×

हौसले और हुनर के जरिए दम दिखाते युवा

seema
Published on: 10 Jan 2020 7:31 AM
हौसले और हुनर के जरिए दम दिखाते युवा
X

मनीष श्रीवास्तव

लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो साल पहले जब एक साक्षात्कार के दौरान स्वरोजगार के संदर्भ में कहा था कि क्या पकौड़ा बेचना स्व रोजगार नहीं है, तो उनकी इस बात पर काफी हो हल्ला मचा था। विपक्षी नेताओं ने इसका खूब मजाक भी उड़ाया। वैसे सच्चाई तो ये है कि ये मजाक उड़ाने वाली बात नहीं है। कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता और स्वरोजगार आखिर स्वरोजगार ही होता है। इसे तमाम युवाओं ने साबित भी किया है।

भले ही नौकरी करना पहली प्राथमिकता है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि युवाओं की सोच तेजी से बदल रही है। देश के युवा स्वरोजगार को खुले हाथों से अपना रहे हैं। इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट जैसी ऊंची शिक्षा प्राप्त करने के बाद युवा नौकरी के पीछे भागने के बजाय बड़े-छोटे शहरों में अपना खुद का काम करने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं और लोगों को रोजगार दे रहे हैं। लखनऊ में ही देखते-देखते ढेरों ऐसे बिजनेस चलने लगे हैं जिन्हें नई सोच वाले युवाओं ने शुरू किया है। ये युवा चाय नाश्ते के माडर्न लुक वाले स्टाल, फूड कार्ट, फूड बस, फ्लावर शॉप, डिजाइनर फ्लावर पॉट सरीखे बिजनेस से लेकर बड़े-बड़े स्टार्टअप तक शुरू कर रहे हैं।

यह भी पढ़ें : सहकारी गन्ना समिति तितावी मुजफ्फरनगर के सदस्य संचालक बर्खास्त

स्टार्टअप पर फोकस कर रहे युवा

मौजूदा दौर में सरकारी नौकरी पाना आसान काम नहीं है। इसके साथ ही सरकारी नौकरियां कम भी होती जा रही हैं। निजी सेक्टर की अपनी सीमितताएं हैं। ऐसे में समय गंवाने की बजाय प्रतिभाशाली युवा अपने स्टार्टअप की ओर फोकस कर रहे हैं। अच्छी डिग्रियों से लैस इन युवाओं को किसी सरकारी इमदाद की दरकार नहीं है। इन युवाओं ने लोन के फेर में पड़े बगैर बहुत ही कम पूंजी में ऐसे-ऐसे नए प्रयोग कर दिए, जो लोगों के लिए मिसाल बन गए हैं। दुकान मिली तो दुकान वरना वैन में ही किचन बनाकर उसे आकर्षक तरीके से सजाकर ये युवा अपनी टीम के साथ अपनी कारोबारी प्रतिभा को आजमा रहे हैं। मजे की बात तो यह है कि इनकी कमाई किसी भी नौकरी वाले से ज्यादा और ये युवा कई लोगों की आय का सहारा भी बने हुए हैं। 'अपना भारत' ने लखनऊ के कुछ ऐसे ही युवाओं की जिंदगी को टटोला तो अनेक प्रेरणादायक कहानियां निकलकर सामने आईं।

वीर जी: पुनीत कपूर

राजधानी के अलीगंज इलाके में 'वीरजी' के नाम से खानपान की दुकान चलाने वाले पुनीत कपूर भी एक ऐसे युवा हैं, जिनके सामने जिंदगी ने तमाम मुश्किलें खड़ी कीं,लेकिन जुझारू स्वभाव के पुनीत ने हार नहीं मानी। कभी क्रिकेट में उज्जवल भविष्य को बनाने में जुटे लेग ब्रेक गेंदबाज पुनीत का सुनहरा भविष्य सामने था। वह रणजी ट्राफी में यूपी की गेंदबाजी आक्रमण में शामिल थे। जिंदगी ने अचानक ही यू टर्न लिया और खेल के दौरान घुटनों में लगी चोट ने उन्हेंढाई साल के लिए खेल के मैदान से निकालकर बिस्तर पर जाने के लिए मजबूर कर दिया।

ढाई साल बाद जब वह अपने पैरों पर खड़े हुए तो क्रिकेट का करियर हाथ से निकल चुका था। वह डिप्रेशन में चले गए। परिवारवालों खास कर पिता की हौसलाअफजाई से हिम्मत वापस आई। कुछ अपना काम करने का सोचा। करीब तीन महीने पहले ही उन्होंने दिल्ली की एक फूड चेन 'वीरजी' की फ्रेंचाइजी ली और इसे सफल बनाने में जुट गए। आज पुनीत छोटी सी जगह में अपना आउटलेट चला रहे हैं। स्विगी और जोमैटो जैसीफूड सप्लाई कंपनियों से जुड़कर वे बढिय़ा बिजनेस कर रहे हैं। वे रोजाना सात से आठ हजार रुपये की बिक्री कर लेते हैं और उन्होंने अपनी दुकान में चार लोगों को काम भी दे रखा है।

यह भी पढ़ें : अखिलेश का दीपिका प्रेम! ‘छपाक’ के लिए बुक कराया पूरा सिनेमा हॉल

गुरु कृपा तंदूरी चाय: पंकज सिंह

बलिया के रहने वाले किसान पुत्र व आट्र्स ग्रेजुएट पंकज सिंह घर में अच्छी खेती होने के बावजूद कुछ नया करना चाहते थे। खेती से आगे बढऩे का सपना उनकी आंखों में था। घर वालों का कहना था कि खेती नहीं तो शहर जाकर कोई नौकरी कर लें, लेकिन पंकज की सोच और राहें जुदा थी। वह महज दो हजार रुपये लेकर लखनऊ आ गए। पूंजी थी नहीं और कुछ करना भी था। सो उन्होंने अपनी दादी के सिखाए हुनर पर हाथ आजमाने की सोची और सड़क किनारे तंदूरी चाय की दुकान खोल दी।

उनकी तंदूरी चाय लोगों को पसंद आने लगी। धीरे-धीरे धंधा चल निकला तो उन्होंने दो हेल्पर भी रख लिए। एक समस्या थी कि अतिक्रमण हटाने वाला नगर निगम का दस्ता आता तो उन्हें अपनी दुकान हटानी पड़ती थी। कई बार नगर निगम वाले उनकी भट्टी को भी तोड़ देते थे। बार-बार होने वाले इस नुकसान से बचने के लिए पंकज ने अपनी कुछ जमा पूंजी और बैंक से लोन लेकर एक टाटा मैजिक खरीदी और उसी में अपना किचन जमा लिया। अब वह इसी फूड बस में तंदूरी चाय के साथ ही कई अन्य तरह के खाने-पीने के सामान बेचते हैं। उनकी तंदूरी चाय काफी मशहूर हो चुकी है। पंकज बताते हैंकि सारे खर्चे निकालने के बाद वह रोज का करीब दो से ढाई हजार रुपये बचा लेते हैं।

गिलौरी: पवन सिंह

बनारसी पान का जलवा पूरे देश में है। इसी जलवे को अपने धंधे का आधार बनाया बनारस के पवन सिंह ने। पवन की पान की दुकान है, लेकिन यह कोई गुमटी वाली दुकान नहीं है बल्कि किसी भी ब्रांडेड कंपनी के शोरूम जैसी है। महज एक लाख रुपये की लागत से शुरू की गई इस दुकान में आपको 20 रुपये से लेकर 2200 रुपये तक के पान मिल जाएंगे। यहां आइस्क्रीम में लिपटे ठंडे पान हैं तो आग वाले पान भी।

दुकान में दो लड़के पान लगाने के लिए मौजूद रहते हैं। इनमें से एक हिटलर ठाकुर बताते हैं कि सबसे ज्यादा डिमांड चाकलेट पान की रहती है, वैसे गर्मी में आइस्क्रीम पान भी खूब बिकता है। हिटलर बताते हैं कि उनके यहां सबसे महंगा पान फस्र्ट नाइट पान है, जिसकी कीमत 2200 रुपये प्रति बीड़ा है। वह बताते हैं कि आमतौर पर रोजाना चार से पांच हजार रुपये की बिक्री हो जाती है।

बाटी-चोखा: विक्रांत दूबे

पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे लोकप्रिय व्यंजन बाटी-चोखा की वैसे तो लखनऊ में कई दुकानें हैं, लेकिन इसे खांटी देशी अंदाज में परोसने का विचार आया विक्रांत दूबे को। विक्रांत ने गोमतीनगर में बाटी-चोखा के नाम से ही रेस्तरां खोल दिया। ग्रामीण परिवेश की डिजाइन में सजाए गए इस रेस्तरां में बाटी-चोखा के अलावा खिचड़ी, कढ़ी चावल, निमोना-चावल भी परोसा जाता है। मैनेजर चंदन सिंह बताते हैं कि उनका एक रेस्तरां वाराणसी में और दो लखनऊ में है। वह बताते हैं कि उनके रेस्तरां में मसाले से लेकर सभी चीजेंखुद तैयार की जाती हंै। दोनों दुकानों को मिलाकर रोजाना करीब 60 से 70 हजार रुपये की बिक्री हो जाती है। चंदन के मुताबिक करीब पचास लोग उनके यहां काम करते हैं।

यह भी पढ़ें : युवाओं की ऊर्जा दोगुना कर देगा युवा महोत्सव, हो रही भव्य तैयारी

जेल कैफे: अमित मिश्रा

तीस साल के अमित मिश्रा ने ग्रेेजुएशन किया है। नौकरी की बजाय उन्होंने रेस्तरां के बिजनेस में उतरने की ठानी। साल भर पहले अलीगंज में 'जेल कैफे' के नाम से अपना रेस्तरां खोला। जेल की थीम पर बने इस कैफे में देशी से लेकर कांटीनेन्टल तक हर तरह का खाना उपलब्ध है। धीमी रोशनी में जेल की सींखचों के पीछे बैठकर खाना खाने का रोमांच लोगों को आकर्षित करता है। जेल का कैदी होने का अनुभव लेने के लिए यहां हथकड़ी की भी व्यवस्था है। रेस्तरांके मैनेजर मनीष त्रिपाठी बताते हैं कि अब गोमतीनगर में भी जल्द ही एक कैफे खोलने की तैयारी है। अमित मिश्रा के इस रेस्तरां में करीब तीस लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

कटहल प्वाइंट: ऊषा विश्वकर्मा

ऊषा विश्वकर्मा में हमेशा से कुछ करने का जज्बा रहा है। महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए उन्होंने 'महिला उत्थान' और 'रेड ब्रिगेड' संस्था भी बना रखी है। ऊषा ने गोमतीनगर में 'कटहल प्वाइंट' नाम से एक फूड आउटलेट खोला है जहां सिर्फ कटहल से बने व्यजंन मिलते हैं। इनमें कटहल रोल,कटहल बिरयानी, कटहल खीर, कटहल हलवा और कटहल शेक भी शामिल हैं। यहां कटहल केरल से आता है और हर सीजन में कटहल के व्यंजन परोसे जाते हैं। ऊषा बताती हैं कि कटहल के व्यंजन उन्हें बहुत पसंद थे तो उन्होंने सोचा कि वह केवल कटहल के व्यजंन ही लोगों को परोसेंगी। उन्होंने इसकी एक दुकान खोली और वह चल निकली। कटहल प्वाइंट के लिए उन्होंने महज डेढ़ लाख रुपये ही निवेश किया और इस आउटलेट में उनकी 'रेड ब्रिगेड' की लड़कियां ही काम करती हैं। सिर्फ सेल्स कांउटर पर दो पुरुष सहयोगी हैं। रोजाना करीब दो हजार रुपये की कमाई हो जाती है।

क्यारी: प्रखर सक्सेना

आज के युवा अपने सपनों को पूरा करने के लिए कितना सजग हैं, इसकी मिसाल हैं प्रखर सक्सेना। कला स्नातक प्रखर का मन प्रकृति और प्राकृतिक चीजों में इतना रमा कि उन्होंने पुणे के वनस्पति संस्थान, एनबीआरआई और थाईलैंड में वनस्पति शास्त्र की पढ़ाई कर डाली। कला स्नातक की रचनात्मकता और वनस्पति शास्त्र का ज्ञान जब मिला तो प्लांट डेकोरेशन के नए काम ने जन्म ले लिया।

प्रखर घरों, बड़े क्लबों और अन्य जगहों पर लैंस्केपिंग और क्यारियों को डिजाइन करने का काम करते हैं। कलात्मक ढंग से क्यारियों को सजाने का शौक आज उनका व्यवसाय बन गया है। करीब ढाई साल पहले शुरू किए गए इस व्यवसाय के जरिये वह 15 लोगों को रोजगार भी प्रदान कर रहे हैं और राजधानी लखनऊ में उनके 'क्यारी' के नाम से आलमबाग, कल्याणपुर तथा इंदिरानगर में तीन आउटलेट हैं। प्रखर बताते है कि इस काम को अगर कोई ढंग से और मन लगाकर करे तो महीने में लाख से डेढ़ लाख रुपये कमा सकता है।

टैंकअप पेट्रो वेंचर: गौरव लाट

युवा उद्यमी गौरव लाट द्वारा शुरू की गई 'टैंकअप पेट्रो वेंचर' एक ऐसी कंपनी है जो लखनऊ में विभिन्न होटलों और बड़े संस्थानों को डीजल की आपूर्ति करती है। कंपनी के पास सौ से छह हजार लीटर क्षमता तक के टैंकर वाहन है जो डीजल की आपूर्ति करते हैं। कंपनी डीजल आपूर्ति के लिए डीजल के मूल्य के अलावा एक रुपया प्रति लीटर लेती है और 100 लीटर से कम की आपूर्ति नहीं करती हैै।

सूबे में दो हजार से अधिक स्टार्टअप

केंद्र सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग 'स्टार्टअप इंडिया' का काम कर रहा है। उत्तर प्रदेश में 2157 से अधिक मान्यताप्राप्त स्टार्टअप हैं। 260 निवेशक और 20 से अधिक मेंटर हैं। यूपी में सूचना प्रौद्योगिकी एवं स्टार्टअप नीति 2016 के तहत स्टार्टअप को प्रोत्साहन देने का काम किया जा रहा है। यूपी में स्टार्टअप के लिए केपीएमजी एडवाइजरी सर्विसेज प्रा.लि. कंसलटेंट की भूमिका में है। अगर आप भी कुछ करना चाहते हैं तो 10 अशोक मार्ग, सादुल्लानगर, नरही, लखनऊ में संपर्क कर सकते हैं।

जिला उद्योग केंद्र से मिलती है मदद

कई युवा कुछ काम तो करना चाहते हैं मगर पूंजी न होने से सपना नहीं पूरा कर पाते। ऐसे युवाओं को निराश होने की जरुरत नहीं है। अगर कोई युवा अपना रोजगार शुरू करना चाहता हैं, लेकिन उसके पास पूंजी नहीं है तो वह अपने जिला उद्योग केंद्र से लोन के लिए मार्जिन मनी सब्सिडी ले सकता हैं। केंद्र और प्रदेश दोनों ही सरकारें स्व रोजगार को बढ़ावा देने के लिए आगे आई हैं। सरकार की मंशा यह है कि जिला उद्योग केंद्र से लोन लेकर जहां कोई व्यक्ति खुद का उपक्रम शुरू करेगा, वहीं वह कम से कम दो-चार और लोगों को काम पर रखेगा। इस तरह देश में बेरोजगारों की संख्या घटाई जा सकतीहै।

सहायक आयुक्त उद्योग आशुतोष श्रीवास्तव ने बताया कि जिला उद्योग केंद्र से मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत उत्पादन इकाई के लिए 25 लाख रुपये तक तथा मशीनों की मरम्मत जैसे सेवा कार्यों के लिए 10 लाख रुपये तक के लोन की मार्जिन मनी सब्सिडी दी जाती है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में दिसम्बर माह तक इस योजना के तहत 33 इकाइयोंको 101.18 लाख रुपये मार्जिनमनी सब्सिडी दी गई है।इसी तरह प्रदेश सरकार की एक अन्य योजना ओडी ओपी के तहत भी 20 लाख रुपये तक के प्रोजेक्ट को मार्जिन मनी सब्सिडी दी जाती है। इस योजना में मौजूदा वित्तीय वर्ष में 35 प्रोजेक्ट को 125 लाख रुपये की मार्जिन मनी सब्सिडी दी गई है।

इसी तरह केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्र में 35 फीसदी व शहरी क्षेत्रों में 25 फीसदी तक मार्जिन मनी सब्सिडी दी जाती है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में 36 प्रोजेक्ट को 146 लाख रुपये की मार्जिन मनी सब्सिडी दी गई है।

seema

seema

सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!