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रफ्तार बढ़ाने की सड़कें बन रहीं कछुआ चाल से

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Published on: 1 Nov 2019 7:15 AM GMT
रफ्तार बढ़ाने की सड़कें बन रहीं कछुआ चाल से
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर : पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार में केन्द्रीय योजनाओं को लटकाने का आरोप तो खूब लगाए जाते रहे लेकिन वर्तमान सरकार में भी योजनाओं को रफ्तार नहीं दिया जा सका है। पिछले दिनों गोरखपुर-वाराणसी फोरलेन के काम में घोर सुस्ती की खबरें सुर्खियों में आईं जब मजबूरी में मुख्यमंत्री को इस हाइवे पर सफर करना पड़ा था। बाद में मुख्यमंत्री ने प्रमुख सचिव समेत संबंधित जिलों के सभी अफसरों को तलब कर फटकार लगाई। इसी बैठक से निर्देश जारी हुआ कि प्रदेश की सभी सड़कों को 15 नवंबर तक गड्ढा मुक्त कर दिया जाए। हालांकि गोरखपुर-वाराणसी फोरलेन की दुर्दशा पर मुख्यमंत्री से पहले प्रमुख सचिव (पीडब्ल्यूडी) भी मातहतों को फटकार लगा चुके थे। मुख्यमंत्री से लेकर प्रमुख सचिव के भुक्तभोगी होने के बाद भी फोरलेन निर्माण का कार्य रफ्तार पकड़ता नहीं दिख रहा है। फोरलेन निर्माण की हकीकत का अंदाजा इसी से हो जाता है कि अब भी 10 फीसदी से अधिक जमीन का अधिग्रहण बाकी है। अधिग्रहण के मामले कोर्ट में भी पहुंच चुके हैं।

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अफसर हो गए चिकना घड़ा

गोरखपुर-वाराणसी फोरलेन की दुर्दशा बीते सितम्बर महीने में सुर्खियां बनीं थीं जब प्रमुख सचिव पीडब्ल्यूडी नितिन रमेश गोकर्ण सड़क मार्ग से वाराणसी से गोरखपुर पहुंचे थे। इसके बाद 27 सितम्बर को प्रमुख सचिव ने मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़ और गोरखपुर के जिलाधिकारी से लेकर एनएचएआई के अफसरों के साथ गोरखपुर में बैठक कर लापरवाही पर उनकी जमकर क्लास ली थी। प्रमुख सचिव का स्पष्ट निर्देश था कि 15 दिन के अंदर अधिग्रहण का काम पूरा करने के साथ ही फोरलेन को गड्ढामुक्त बनाया जाए। संयोग ही था कि 15 दिन से अधिक का समय गुजरने के बाद खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मऊ होते हुए वाराणसी का सफर सड़क मार्ग से तय करना पड़ा। फोरलेन की दुर्दशा से नाराज मुख्यमंत्री ने पहले लखनऊ में अफसरों की बैठक बुलाकर क्लास ली और रही-सही कसर गोरखपुर में समीक्षा बैठक में पूरी कर दी। फोरलेन की वर्तमान स्थिति और कार्य की प्रगति तस्दीक कर रही है कि अफसरों पर मुख्यमंत्री की फटकार या नाराजगी का कोई असर नहीं पड़ा है। पिछले 15 दिनों में काम पहले जैसी सुस्त रफ्तार से ही जारी है।

अब दावा 2020 का

एनएचएआई के परियोजना निदेशक श्रीप्रकाश पाठक का दावा है कि मार्च 2020 तक फोरलेन का निर्माण पूरा हो जाएगा। पर वह अधूरे अधिग्रहण कार्य को लेकर कोई जवाब नहीं दे पाते हैं। अभी भी 10 फीसदी से अधिक अधिग्रहण कार्य अधूरा है। सवाल है कि बिना अधिग्रहण कार्य के पूरा हुए फोरलेन का निर्माण कैसे पूरा होगा। गोरखपुर-वाराणसी फोरलेन के लिए जमीन अधिग्रहण जिला प्रशासन को करना है। जितनी रकम मांगी जा रही है, उतनी दी गई है। अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी हो तो फोरलेन के निर्माण में तेजी आ जाएगी।

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बीमार बनाती सड़क

बांसगांव से कौड़ीराम और बड़हलगंज से गोला के बीच लोगों को दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है। गोला में प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर बीएन जायसवाल बताते हैं कि अधूरे फोरलेन में गढ्ढïों और धूल-गर्दा के कारण हड्डी और सांस के रोगियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। अब तो फोरलेन की दुर्दशा पर सोशल मीडिया में एक से बढ़कर एक कमेंट आ रहे हैं। फिल्म शोले के एक सीन को दिखाकर कमेंट हो रहा है। जिसमें धर्मेन्द्र घायल अमिताभ बच्चन से पूछते हैं, 'यह कैसे हुआ। ' जवाब मिलता है, 'गोरखपुर-वाराणसी मार्ग से लौट रहा था। ' वहीं पुराने वीडियो फुटेज के साथ कमेंट कर फोरलेन की दुर्दशा को बयां किया जा रहा है।

गडकरी ने 2016 में किया था शिलान्यास

केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गोरखपुर-कुशीनगर फोरलेन के तेनुआ टोलप्लाजा पर 8 सितम्बर 2016 को आयोजित कार्यक्रम में 2738 करोड़ रुपए के गोरखपुर-वाराणसी फोरलेन और 535 करोड़ रुपए के कालेसर (गीडा) से जंगल कौडिय़ा फोरलेन बाईपास प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया था। मंच से बतौर सांसद योगी आदित्यनाथ ने तत्कालीन प्रदेश सरकार पर केन्द्रीय योजनाओं को लटकाने का आरोप लगाया था। नितिन गडकरी ने गोरखपुर-वाराणसी फोरलेन को दो साल के अंदर पूरा करने का दावा किया था। यानी इस फोरलेन को सितम्बर-2018 में ही पूरा हो जाना था। बाद में लोकार्पण की तिथि दिसम्बर 2018 की गई। इसके बाद फिर दावा किया गया कि सितम्बर 2019 तक निर्माण कार्य पूरा होगा। फिलहाल की प्रगति को देखकर निर्माण कार्य दो साल से पहले पूरा होता नहीं दिख रहा है। हालांकि जिम्मेदार मार्च 2020 में लोकार्पण का दावा कर रहे हैं। अफसरों के दावे की हवा अधिग्रहण की हकीकत ही निकाल रही है। फोरलेन के लिए गोरखपुर से बड़हलगंज के बीच 153.148 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण होना था, अभी 90 फीसदी अधिग्रहण ही हो सका है।

लंबा चक्कर लगा कर जाती हैं बसें

गोरखपुर-वाराणसी मार्ग पर गोरखपुर, प्रयाणराज व काशी डिपो की एसी बसों का संचालन करीब-करीब बंद हो गया है। रोडवेज प्रशासन की दलील है कि जितना किराया मिल रहा है, उससे अधिक बसों की मरम्मत में खर्च हो जा रहा है। राप्तीनगर डिपो के ए.आर.एम. मुकेश कुमार का कहना है कि बारिश में कुछ दिनों तक बसों को गोला से डायवर्ट कर चलाया गया था। उम्मीद थी बारिश का मौसम गुजरने के बाद फोरलेन की स्थिति में सुधार होगा लेकिन अब भी सफर करना मुश्किल है। बड़हलगंज निवासी पंकज श्रीवास्तव बताते हैं कि गोरखपुर आना होता है तो हिम्मत जवाब दे देती है। जरूरी हुआ तो देवरिया मार्ग होते हुए गोरखपुर जाते हैं जिससे करीब 35 किमी अधिक दूरी तय करनी पड़ती है। वहीं मऊ से गोरखपुर आने वाले लोग फोरलेन के बजाए बलिया-देवरिया होते हुए गोरखपुर जाते हैं। मऊ में एक स्कूल संचालित करने वाले यज्ञदेव का कहना है कि निर्माणाधीन फोरलेन पर समय और पेट्रोल खर्च के साथ गाड़ी खराब होने की संभावना बराबर बानी रहती है। दो बार फोरलेन से आने का खामियाजा कार की मरम्मत पर 20 हजार रुपए खर्च करके भुगतना पड़ा।

अन्य परियोजनाओं की भी सुस्त रफ्तार

मार्च 2019 में लोकार्पण के दावे के साथ शुरू हुए कालेसर-जंगल कौडिय़ा फोरलेन का 80 फीसदी काम भी अभी पूरा नहीं हो सका है। 2016 में गोरखपुर में गडकरी के मंच से योगी आदित्यनाथ ने गोरखनाथ मंदिर होकर गुजरने वाले मोहद्दीपुर-जंगल कौडिय़ां फोरलेन की मांग रखी थी। 17.50 कि.मी. लंबे फोरलेन की वित्तीय स्वीकृति के बाद पीडब्ल्यूडी ने टेंडर भी जारी कर दिया। निर्माण कार्य तेजी से चल भी रहा है लेकिन अभी तक यह तय नहीं हो सका है कि शहरी इलाके में सड़क कितनी चौड़ी होगी। कौन-कौन से निर्माण ढहाए जाएंगे। गोरखनाथ मंदिर के पास फोरलेन निर्माण के लिए सड़क के दोनों तरफ कितना निर्माण ध्वस्त होगा। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार उर्फ लल्लू का कहना है कि योगी आदित्यनाथ सिर्फ आरोप लगाने वाले सीएम हैं। अब तो प्रदेश से लेकर केन्द्र तक उनकी ही सरकार है। ऐसे में क्यो आधे-अधूरे फोरलेन के बड़े-बड़े गड्ढे लोगों को मरने के लिए छोड़ दिए गए हैं। अपनी ही देखरेख में बनने वाली सड़कों का मुख्यमंत्री रहते योगी आदित्यनाथ लोकार्पण कर पाएंगे, मुश्किल ही लगता है।

देवरिया और महराजगंज फोरलेन का काम भी सुस्त

फोरलेन सड़कों का संजाल बिछाकर चुनावी गाड़ी को रफ्तार देने के उम्मीद के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले वर्ष मई में प्रदेश की 32 फोर लेन सड़कों का काम दिसम्बर 2018 तक पूरा करने का टारगेट अधिकारियों को दिया था। दावा था कि प्राथमिकता वाली इन फोरलेन के काम के लिए पैसे की कमी नहीं होगी और विशेष मानीटरिंग टीम हर 15 दिन पर प्रगति की समीक्षा करेगी। सच्चाई ये है कि प्रदेश के अन्य जिलों में फोरलेन के काम की कौन बात करे खुद मुख्यमंत्री के जिले में फोरलेन निर्माण की बदतर स्थिति है। गोरखपुर शहर के तीन फोरलेन का निर्माण कार्य भी अधूरा पड़ा हुआ है। गोरखपुर से महराजगंज फोरलेन का निर्माण 183 करोड़ रुपए की लागत से हो रहा है। अधिकारी अभी तक यह तय नहीं कर सके हैं कि गोरखपुर के शहरी हिस्से में फोरलेन की चौड़ाई कितनी होगी। कितने और मकानों का ध्वस्तीकरण होना है। जिन लोगों के मकान-दुकान ढहाए गएï हैं वे लोग संघर्ष समिति का गठन कर मुआवजे समेत अन्य मांगों को जिम्मेदारों के समक्ष रख रहे हैं। अफसरों ने मुवावजा को लेकर प्रस्ताव तैयार किया था, वह फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है। वहीं 280 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले गोरखपुर-देवरिया फोरलेन का निर्माण भी 70 फीसदी पूरा नहीं हो सका है। गोरखपुर-देवरिया फोरलेन पर छह पुलों का निर्माण कराया जाना है। इसमें चौरीचौरा और गौरीबाजार के बीच रेलवे क्रासिंग पर ओवरब्रिज भी बनना है। दो फ्लाईओवर का निर्माण ब्रिज कारपोरेशन को कराना है। कुल चार पुलों की जिम्मेदारी ब्रिज कारपोरेशन और पीडब्ल्यूडी के पास है। ये काम भी रफ्तार नहीं पकड़ सका है। देवरिया फोरलेन की चौड़ाई पर नगर विधायक डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल ने मोर्चा खोल रखा है। वो गोरखपुर एम्स के सामने मकानों के ध्वस्तीकरण नोटिस का विरोध कर रहे हैं। उनकी दलील है कि जब एम्स प्रशासन फोरलेन के लिए अपनी जमीन नहीं दे रहा है तो नागरिकों का मकान और दुकान तोड़कर सड़क निर्माण का क्या औचित्य है।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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