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जानिए क्या है AGR, जिससे टेलीकॉम कंपनियों को बर्बाद होने का सता रहा डर
एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) की वजह से भारत की कई टेलीकॉम कंपनियां बर्बादी की कगार पर हैं। टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया को इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारतीय कॉरपोरेट इतिहास का सबसे अधिक 50,921 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
नई दिल्ली: एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) की वजह से भारत की कई टेलीकॉम कंपनियां बर्बादी की कगार पर हैं। टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया को इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारतीय कॉरपोरेट इतिहास का सबसे अधिक 50,921 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। तीसरी तिमाही में भी उसे 6,438 करोड़ का घाटा हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने एजीआर मामले में सुनवाई के दौरान नाराजगी जताई है और कहा कि क्या सरकारी अधिकारी सुप्रीम कोर्ट से ऊपर हैं। टेलिकॉम कंपनियों के MDs को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का नोटिस जारी कर 17 मार्च को कोर्ट में तलब किया गया है। आईए जानते हैं क्या है यह मामला, क्यों इससे बर्बाद हो रही हैं टेलीकॉम कंपनियां?
क्या है AGR
एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूजेज और लाइसेंसिग फीस है। इसके दो हिस्से होते हैं- स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस, जो क्रमश 3-5 प्रतिशत और 8 प्रतिशत होता है।
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जानिए विवाद
दरअसल दूरसंचार विभाग ने कहा था कि AGR की गणना किसी टेलीकॉम कंपनी को होने वाली संपूर्ण आय या रेवेन्यू के आधार पर होनी चाहिए, जिसमें डिपॉजिट इंट्रेस्ट और एसेट बिक्री जैसे गैर टेलीकॉम स्रोत से हुई आय भी शामिल हो, तो वहीं टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि AGR की गणना सिर्फ टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय के आधार पर हो।
वर्ष 2005 में सेल्युलर ऑपरेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) ने एजीआर की गणना की सरकारी परिभाषा को चुनौती दी थी, लेकिन तब दूरसंचार विवाद समाधान और अपील न्यायाधिकरण (TDSAT) ने सरकार के रुख को वैध मानते हुए कंपनियों की आय में सभी तरह की प्राप्तियों को शामिल माना था।
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सुप्रीम कोर्ट का आदेश
टेलीकॉम कंपनियों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया था। सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर, 2019 के अपने आदेश में दूरसंचार विभाग के रुख को सही ठहराया और सरकार को यह अधिकार दिया कि वह करीब 94,000 करोड़ रुपये की बकाया समायोजित ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) टेलीकॉम कंपनियों से वसूलें। ब्याज और जुर्माने के साथ यह करीब 1.47 लाख करोड़ रुपये हो जाता है।
कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों से तीन महीने के अंदर यह बकाया राशि जमा करने को कहा। कोर्ट ने इसके लिए 23 जनवरी, 2020 अंतिम तिथि तय की थी, लेकिन अभी तक टेलीकॉम कंपनियों ने बकाया नहीं चुकाया है। इसीलिए शुक्रवार यानी 14 फरवरी को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सरकार और टेलीकॉम कंपनियों को जमकर फटकार लगाई।
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सुप्रीम कोर्ट ने संचार विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को जवाब देने के लिए कहा कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों न की जाए? यही नहीं ऐसे अधिकारियों और सभी टेलीकॉम कंपनियों के सीएमडी को 17 मार्च को कोर्ट की अवमानना मामले की सुनवाई का सामना करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना के लिए एयरटेल और वोडफोन आइडिया जैसी कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
इन कंपनियों पर सबसे अधिक बकाया
इसकी सबसे ज्यादा मार एयरटेल और वोडाफोन आइडिया पर पड़ रही है। इस आदेश के मुताबिक बिना ब्याज और जुर्माने के एयरटेल को 21,682.13 करोड़ रुपये, वोडाफोन को 19,823.71 करोड़, रिलायंस कम्युनिकेशंस को 16,456.47 करोड़ रुपये और बीएसएनएल को 2,098.72 करोड़ रुपये देने हैं।
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यही नहीं, PGCIL, RailTel, सभी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर, प्रसार भारती, सैटेलाइट कम्युनिकेशन प्रोवाइडर और केबल ऑपरेटर सहित 40 अन्य लाइसेंस धारक भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय AGR की परिभाषा में आएंगे। लेकिन गैर टेलीकॉम कंपनियों से यह चार्ज किस तरह से लिया जाएगा, इस पर विचार किया जा रहा है।