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मुलायम सिंह का वो किस्सा: मुहर लगाओ... वरना गोली खाओ छाती पर

निर्भय ने कह दिया कि अगर भइया शिवपाल 2007 में सपा के चुनाव चिन्ह से विधानसभा का टिकट दे दें तो वह चंबल के क्षेत्र में साइकिल दौड़ा देगा और जो रोड़ा बनेगा वह गोली खाएगा।

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Published on: 22 Nov 2020 3:04 PM IST
मुलायम सिंह का वो किस्सा: मुहर लगाओ... वरना गोली खाओ छाती पर
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मुलायम सिंह वो किस्सा: मुहर लगाओ... वरना गोली खाओ छाती पर

रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ। 'मुहर लगाओ... वरना गोली खाओ छाती पर'। कभी ये नारा लगाने वाला दुर्दांत डाकू और उसी के कहने पर मारा गया जिसे उसने अपना बड़ा भाई और मुलायम सिंह यादव को माई बाप कहने का दुस्साहस किया था। डेढ़ दशक तक चंबल में आतंक का पर्याय रहा निर्भय गूर्जर समाजवादी पार्टी का करीबी माना जाता था। वह और उसके गैंग के डकैत बंदूक के दम पर सपा के लिए वोट दिलवाते थे। इटावा के बिठौली थाना क्षेत्र के पहलन निवासी निर्भय गूर्जर ने डेढ़ दशक तक बीहड़ में राज किया।

निर्भय गुर्जर के खिलाफ 200 से अधिक मामले

वैसे हत्या, अपहरण, लूट, डकैती मशहूर निर्भय सिंह गुर्जर ने अपने जीवन का अधिकांश समय जालौन में ही बिताया। निर्भय गुर्जर के खिलाफ 200 से अधिक मामले पुलिस थानों में दर्ज थे। पुलिस कहती थी कि निर्भय का गैंग फिरौती के लिए अपहरण के मामलों में सक्रिय रहता था। राजनीतिक संरक्षण की बदौलत लंबे समय तक वह पुलिस को चकमा देता रहा। बड़ी बात ये है कि वह जंगल में पत्रकारों को बुलाकर इंटरव्यू भी दिया करता था।

nirbhay gurjar

निर्भय के सिर पर पांच लाख का इनाम सरकार ने रखा था। 200 गांवों में गूर्जर का आंतक था। इस नामी डकैत के फतवे से सरपंच, विधायक और सांसद चुने जाते थे। 2005 के सरपंच चुनाव के दौरान निर्भय ने कुर्छा, कुंवरपुरा, विडौरी, नींवरी व हनुमंतपुरा सहित दर्जनों पंचायतों में अपने लोगों को चुनाव जितवा कर पहली बार अपनी राजनीतिक ताकत का लोहा मनवाया था।

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इस डकैत के खौफ का आलम यह था कि पंचायतों के चुनाव में मात्र 7, 11 और 21 वोटों पर चुनावी प्रक्रिया पूर्ण करा दी थी। कुर्छा में डकैतों के फरमान के बाद किसी ने पर्चा भरने का साहस नहीं जुटाया। एक साल बाद प्रशासन ने बड़ी मशक्कत से चुनाव करवाया तो जीते हुए प्रधान को निर्भय के डर से गांव छोड़कर इटावा रहना पड़ा।

मुलायम सिंह पर अपराधियों के संरक्षण देने के आरोप लगते रहे हैं

इस तरह के तमाम कारण थे जिनके चलते समाजवादी पार्टी के बुजुर्ग नेता मुलायम सिंह पर उन दिनों अपराधियों के संरक्षण देने के आरोप अक्सर लगा करते थे। उन दिनों यूपी में सपा की सरकार थी और नेता जी मुख्यमंत्री थे। नेताजी के बाद सत्ता शिवपाल यादव के इर्द गिर्द घूमती थी। अखिलेश यादव की उस समय कोई हैसियत नहीं हुआ करती थी। चर्चाओं में अक्सर ये बात उठा करती थी कि पाठा से लेकर चंबल तक के डकैत सीधे शिवपाल के संपर्क में रहते हैं।

निर्भय ने ऐसा बयान दिया कि शिवपाल यादव मेरे भइया हैं, घी में आग लगाने का काम कर दिया। फिर क्या था नेता जी ने शिवपाल से दो टूक कह दिया कि दो माह के अंदर बीहड़ से डकैत साफ हो जाने चाहिए। शिवपाल ने अमिताफ यश को निर्भय दा इंड की बागडोर सौंप दी। गूर्जर को बीहड़ में घेरना शुरु कर दिया गया। उसके गैंग के करीबियों को इनकाउंटर किए गए। निर्भय के दत्तक पुत्र को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया और उसी की मुखबिरी के चलते एसटीएफ ने अक्टूबर 2005 में निर्भय गूजर को मार गिराया।

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मुलायम सिंह को माई बाप तो शिवपाल को अपना बड़ा भाई कह डाला

कहा यह भी जाता था कि निर्भय कई दूसरे राजनेताओं के लिए काम करने लगा था। नेताओं के कहने पर अपहरण हत्या और उगाही कर कुछ हिस्सा चंदे के रूप में अपने आकाओं को पहुंचाता था। लेकिन कहते हैं कि एक गलती कई बार बहुत भारी पड़ जाती है। ऐसी ही गुस्ताखी निर्भय गुर्जर से भी हुई। निर्भय गूजर ने बकायदा मीडिया में आकर बयान दे डाला। उस ने सीएम मुलायम सिंह को माई बाप तो शिवपाल यादव को अपना बड़ा भाई कह डाला।

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निर्भय ने कहा चंबल के क्षेत्र में साइकिल दौड़ा देगा

निर्भय ने कह दिया कि अगर भइया शिवपाल 2007 में सपा के चुनाव चिन्ह से विधानसभा का टिकट दे दें तो वह चंबल के क्षेत्र में साइकिल दौड़ा देगा और जो रोड़ा बनेगा वह गोली खाएगा। इस बात पर राजनीतिक भूचाल आ गया और शिवपाल ने निर्भय को खत्म करने के लिए बीहड़ में एसटीएफ को उतार दिया। एसटीएफ ने सातवें दिन निर्भय गुर्जर को मार गिराया। उसके साथी तमाम डकैत मारे गए और कुछ ने सरेंडर कर जान बचायी।

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खैर इस तरह के नारे तो अब इतिहास के पन्नों मे दर्ज हो गए हैं। खूंखार डाकुओं के अंत ने इन फरमानों पर विराम लगा दिया है। अब ना तो डाकू हैं, ना उनके फतवे लेकिन आज शराब और रुपया चुनाव में जीत का सबसे बड़ा माध्यम बन चुका है। कह सकते हैं कि कभी फतवों में दम था आज शराब और नोट का खेल रंग दिखा रहा है।

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