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हाथरस की 10 गलतियां: जिसके चलते सुलगा पूरा देश, विपक्ष को मिला मौका
इस पूरे मामले को तूल देने और मीडिया के चंदपा में डेरा डालने का बड़ा कारण कुप्रबंधन को माना जा रहा है। हाथरस गैंगरेप केस में पुलिस प्रशासन की गलतियों ने मामले को और जोर देने का काम किया।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में 19 वर्षीय युवती के साथ हुए गैंगरेप मामले ने पूरे देश को झकझोर दिया। पीड़िता की मौत के बाद से देशभर में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन कर दोषियों को सख्त से सख्त सजा देने की मांग की जा रही है। वहीं अब राज्य सरकार ने इस पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की है। साथ ही दोषियों को कड़ी सजा देने का भी विश्वास दिलाया है।
पूरे मामले में देर से जगी सरकार
कहा जा रहा है कि इस पूरे प्रकरण में सरकार काफी देर में जगी है। हाथरस के चंदपा कांड में शुरुआत से अनुभव की कमी रही, जिसके चलते कुछ बड़ी गलतियां हुईं। इस पूरे मामले को तूल देने और मीडिया के चंदपा में डेरा डालने का बड़ा कारण कुप्रबंधन को माना जा रहा है। जब शासन ने यह बात समझी तो मामले में एसपी से लेकर सीओ, कोतवाल, एसएसआई और थाने के हेड मुहर्रिर को निलंबित कर दिया गया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
शासन इस पूरे मुद्दे में देर से जगी इसलिए मीडिया को तमाम टिप्पणियां करने और विपक्षी दलों को निशाना साधने का मौका मिल गया। तो चलिए आपको बताते हैं पुलिस प्रशासन की वो गलतियां जिससे चंदपा में मीडिया का डेरा लगा-
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हाथरस मामले में पुलिस प्रशासन की गलतियां (फोटो- सोशल मीडिया)
क्या हुईं पुलिस प्रशासन से गलतियां?
मामला 14 सितंबर की सुबह साढ़े नौ बजे से शुरू हुआ। उस वक्त युवती अपनी मां के साथ खेत में घास काटने गई थी, इसी दौरान वो हमले में जख्मी हो जाती है। जिसके बाद उसके मां और भाई उसे लेकर थाना चंदपा लाते हैं और वो अपने ही गांव के एक युवक के खिलाफ हमले की शिकायत करते हैं। जिसके बाद पुलिस पीड़िता को मेडिकल टेस्ट के लिए जिला अस्पताल और फिर वहां से जेएन मेडिकल कॉलेज तक लेकर आती है।
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विश्वास में ना लाना भी बड़ी गलती
इस घटना के पांच दिन बाद यानी 19 सितंबर से सियासी दलों ने एंट्री मारी। लेकिन पुलिस प्रशासनिक ना अमला समझ पाया और ना ही पीड़ित परिवार को अपने विश्वास में ला पाया। बस वहीं से पूरे मामले ने अपना रुख बदला और बात फिर छेड़खानी से दुष्कर्म तक जा पहुंची। इस बीच पीड़िता की तबियत बिगड़ने के बाद उसे हायर सेंटर ले जाने में भी देरी हुई। उसे टाइम पर एम्स में रेफर ना करना एक बड़ी गलती साबित हुई।
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चंद्रशेखर की एंट्री ने मामले को दिया जोर
इस बीच चंद्रशेखर आजाद की एंट्री ने मामले को और तूल देने का काम किया। मामला इतना तूल ना पकड़ता अगर आजाद के आने पर रोकटोक ना की जाती। अगर वो आते और उन्हें मिलकर जाने दिया जाता तो शायद उनके मामले को मीडिया में इतना तवज्जो ना दिया जाता। लेकिन रोकटोक ने उन्हें अधिक तवज्जो देने पर मजबूर किया।
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पुलिस ने परिवार के बिना किया अंतिम संस्कार (फोटो- सोशल मीडिया)
पीड़िता का परिवार के बगैर अंतिम संस्कार
इसके बाद सबसे बड़ी गलती हुई पुलिस प्रशासन द्वारा पीड़िता का अंतिम संस्कार किया जाना। परिवार का आरोप है कि पुलिस ने उनकी बेटी का अंतिम संस्कार भी उन्हें नहीं करने दिया। इसमें भी प्रशासन ने मीडिया और विपक्षी दलों को मुद्दे को तूल देने वाला काम यह किया कि उन्होंने हिंदू मान्यता के विपरीत रात के दो बजे पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया। जिसमें मां-बाप के शामिल न होने का आरोप है।
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यहीं से शुरू हुआ मीडिया का डेरा जमना
पीड़िता का अंतिम संस्कार और उसमें परिवार के ना शामिल होने से मामले को और तूल दिया गया और वहीं से टीवी मीडिया का डेरा जमना शुरू हो गया। साथ ही मीडिया पर 27 घंटे तक रही पाबंदी ने मुद्दे पर और जोर दिया। अगर मीडिया परिवार से बातचीत कर चला गया होता तो भी मामले ने इतना जोर ना पकड़ा होता। इसके बाद राहुल और प्रियंका को आने से रोकना और उनके साथ हुई धक्का-मुक्की ने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं। कुल मिलाकर अगर ये छोटी-छोटी गलतियां प्रशासन ना करता तो शायद ये मुद्दा उतना तूल ना पकड़ता।
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