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Lucknow: भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ की कार्यपरिषद में सदस्य बने प्रोफेसर जयशंकर पांडेय, राज्यपाल ने दी नियुक्ति

Lucknow: ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती उर्दू-फारसी विश्वविद्यालय की स्थापना 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने की थी। अब इसका नाम परिवर्तित कर के ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय' कर दिया गया है। स्थानी लोग इसे उर्दू फारसी के नाम से भी जानते हैं। पिछले दीक्षांत समारोह में आई राज्यपाल ने उर्दू, अरबी-फारसी शब्द हटाने का सुझाव दिया था।

Anant Shukla
Published on: 6 April 2023 10:32 PM IST (Updated on: 6 April 2023 10:57 PM IST)
Lucknow: भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ की कार्यपरिषद में सदस्य बने प्रोफेसर जयशंकर पांडेय, राज्यपाल ने दी नियुक्ति
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Professor Jaishankar Pandey

Lucknow: ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय लखनऊ की कार्यपरिषद में रिक्त पदों पर सदस्यों का नामांकन कर दिया गया है। यह भर्ती उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की धारा 20 की उपधारा-1 (जी) के अंतर्गत कुलाधिपति द्वारा किया गया। इन पदों पर प्रोफेसर जय शंकर प्रसाद पाण्डेय जो केकेवी में सोशियोलॉजी डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं, प्रो० ललिता राव जो स्वायत्तशासी पीजी कॉलेज वाराणसी के बी0एड0 विभाग में कार्यरत है और प्रो० सुधांशु पांड्या जो कानपुर यूनिवर्सिटी में डीन डायरेक्टर हैं को नियुक्त किया गया है। इन लोगों की नियुक्ति अगले दो वर्षों के लिए या अग्रिम आदेशों तक प्रभावी रहेगी।

ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती उर्दू-फारसी विश्वविद्यालय की स्थापना 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने की थी। अब इसका नाम परिवर्तित कर के ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय' कर दिया गया है। स्थानी लोग इसे उर्दू फारसी के नाम से भी जानते हैं। पिछले दीक्षांत समारोह में आई राज्यपाल ने उर्दू, अरबी-फारसी शब्द हटाने का सुझाव दिया था।

दूर-दूर से पढ़ने आते हैं छात्र

ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में करीब सात हजार विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। लखनऊ ही नहीं, इसमें दूर-दराज के जिलों के बच्चे भी पढ़ने आते हैं।

कौन थे ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती?

ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती एक संत थे, जो 1192 के करीब भारत आए थे। उन्होंने ही भारत में सूफी संत में चिश्ती संप्रदाय की शुरुआत की। धार्मिक कट्टरता को समाप्त करने का प्रयास किया। वे हिन्दू-मुस्लिम को समान रूप से मानते थे। उन्होंने तमाम कट्टरपंथियों का सामना करते हुए संगीत व कव्वाली को ईश्वर भक्ति का बनाया, जिसकी वजह से हर धर्म के लोग उनके अनुयायी बने। इनकी दरगाह राजस्थान के अजमेर में है।



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Anant Shukla

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