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यूपी विधानसभा में सीएए को लेकर विपक्ष ने किया जोरदार हंगमा

बजट का सत्र का दूसरा दिन भी हंगामेंदार ही रहा। सदन की कार्यवाही शुरू होते ही काग्रेस के सदस्य प्रदेश की कानून व्यवस्था की चर्चा कराए जाने की मांग को लेकर वेल में आ गए। कांग्रेस सदस्यों की मांग थी कि प्रदेश की कानून व्यवस्था इस समय ज्वलंत मुद्दा है इसलिए प्रश्नकाल को स्थगित कर पहले इसी मुद्दे पर चर्चा कराई जाए।

SK Gautam
Published on: 14 Feb 2020 2:09 PM GMT
यूपी विधानसभा में सीएए को लेकर विपक्ष ने किया जोरदार हंगमा
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लखनऊ: केन्द्र सरकार के नागरिक संशोधन कानून (सीएए) का मामला अभी थमता नजर नही आ रहा है। केन्द्र से लेकर प्रदेश में हो रहे आंदोलन के बीच आज यह मामला यूपी विधानसभा में भी उठा जहां विपक्ष ने आरोप लगाया कि सीएए के बहाने पुलिस प्रदर्शनकारियों पर अत्याचार कर रही है वहीं सत्ता पक्ष ने कहा कि कानून से किसी को खिलवाड करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। अराजकता करने वाले किसी को भी सरकार बख्शने वाली नहीं है। सरकार के इस जवाब से नाराज होकर विपक्ष सदन का बायकाट किया।

प्रदेश की कानून व्यवस्था इस समय ज्वलंत मुद्दा

बजट का सत्र का दूसरा दिन भी हंगामेंदार ही रहा। सदन की कार्यवाही शुरू होते ही काग्रेस के सदस्य प्रदेश की कानून व्यवस्था की चर्चा कराए जाने की मांग को लेकर वेल में आ गए। कांग्रेस सदस्यों की मांग थी कि प्रदेश की कानून व्यवस्था इस समय ज्वलंत मुद्दा है इसलिए प्रश्नकाल को स्थगित कर पहले इसी मुद्दे पर चर्चा कराई जाए। विधानसभाध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित द्वारा प्रश्नकाल के बाद इस मुद्दे को सुने जाने के निर्देश को भी कांग्रेसी सदस्य मानने को तैयार नहीं हुए।

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इस हंगामें के बीच सपा-बसपा के सदस्य भी इसी मुदृदे पर चर्चा कराए जाने की मांग खारिज होने के बाद सदन से वाकआउट कर गए। हंगामें के चलते सदन की कार्यवाही तीस मिनट के लिए स्थगित कर दी गयी। स्थगन के बाद ही सदन की कार्यवाही शुरू हुई। आज ही विधानसभा में सारे विपक्षी दलों ने सीएए एनआरसी के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान पुलिसिया कार्रवाई और और उसमें मारे गए लोगों का मुद्दा उठाया।

पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर बिना चेतावनी दिए उनपर गोलियां चलाई

नेता प्रतिपक्ष रामगोविन्द चैधरी ने कहा कि उनकी पार्टी द्वारा सीएए और एनआरसी के विरोध में 19 दिसंबर को प्रदेश भर में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए थे। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी का प्रदर्शन शांतिपूर्ण था लेकिन सरकार ने आंदोलन को दबाने और कुचलने के लिए प्रदर्शनकारियों पर पुलिसबल का इस्तेमाल किया। इन प्रदर्शनों में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ आम लोग भी थे पुलिसिया कार्रवाई में पूरे प्रदेश में 25 से ज्यादा लोग मारे गए। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर बिना चेतावनी दिए उनपर गोलियां चलाई।

उन्होंने सरकार पर अत्याचारी और लोकतंत्र की आवाज दबाने का भी आरोप लगाया। नेता प्रतिपक्ष की मांग थी कि प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा की हाईकोर्ट के सिटिग जज से जांच कराई जाए तथा प्रदर्शन के दौरान मारे गए लोगों के परिजनों को पचास लाख का मुआवजा दिया जाए।

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बसपा के सदस्य लालजी वर्मा ने भी इस मुद्दे् पर प्रर्दशनकारियों पर की गई पुलिसिया कार्रवाई को अलोकतांत्रिक बताया कहा कि ऐसा अत्याचार तो ब्रिटिश हुकुमत में भी नहीं होता था। उन्होने कहा कि प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई के नाम पर पुलिस ने लोगों की हत्याएं की है। उन्होनंे सरकार पर प्रदेश नफरत फैलाने का आरोप लगाया। बसपा सदस्य ने कहा कि प्रदर्शन में विरोध पर कार्रवाई के नाम पर एक धर्म सम्प्रदाय के विशेष के लोगों के साथ अत्याचार हुआ है।

उन्होंने मृतकों के आश्रितों को पचास-पचास लाख दिए जाने की मांग की। कांग्रेस की सदस्य आराधना मिश्रा मोना ने भी इसी मुद्दे पर सरकार को घेरा कहा कि सीएए और एनआरसी के विरोध में जेलों में बंद निर्दोष लोगों को रिहा किया जाए तथा दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।

विरोध प्रदर्शन के नाम पर किसी को कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं

इस मुद्दे पर विपक्षी दलों द्वारा लगाए गए आरोपों और घटना की सिटिग जज से जांच कराए जाने की मांग को सिरे से खारिज करते हुए संसदीय कार्यमंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने कहा कि विरोध प्रदर्शन करने की स्वतंत्रता सबको है लेकिन विरोध प्रदर्शन के नाम पर किसी को कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। जिस किसी ने भी कानून हाथ में लेने की कोशिश की उसके खिलाफ कार्रवाई की गयी। संसदीय कार्यमंत्री ने कहा कि सीएए कानून किसी की नागरिकता को प्रभावित नहीं करता।उन्होने कहा कि सात-आठ जिलों में हिंसक आंदोलन हुआ। उन्होने इस मुद्दे पर विपक्ष पर लोगों को गुमराह करने का भी आरोप लगाया।

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संसदीय कार्यमंत्री ने बताया कि प्रदर्शनकारियों द्वारा किए गए पथराव व आगजनी में जहां सरकारी सम्पत्ति का नुकसान हुआ वहीं साठ से ज्यादा पुलिसकर्मियों को भी चोटे आई। उन्होंने कहा कि प्रदर्शन के दौरान जो लोग भी मारे गए वे आपस की ही हिंसक कार्रवाई में मारे गए। उन्होंने कहा कि उपद्रवियों पर कार्रवाई किए जाने का कानून पहले से था लेकिन कभी उसको अमल में नहीं लाया गया जबकि प्रदेश की योगी सरकार ने इस कानून को सख्ती से लागू किया।

संसदीय कार्यमंत्री के इस जवाब से अंसतुष्ट विपक्ष के सदस्य घटना एनआरसी और सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शनों में हिंसा की सिटिग जज से जांच कराए जाने की मांग को लेकर वेल में आ गए। अध्यक्ष के बार-बार कहने के बाद विपक्षी सदस्य अपने आसन पर नहीं गए तो सदन की कार्यवाही तीस मिनट के लिए स्थगित कर दी गयी।

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