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Sonbhadra की महिलाओं का कमाल, शुरू किया गोबर से इको फ्रेंडली निर्माण
अपने पैरों पर खड़े होने और आमदनी के लिए समूह से जुड़कर काम कर रही सुनीता मौर्या ने बताया कि उन्हें इससे हर तरह का लाभ है चाहे वह सामाजिक हो या आर्थिक
सोनभद्र: यहां महिलाएं आत्मनिर्भर बनने के लिए गोबर से अपनी सफलता की कहानी गढ़ रही है। समाज में गोबर शब्द को भले ही नासमझ या कम पढ़ें लिखे लोगों के लिए प्रयोग में लाया जाता हो, लेकिन आज यही कम पढ़ें लिखे लोग इस मिथक को तोड़ते हुए गोबर के माध्यम से ही आत्म निर्भर होकर आर्थिक स्वालम्बी बन रहे हैं ।
राज्य के पहाड़ी और पिछड़े अंचल जनपद सोनभद्र की ग्रामीण महिलायें जो कभी अपने घर में पशुओं के गोबर से उपले बनाकर रसोई में उपयोग करती थी, लेकिन रसोई गैस की सुगम उपलब्धता ने इससे भी उन्हें मुक्ति दिला दी ।
महिलाओं ने शुरू किया काम
ऐसे में ग्रामीण आजीविका मिशन के समूह से जुड़ी इन महिलाओं ने गोबर के उपयोग का एक नया रास्ता चुना और उससे गमले बनाने का काम शुरू कर दिया । जो न सिर्फ इको फ्रेंडली है बल्कि काफी सस्ता भी है। जिले के विकास खण्ड चोपन में इस कार्य मे लगी महिलाये बताती है कि 10 रुपये से समूह से जुड़कर काम शुरू किया और फिर उसी समूह से मशीन खरीदकर गमला बनाने का काम कर रही है ।
महिलाओं के साथ उनका सहयोग कर रहे एन आर एल एम के ब्लॉक मिशन मैनेजर रोहित मिश्रा ने बताया कि यह काफी कम लागत में अच्छा उत्पादन देने वाला काम है जिससे गांव की महिलाये लाभान्वित होकर आत्मनिर्भर बन रही है ।
ऐसे हो रही स्वावलंबी
उन्होंने बताया कि इसमें गोबर और लकड़ी के बुरादे की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है जिसके लिए इन महिलाओं को गौशालाओं से मुफ्त में काफी गोबर मिल जाता है और बहुत ही कम पैसे में लकड़ी के पुराने बुरादे मिल जाते है जिससे इसमे लागत बहुत कम आती है । उन्होंने यह भी बताया कि दिन भर में महिलायें 70 से 80 गमले बना रही है और 50 रुपये प्रति गमले का रेट भी उन्हें मिल जाए रहा है । श्री मिश्रा ने यह भी कहा कि हम जिनको भी गमला बेच रहे हैं उसमें एक तुलसी का पौधा मुफ्त में लगाकर दे रहे है । क्योंकि गोबर से बना यह गमला न सिर्फ इको फ्रेंडली है बल्कि काफी सस्ता भी ।
मिली पहचान
समूह सखी सीता देवी ने बताया कि समूह से जुड़कर न सिर्फ उन्हें अपनी पहचान मिली, बल्कि वह आत्म निर्भर भी बनी । गमले के काम को बेहतर बताते हुए अन्य सभी महिलाओं से अपील करते हुए सीता देवी कहती हैं कि अन्य महिलाओं को भी घूंघट से निकलकर बाहर आना चाहिए नहीं तो उनकी प्रतिभा घूंघट के अंदर ही दब कर रह जायेगी । अपने पैरों पर खड़े होने और आमदनी के लिए समूह से जुड़कर काम कर रही सुनीता मौर्या ने बताया कि उन्हें इससे हर तरह का लाभ है चाहे वह सामाजिक हो या आर्थिक । समूह से जुड़कर उन्हें काफी लाभ मिला और सबसे बड़ी बात आत्मनिर्भर हुई है ।
इस कार्य के लिए प्रशिक्षण देने वाली प्रशिक्षक कौशल्या ने बताया कि प्रशिक्षण के बाद काम शुरू करना बहुत ही आसान है जिसे यहां महिलायें कर रही है । उन्होंने यह भी कहा कि अन्य महिलाओं को भी काम के साथ-साथ प्रशिक्षण देने का काम किया जा रहा है जिससे सभी अपने पैरों पर खड़ी हो सके ।
रिपोर्ट सुनील तिवारी