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Sonbhadra: पांचवीं बार विस्थापन के दर्द से रूबरू हो रहे बाशिंदे, 1958 में 116 गांवों के अधिग्रहण से हुई थी शुरूआत

Sonbhadra News: सोनभद्र में पहली बार हुए विस्थापन के समय लोगों को तीस रुपये प्रति बीघे मुआवजा मिला था। उस दौरान जमीन की लागत एक रुपये सालाना निर्धारित की गई थी ।

Kaushlendra Pandey
Published on: 14 Jun 2023 11:56 AM IST
Sonbhadra: पांचवीं बार विस्थापन के दर्द से रूबरू हो रहे बाशिंदे, 1958 में 116 गांवों के अधिग्रहण से हुई थी शुरूआत
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Sonbhadra News (photo: social media )

Sonbhadra News: सोनभद्र में विस्थापन की कहानी कोई नई नहीं है। कनहर सिंचाई परियोजना से पहले भी चार बार सोनभद्र के बाशिंदों को विस्थापन के दर्द से रूबरू होना पड़ा है। वर्ष 1958 में रेणु नदी पर रिहंद बांध का निर्माण करते समय, 116 गांव के लोगों को विस्थापन की मार सहनी पड़ी। तत्कालीन सिंगरौली रियासत का भी बड़ा हिस्सा विस्थापन की जद में आया था। उस दौरान सोनभद्र पहुंचे प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने जहां सोनभद्र को देश के सपनों का स्विट्जरलैंड बताया था। वहीं लोगों से राष्ट्र की तरक्की के लिए त्याग की अपील की थी।

एक रूपये सालाना लागत पर तय किया गया था मुआवजा

सोनभद्र में पहली बार हुए विस्थापन के समय लोगों को तीस रुपये प्रति बीघे मुआवजा मिला था। उस दौरान जमीन की लागत एक रुपये सालाना निर्धारित की गई थी और उसका 30 गुना मुआवजे का आंकलन करते हुए प्रति बीघा 30 रुपये मुआवजा फाइनल किया गया था। पुरनिए बताते हैं कि उस दौरान प्रत्येक परिवार को रिहंद बांध के कैचमेंट एरिया में आने वाले हिस्से के उपरी भाग में 10 बीघे तक जंगल काटकर खेती की छूट प्रदान की गई थी। इसके बाद लोग, बांध के उपरी हिस्से में जमीन-मकान बनाकर स्थापित भी हो गए थे लेकिन कुछ सालों बाद ही, वर्ष 1970 के दशक में फिर से विस्थापन की घंटी बजनी शुरू हो गई।

एनटीपीसी, एनसीएल, यूपीआरवीयूएनएल की दस्तक के साथ बढ़ता गया विस्थापन का दायरा

1975 में एनटीपीसी की शक्तिनगर में पहली यूनिट स्थापित हुई। जिसके चलते कई गांव के लोगों को विस्थापित होना पड़ा। शक्तिनगर और अनपरा के बीच वाले हिस्से में एनसीएल के कोल परियोजनाओं के चलते बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापन के दर्द से रूबरू होना पड़ा। 1980 में राज्य के स्वामित्व वाली अनपरा परियोजना ने दस्तक दी तो फिर से सैकड़ों परिवार विस्थापित हुए। अब पांचवीं बार, कनहर परियोजना के चलते दुद्धी तहसील क्षेत्र के 11 गांवों पर विस्थापन की मार पड़ी है।

108 गांव के लोगों को कनहर परियोजना के पूरी होने का इंतजार

एक तरफ जहां विस्थापन का दर्द है। वहीं कनहर परियोजना से लाभान्वित होने वाले 108 गांवों और झारखंड के बड़े हिस्से में परियोजना के पूरी होने का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। बता दें कि कनहर बांध का निर्माण पूर्ण होने के बाद परियोजना का 80 प्रतिशत कार्य पूर्ण हो चुका है। नहरों का कार्य पूरा होना है, जिसे पूर्ण होने के बाद परियोजना पूरी हो जाएगी। कोई पेंच नहीं फंसा तो परियोजना को 2024-25 तक पूर्ण होने की पूरी उम्मीद है।

कनहर बांध में एकत्रित होगा 10.29 लाख क्यूसेक पानी

परियोजना का निर्माण पूरा होने के बाद कनहर बांध में 10.29 लाख क्यूसेक पानी एकत्रित होगा। 39.90 मीटर ऊंचे और 3.24 किमी लंबे बांध में यूपी के 11 गांव, झारखंड के चार और छत्तीसगढ़ के छह गांव की कुल 4580 एस्क्वायर किमी एरिया जलभराव के दायरे में रहेगी। परियोजना से निकली 104.85 किमी मुख्य नहर व शाखा तथा 144.19 किमी राजवाहा व माइनर के माध्यम से 35467 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होगा। संबंधित एरिया में पहले से निर्मित सिंचाई विभाग की बंधियों को भी इस परियोजना से अतिरिक्त पानी उपलब्ध कराया जाएगा।

सूची में शामिल लोगों को अभी मुआवजे की करना पड़ेगा इंतजार

कनहर सिंचाई परियोजना के मुआवजा सूची में नाम होने के बावजूद, मुआवजे से वंचित लोगों को फिलहाल पूरा विस्थापन लाभ ही घर-बार छोड़ना होगा। इस बात को खुद कनहर परियोजना के एक्सईएन विजय स्वीकार करते हैं। उनका कहना है कि जिन लोगों को मुआवजा नहीं दिया गया है, उनके लिए तत्काल प्लाट की व्यवस्था कराई जा रही है। अभी बारिश का दौर जून आखिरी या जुलाई के शुरूआत होगा। तब तक आवंटित प्लाट पर उनके निवास की अस्थाई व्यवस्था कर ली जाएगी।



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Kaushlendra Pandey

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