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ऐसा था अतीक का खौफः जब 10 जजों ने केस से खुद को कर लिया था अलग
Atiq Ahmed shot dead: एक समय था जब अतीक के केस में सुनवाई से जज भी मना कर देते थे। अतीक की जमानत याचिका पर सुनवाई से 10 जजों ने खुद को अलग कर लिया।
Atiq Ahmed shot dead: जिस माफिया के खौफ से बड़े-बडे़ लोग डरते है। जिसका आतंक प्रयागराज और आसपास के जिलों में ऐसा था कि कोई उससे पंगा लेने की हिम्मत नहीं करता था। एक वक्त था जब उसने जो चाहा किया। लेकिन माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का अंत इस तरह होगा ऐसा अतीक और अशरफ ने भी कभी सोचा नहीं होगा। समाजवादी पार्टी के टिकट पर 2004 में फूलपुर से लोकसभा सांसद और पांच बार विधायक रहे माफिया अतीक पर 44 साल पहले पहला मुकदमा दर्ज हुआ था। तब से लेकर अब तक अतीक के ऊपर सौ से अधिक मामले दर्ज हुए, लेकिन पहली बार अतीक को उमेश पाल अपहरण कांड में कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया और उम्रकैद की सजा हुई। एक समय था जब अतीक के केस से जज भी थर्राते थे। माफिया अतीक की जमानत याचिका पर सुनवाई से 10 जजों ने खुद को अलग कर लिया। यहां आइए जानते हैं क्या था वो पूरा मामला...
2012 की बात है, अतीक जेल में बंद था और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। अतीक ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपनी जमानत के लिए याचिका दायर की। याचिका पर सुनवाई से हाईकोर्ट के 10 जजों ने खुद को अलग कर लिया और 11वें जज ने सुनवाई की। इन्होंने माफिया अतीक की जमानत याचिका मंजूर कर ली और अतीक जेल से बाहर आ गया और चुनाव लड़ा। हालांकि अतीक अहमद राजू पाल की पत्नी पूजा पाल से चुनाव हार जाता है।
44 साल पहले दर्ज हुआ था पहला मुकदमा
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1962 प्रयागराज उस सयम इलाहाबाद का चकिया गांव। तांगा चलाने वाले फिरोज अहमद के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा गया अतीक अहमद। उस समय फिरोज घर में अकेले कमाने वाले थे। जैसे-तैसे किसी तरह पैसे का इंतजाम कर अतीक को पढ़ाते, लेकिन अतीक का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। परिणाम यह हुआ कि अतीक 10वीं में फेल हो गया। फिर क्या था उसने पढ़ाई पूरी तरह छोड़ दी। अतीक को अब जल्द से जल्द अमीर बनने का चस्का लग गया। लेकिन उसने पैसा कमाने के लिए मेहनत करना नहीं, बल्कि एक शॉर्टकट को चुना। जो लूट और अपहरण करके पैसा वसूलने का शॉर्टकट था। इतना ही नहीं वो रंगदारी वसूलने के लिए लोगों की हत्या तक को अंजाम देने लगा। 1979 में 17 साल की उम्र में अतीक पर पहली बार एक हत्या का केस दर्ज हुआ।
जेल से बचने के लिए राजनीति का लिया सहारा
अतीक बड़ा शातिर दिमाग का था। वह जेल से बाहर आते ही समझ गया कि जेल से बचने के लिए राजनीति ही उसके काम आ सकती है। इसलिए उसने राजनीति में कदम रखने का फैसला कर लिया। 1989 तक अतीक अहमद पर करीब 20 मामले दर्ज हो चुके थे। उसका प्रयागराज के पश्चिमी हिस्से पर काफी दबदबा हो गया। 1989 में उसने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ने का फैसला किया। उसे किसी पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो वह निर्दलीय ही मैदान में उतर गया। अतीक के सामने कांग्रेस के गोपालदास यादव प्रत्याशी थे। साथ ही अतीक अहमद का बढ़ता दबदबा चांद बाबा को भी अखरने लगा, इसलिए चांद बाबा भी अतीक को हराने के लिए चुनाव में खड़ा हो गया। नतीजे आए तो अतीक को 25,906 वोट मिले। वह 8,102 वोट से चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बन गया।
बीच बाजार चांद बाबा की हत्या कर दी
विधायक बनने के करीब तीन महीने बाद अतीक अहमद अपने गुर्गों के साथ रोशनबाग में चाय की एक दुकान पर बैठा था। अचानक चांद बाबा भी वहां अपने साथियों के साथ आ गया और दोनों गैंग के बीच गैंगवार शुरू हो गई। फिर क्या था पूरा बाजार गोलियों, बम और बारूद से पट गया। इसी गैंगवार में चांद बाबा की मौत हो गई। कुछ महीनों में ही एक-एक करके चांद बाबा का पूरा गैंग खत्म हो गया। चांद बाबा के अधिकतर गुर्गे मार दिए गए, बाकी वहां से भाग गए। चांद बाबा की हत्या का आरोप अतीक पर लगा। लेकिन विधायक होने कारण उस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। चांद बाबा की मौत के पीछे गैंग की मुठभेड़ को कारण बताया गया। और आज तक अतीक अहमद इस मामले में दोषी साबित नहीं हो पाया।
रविवार देर शाम अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को दफन कर दिया गया। अतीक और उसके भाई अशरफ की शनिवार करीब रात साढ़े दस बजे मेडिकल चेकअप के लिए अस्पताल ले जाते समय तीन हमलावरों ने दोनों की गालियां मार कर हत्या कर दी।