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UP News: पुरानी फाइल से! विकास के धुंधले अतीत से पीछा छुड़ाने की कोशिश
UP News: विकास के धुंधले अतीत से पीछा छुड़ाने की कोशिश एक उद्देश्य है जो विभिन्न क्षेत्रों में देखी जा सकती है। इसका मुख्य उद्देश्य है देश के इतिहास में जिन घटनाओं ने विकास को धूमिल किया हो, उन्हें दूर करना। इसके अलावा, विभिन्न क्षेत्रों में जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था, राजनीतिक प्रक्रिया, आदि में विकास के धुंधले अतीत से पीछा छुड़ाने का प्रयास किया जाता है।
UP News: नई दिल्ली, 17 जुलाई, 2000, उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव योगेन्द्र नारायण को प्रदेश का नाम बिहार के साथ जोड़ने पर आपत्ति है और इस बात का गर्व है कि प्रदेश ने पिछले कुछ वर्षों की तुलना में इस साल खासी प्रगति की है। हालांकि उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि आखिल राष्ट्रीय औसत के मामले में उत्तर प्रदेश इतना पीछे क्यों है।
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उत्तर प्रदेश के विकास के आंकड़ों को राष्ट्रीय औसत के संदर्भ में देखें तो यह बात साफ हो जाती है कि अर्थव्यवस्था के किसी भी क्षेत्र में उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय औसत की सीमा रेखा तक भी नहीं पहुंच पाया है। प्रति व्यक्ति आय को ही लें, जहां प्रति व्यक्ति आय का राष्ट्रीय औसत 10771 रूपये है वहीं उत्तर प्रदेश में यह मात्र 6713 रूपये है। आर्थिक संवृद्धि दर जब देश में 4.9 फीसदी थी तब उत्तर प्रदेश में यह 1.4 प्रतिशत दर्ज की गयी। उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था आज भी मुख्यतः कृषि पर ही निर्भर है। इस बात का अंदाजा इस क्षेत्र में रोजगार की दर से लगाया जा सकता है जो 66.76 प्रतिशत है।
जबकि राष्ट्रीय औसत सिर्फ 65.52 प्रतिशत है। खनन उद्योग में रोजगार का राष्ट्रीय औसत 0.81 फीसदी है जबकि उ.प्र. की स्थिति इस प्रकार हैः विनिर्माण क्षेत्र में 10.68 के मुकाबले 9.57 प्रतिशत और व्यापार क्षेत्र में 7.92 के मुकाबले 7.72 प्रतिशत है। इतना ही नहीं, खनिज, विनिर्माण, ऊर्जा, सेवाएं तथा सिंचाई के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर राज्य की भागीदारी बेहद नगण्य है। राष्ट्रीय स्तर पर शहरीकरण की दर जहां 25.7 फीसदी है, वहीं प्रदेश में यह दर मात्र 20 फीसदी है। पारेषण के दौरान होने वाली बिजली की क्षति देश स्तर पर जहां 20.60 प्रतिशत है। वहीं प्रदेश में यह 25.54 फीसदी पाई गयी। ताप विद्युत संयत्रों में जब राष्ट्रीय स्तर पर प्लांट लोड फैक्टर 64.60 पाया जाता है ।
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तब प्रदेश में यह दर मात्र 48.80 फीसदी दर्ज होती है। प्रदेश में कृषि क्षेत्र में कार्यरत श्रम शक्ति का तीस फीसदी हिस्सा पूरी तरह अनुपयोगी है। एक तरफ ये आंकड़े हैं तो दूसरी तरफ प्रदेश के मुख्य सचिव की घोषणा और भविष्य के प्रति आशा है। जिससे मानना पड़ता है कि उत्तर प्रदेश कम से कम अब अपने अतीत से पीछा छुड़ाने की कोशिश जरूर कर रहा है। पिछले वर्षों के प्रदेश के आंकड़ों की तुलना 99-2000 के प्रगति के आंकड़ों से की जाये तो इस निष्कर्ष की ओर जाया जा सकता है कि प्रदेश ने कई क्षेत्रों में प्रगति की है। मसलन 1990 में विकास और प्रति व्यक्ति आय के मामले में उत्तर प्रदेश का स्थान पूरे देश में मात्र बिहार से ऊपर था । लेकिन आज प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में राज्य की स्थिति आसाम, उड़ीसा, जम्मू कश्मीर और बिहार से अच्छी है।
बुनियादी ढ़ांचे के विकास में प्रदेश का देश में सातवां स्थान है। 1999-2000 के पहले आठ महीनों में अधिकतम पेयजल सुविधा उपलब्ध कराने में यदि हिमाचल प्रदेश देश में अव्वल रहा तो उत्तर प्रदेश को भी दूसरा स्थान मिला। पेयजल सुविधा प्रदान करने में प्रदेश सरकार ने निर्धारित लक्ष्य से 115 फीसदी अधिक काम कर दिखाया। टीकाकरण में भी प्रदेश सरकार ने इस वर्ष के पहले आठ माह में निर्धारित लक्ष्य का 86 फीसदी हासिल कर लिया। प्रदेश में उद्योग लगाने के लिए मिले प्रस्तावों को यदि आधार बनाया जाए तो उत्तर प्रदेश का गुजरात और महाराष्ट्र के बाद तीसरा स्थान है।
(मूल रूप से दैनिक जागरण के नई दिल्ली संस्करण में दिनांक- 18 जुलाई, 2000 को प्रकाशित)