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गुमनामी के अंधेरे में खो गया बिहार के दरभंगा का रामलीला

बिहार के दरभंगा जिले के रामलीला कमेटी मालिक सियाराम मिश्र अपना भारत/ न्यूज़ट्रेक से बात करते हुए बताते हैं कि बिहार के दरभंगा जिले में रामलीला कमेटीयां हैं जो साल के बारहो महीनें कहीं ना कहीं रामलीला करती हुई नजर आयेंगी।

SK Gautam
Published on: 9 Feb 2020 2:52 PM GMT
गुमनामी के अंधेरे में खो गया बिहार के दरभंगा का रामलीला
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रजनीश कुमार मिश्र

बाराचवर (गाजीपुर): बिहार राज्य का दरभंगा जिला जो रामलीला कम्पनी के लिए प्रसिद्ध हैं। यूपी हो या बिहार हर जगह यहां की रामलीला कमेटी रामलीला करती हुई नजर आती हैं। बिहार के दरभंगा जिले के रामलीला कमेटी मालिक सियाराम मिश्र अपना भारत/ न्यूज़ट्रेक से बात करते हुए बताते हैं कि बिहार के दरभंगा जिले में रामलीला कमेटीयां हैं जो साल के बारहो महीनें कहीं ना कहीं रामलीला करती हुई नजर आयेंगी। सियाराम मिश्र बताते हैं कि मनोरंजन के साथ-साथ जीविका का भी साधन हैं, इस रामलीला कमेटी से पन्द्रह जनो का परिवार चलता हैं।

बिहार के दरभंगा महाराज के कहने पर चालु हुआं रामलीला

रामलीला कमेटी मेजर सियाराम मिश्र बताते हैं की सन् तो नहीं पता लेकिन मैं अपने बुजुर्गों से सुनता आ रहा हूं कि करीब डेढ़ सौ साल पहले नाटक खेली जाती थी। जिसे देख कर दरभंगा के महाराज, दरभंगा महराज ने कहा कि आप लोग रामचरितमानस मानस के अधार पर रामलीला का मंचन करिए। तब से बिहार के दरभंगा जिले में रामलीला कमेटी का गठन हुआ। तभी से वहां की रामलीला कमेटी प्रसिद्ध हुई। आज बिहार के साथ-साथ यूपी में भी आप को दरभंगा की रामलीला कम्पनी नजर आयेगीं।

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सत्तर अस्सी के दौरान होती थीं हजारों की भीड़

सत्तर अस्सी के दशक में किसी भी गांव शहर में दरभंगा की रामलीला कमेटी पहुंच जाती थी । रामलीला देखने के लिए वहां हजारों की भीड़ इकठ्ठा हो जाती थी। लेकिन समय के साथ-साथ लोग भूलते गये ।

फिल्मी चकाचौंध में गुमनाम हो गया दरभंगा की रामलीला

सियाराम मिश्र अपना भारत/न्यूज़ट्रेक को बताते हैं की साहब इस चकाचौंध में लोग भुल गये हैं। हम लोगों का तो काम हीं है रामलीला करना कभी इस गांव तो कभी उस गांव लेकिन इस चकाचौंध के जमाने मे लोगो का झुकाव रामलीला की तरफ़ नहीं हैं। किसी किसी गाव मे तो अच्छे खासे लोग आतें हैं। लेकिन कहीं कहीं लोग देखने भी नहीं आते । तब काफी मायूसी होती हैं । लेकिन फिर भी वहां दस दिन तक रामलीला कीया जाता हैं। क्योंकि इसी पर पन्द्रह लोगों के परिवार का रोजीरोटी चलता हैं।

कमेटी मे सभी कार्यकर्ता हैं बाढ़ प्रभावित

रामलीला संचालक बताते हैं की इस रामलीला कमेटी में जितने कार्यकर्ता है। सभी लोगों के घर बाढ़ में बह चुके हैं। किसी के सर के उपर छत तक नहीं बची है। इस मुसीबत के दौरान भी ये लोग थोड़ा भी विचलित नहीं होते हैं। इसी रामलीला कमेटी से ये लोग अपने परिवार का पेट पालते हैं।

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सभी हैं कार्यकर्ता हैं अनपढ़

रामलीला संचालक सियाराम मिश्र बताते हैं की कमेटी मे जितने लोग है। कोई भी पढ़ा लिखा नहीं है, बचपन से ही ये लोग यहीं काम करते आ रहें हैं। बाढ़ में सब कुछ तो खत्म हो जाता हैं। फिर भी इसी रामलीला कमेटी से सबका गुजारा होता हैं।

सभी को दिया जाता हैं तन्ख्वाह

रामलीला संचालक सियाराम का कहना हैं की इस कमेटी मे पन्द्रह लोग काम कर रहें है। सभी को कौई पाचं तो कीई नौ हजार की तनख्वाह पर हैं। सियाराम बताते है की सभी कार्यकर्ता गरीब परिवार से आते हैं । तन्ख्वाह की आप बात कर रहें हैं तो जो आरती व झाकी मे पैसा आता है। इसी से तन्ख्वाह दिया जाता हैं।

एक लाख अठारह हजार आता हैं महिने का खर्च

रामलीला संचालक बात करते हुए कहते है की साहब महिने के खर्च की बात कर रहें है। महिने का खर्च एक लाख अठारह हजार आता हैं। जिसमे जनेटर खर्च खाना का और इन लोगों की तन्ख्वाह सब मिलाकर । महिने का एक लाख अठारह हजार है। सियाराम बताते हैं। की जब दशहरा का समय आता हैं। उसी मे दरभंगा मे जितनी भी कमेटीया हैं। सबका साटा तीन से चार लाख रुपये तक होता हैं। उसी से सब बराबर कीया जाता हैं।

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कुछ नहीं करती बिहार सरकार

वहीं रामलीला मे काम करने वाले अन्य कार्यकर्ता बताते हैं। की बाढ़ ग्रस्त लोगों के लिए वहां की सरकार योजनाएं तो बहुत लाती हैं। लेकिन हम गरीबो के पास नहीं पहुचती। क्योंकि हम लोग तो हैं अनपढ़, इधर-उधर की बात कर के हम लोगों को बहका दिया जाता है।

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