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''अंतोदय विचार को अपनाकर ही हम भारत को स्वावलंबी व आत्मनिर्भर बना सकते हैं''
हमें स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर बनने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन के अंतर्गत संपोषणीय विकास की धारणा को अपनाना होगा एवं उनके द्वारा दिए गए अंतोदय के विचार को समझाना होगा। तभी हम भारत को स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर भारत बना सकते हैं।
मेरठ: हमें स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर बनने के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन के अंतर्गत संपोषणीय विकास की धारणा को अपनाना होगा एवं उनके द्वारा दिए गए अंतोदय के विचार को समझाना होगा। तभी हम भारत को स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर भारत बना सकते हैं।
यह बात चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के तत्वाधान में पन्द्रह दिवसीय ई-कार्यशाला कोविड-19 के साथ जीवनरूस्वावलंबी भारत की रूपरेखाष् विषय पर आयोजित ई-कार्यशाला के छठे दिन प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता डॉ. प्रवीण कुमार तिवारी सह आचार्य शिक्षा संकाय विभाग महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड विश्वविद्यालय बरेली ने कही। उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन दृष्टि सर्वे संतु सर्वे भवंतु सर्वे निरामया की है जो सभी के निरोगी और सुखी होने की कामना करती है।
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प्रथम सत्र शुरू होने से पहले डॉ. राजेंद्र कुमार पांडे सह आचार्य राजनीति विज्ञान विभाग ने अतिथियों का स्वागत एवं परिचय कराया। प्रोफेसर पवन कुमार शर्मा विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान विभाग एवं निदेशक पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय ने ई-कार्यशाला का विषय प्रवेश कराते हुए पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जीवन यात्रा के बारे में संक्षिप्त रूप में बताया।
और कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानवदर्शन जो उन्होंने सूत्र रूप में दिया जिसकी वह अकाल मृत्यु की वजह से व्याख्या नहीं कर पाए उनके बाद श्री गुरुजी एवं श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने 1970 के दशक में उसकी व्याख्या की और उसके बारे में विस्तार से बताया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानवदर्शन संपूर्ण चराचर एवं इस ब्रह्मांड में सभी प्राणियों के हित के बारे में सोचता है।
हमें आत्मनिर्भर संकुचित एवं संकीर्ण मानसिकता के लिए नहीं बनना है
द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता प्रोफेसर रामदेव भारद्वाज जी कुलपति अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल ने स्वावलंबी भारत के निर्माण में चुनौतियों के विषय पर बोलते हुए कहा कि हमें आत्मनिर्भर संकुचित एवं संकीर्ण मानसिकता के लिए नहीं बनना है बल्कि स्वयं के समाज के राष्ट्र के एवं विश्व के हित के लिए बनना है।
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उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत एवं स्वावलंबी बनने का अर्थ कदापि यह नहीं है कि हमें विश्व की व्यवस्थाओं से मुंह मोड़ लेना है या संपूर्ण विश्व से अपने आप को अलग-थलग कर लेना है, क्योंकि कोई भी समाज एकांत में या अलग-थलग रहकर जीवित नहीं रह सकता। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार नदी में बहता हुआ जल रुक जाने पर उसमें से बदबू मारने लगती है और वह दूषित हो जाता है उसी प्रकार अपने आप को समाज एवं विश्व से अलग-थलग करने से किसी भी सभ्यता का विकास संभव नहीं है।
कोरोना के बाद की दुनिया बहुत ही अलग होगी
उन्होंने कहा कि कोरोना कालखंड के बाद की दुनिया बहुत ही अलग होगी और उसके सामने चुनौतियां भी अलग होगी। विश्व पटल पर चल रही ऐसी परिस्थितियों में भारत को आत्मनिर्भर बनने के लिए अपनी ज्ञान परंपरा एवं अपने उपलब्ध संसाधनों का सुगम एवं सुचारू रूप से प्रयोग करना होगा और भारतीय लोगों को भारतीय होने के नाते भारतीय कंपनियों द्वारा निर्मित उत्पादों में विश्वास दिखाना होगा और अपने भारतीय होने पर गर्व महसूस करना होगा तभी हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
ई-कार्यशाला में मंच का संचालन भानु प्रताप ने किया। ई-कार्यशाला में सहयोग डॉ राजेंद्र कुमार पांडेय डॉक्टर भूपेंद्र प्रताप सिंह डॉ सुषमा डॉक्टर देवेंद्र उज्जवल संतोष त्यागी नितिन त्यागी आदि का रहा।
रिपोर्ट: सुशील कुमार
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