेल हो चुका था। वह सत्ता से बाहर हो गयी और देश में एक बार फिर कांग्रेस की सरकार का गठन हो गया। कांग्रेस के लोग जान चुके थे कि जनता को नेहरू इंदिरा परिवार के ठप्पे से बचाना है तो किसी और को प्रधानमंत्री बनाया जाए।
कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया। कांग्रेस के इस दांव से भाजपा के हाथ में कुछ बचा। यहीं नहीं पांच साल बाद जब 2009 में फिर चुनाव हुए तो कांग्रेस के मनमोहन सिंह यूपीए -2 से प्रधानमंत्री बने।
उम्मीद की किरण बने मोदी
भाजपा का यह दौर सबसे बड़ा निराशा का दौर था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब पार्टी का भविष्य क्या होने वाला है। देश की जनता कांग्रेस के कारनामों से ऊब चुकी थी उसे विकल्प की तलाश थी पर उसे कोई नेतृत्व नहीं मिल पा रहा था।
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भाजपा के पुराने नेता लगभग हताशा के दौर में पहुंच चुके थे। इसी बीच भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई तो तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने गुजरात के तीन बार मुख्यमंत्री बन चुके नरेन्द्र मोदी का नाम 2014 के लोकसभा चुनाव में सर्वमान्य नेता के तौर पर घोषित कर दिया।
लौटा स्वर्णिम काल
बस यहीं से भाजपा का स्वर्णिम दौर एक बार फिर लौट आया। भाजपा अपने इतिहास के सबसे ज्यादा अधिक उंचाई यों पर पहुंच गयी। उसे पहली बार बिना किसी दल के समर्थन के केन्द्र में सता हासिल करने के लिए 280 सीटे हासिल हो चुकी थी।
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गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। यूपी में भाजपा को 80 में से 73 सीटे मिली थी। इसमें अमित शाह की मुख्य भूमिका थी। उन्हें इसका ईनाम मिला और अमित शाह हो पार्टी आध्यक्ष बना दिया गया।
अपने पांच साल के कार्यकाल में मोदी घर-घर छा चुके थे और जब 2019 में लोकसभा का चुनाव आया तो अपनी कार्यशैली के चलते इस बार और ताकतवर बनकर उभरे। उन्हें इस बार और बहुमत मिला। पार्टी को 303 सीटें हासिल हुईं और इस समय देश के प्रधानमंत्री के तौर पर भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाए हुए हैं।