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प्रवासी मजदूरों का सहारा, मनरेगा बना वरदान

प्राकृतिक तौर पर सूखा हर साल पड़ने के कारण बुंदेलखंड में पलायन दर देश के दूसरे हिस्सों से काफी ज्यादा है। यहां से हर साल लाखों गांव वाले बड़े शहरों में कमाने के लिए चले जाते हैं।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 10 July 2020 3:32 PM GMT
प्रवासी मजदूरों का सहारा, मनरेगा बना वरदान
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प्रदीन श्रीवास्तव

झांसी: प्राकृतिक तौर पर सूखा हर साल पड़ने के कारण बुंदेलखंड में पलायन दर देश के दूसरे हिस्सों से काफी ज्यादा है। यहां से हर साल लाखों गांव वाले बड़े शहरों में कमाने के लिए चले जाते हैं।

बुंदेलखंड में दो प्रकार का पलायन होता है। एक तो सीजनल, दूसरे स्थायी। सीजनल पलायन करने वाले मुख्यत: गरीब किसान होते हैं, जिनके पास नाममात्र की खेती होती है और वह दूसरे के खेतों में काम करके या गांव में ही कोई छोटा-मोटा काम करके अपना जीवन यापन करते हैं। यह किसान मुख्यत: पंजाब व हरियाणा आदि राज्यों में फसलों की बुआई या कटाई आदि के समय जाकर काम करते हैं। स्थायी तौर पर पलायन करने वाले गरीब किसान बड़े शहरों में फैक्ट्रियों या निर्माण स्थलों पर काम करते हैं। यह एक बार जाने के बाद बहुत कम लौटते हैं। इस प्रकार के मजदूर वर्षों दूसरी जगह पर रहते हैं।

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लॉकडाउन की वजह से कारोबार और रोजगार बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। निर्माण कार्य व अन्य कामधंधे बंद होने की वजह से मजदूरों के हाथों से काम छिन गया था। उनके सामने रोजी - रोटी का संकट बड़ी चुनौती बनकर खड़ा हो गया।

महोबा जिले में गांव लौटने वाले एक परिवार की महिला बबीता बताती हैं कि पिछले दस सालों से अंबाला में उसके पति एक फैक्ट्री में काम कर रहे थे। फैक्ट्री बड़ी थी, इसलिए उम्मीद ही नहीं थी कि वह कभी बंद भी होगी। उसने टीवी, कूलर, फ्रिज जैसी जरूरी चीजें भी खरीद ली थी। जब फैक्ट्री में काम बंद हो गया तो दो महीने बाद हमें सब कुछ बेच कर आना पड़ा। यहां कोई काम नहीं था, लेकिन ऐसे वक्त पर मनरेगा बड़ी राहत बना।

प्रवासी मजदूरों का सहारा

प्रशासन से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी और चित्रकूट मंडल के सातों जनपदों में मनरेगा के तहत 9,953 कार्य किए जा रहे हैं। इनमें 3,33,580 मजदूरों को रोजगार दिया गया है। इसमें बड़ी संख्या उन मजदूरों की भी है, जो लॉकडाउन की अवधि के दौरान देश के महानगरों से वापस अपने गांव की ओर लौटे हैं। 62,784 प्रवासी श्रमिकों को अब तक मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराया जा चुका है।

मनरेगा के तहत पहले 182 रुपये प्रतिदिन मजदूरी प्रदान की जाती थी, परंतु लॉकडाउन की अवधि के दौरान इसे बढ़ाकर 201 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया है। महिला और पुरुष, सभी श्रमिकों की मजदूरी समान है। श्रमिकों के पहले ग्राम पंचायत स्तर पर जॉब कार्ड बनाए जाते हैं और श्रमिकों के बैंक खाते में उनका पारिश्रमिक भेजा जाता है। मनरेगा श्रमिकों से गांवों में तालाबों के गहरीकरण के लिए खुदाई का काम दिया जाता है। इसके अलावा चेकडैम निर्माण, खुदाई, खड़ंजा बिछाना, खेतों की मेढ़ तैयार करना तथा प्रधानमंत्री आवासों के निर्माण में भी मनरेगा श्रमिकों को लगाया जाता है।

बुन्देलखण्ड में जब भी आजीविका के संसाधनों का अभाव रहा है उस समय मनरेगा कारगर साबित हुयी है। कोरोना काल में हर गांव में मनरेगा के तहत काम चल रहा रहा है। जरूरतमंद लोगों को रोजगार मिल रहा है, बस समय से मजदूरी के भुगतान की आवश्यकता है। - संजय सिंह, सचिव,

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परमार्थ सेवा संस्थान

– ललितपुर के बिरधा ब्लॉक के अमौना गांव के राम कुंवर का कहना है कि वो बहुत लंबे समय से गुजरात में एक हीरा बनाने वाली फैक्ट्री में काम करते थे। लेकिन जब रोजगार छूट गया और फैक्ट्री खुलने की कोई उम्मीद नहीं रही तो परिवार के साथ गांव आ गए। यहां पर रोजागर तो कुछ था नहीं लेकिन मनरेगा के काम से काफी सहारा मिला।

- बांदा के नरैनी ब्लॉक के नसेनी गांव के रहने वाले गोविंद सिंह का कहना है कि गांव में रोजगार की संभावना कम होने के कारण ही वो दिल्ली में काम करते थे। महामारी के कारण जब वापस आया तो फिर वही समस्या यहाँ आई। इस बार बड़े रूप में, लेकिन मनरेगा से रोजी रोटी चलने लगी।

ये कुछ उदाहरण हैं जो यह बताते कि बुंदेलखंड में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) प्रवासी मजदूरों के लिए वरदान बना है।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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