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हाथरस से जुड़ी दिलचस्प कहानी, यहीं पर स्वामी विवेकानंद को मिले थे सदानंद

दलित लड़की के साथ रेप और उसकी हत्या के कारण हाथरस की चर्चा भले ही हो रही हो मगर हाथरस एक अन्य कारण से भी याद किया जाता है और वह कारण हैं स्वामी विवेकानंद ।

Shivani
Published on: 5 Oct 2020 5:58 AM GMT
हाथरस से जुड़ी दिलचस्प कहानी, यहीं पर स्वामी विवेकानंद को मिले थे सदानंद
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लखनऊ। हाथरस में एक दलित लड़की के साथ दुष्कर्म और उसकी हत्या के मामले को लेकर इस समय पूरे देश में गुस्से का माहौल है और इसे लेकर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार भी विपक्षी दलों के निशाने पर है। इस घटना को लेकर सियासी तूफान खड़ा होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी है।

मौजूदा समय में हाथरस भले ही दुष्कर्म की इस घटना को लेकर चर्चा में आया हो मगर कम ही लोगों को इस बात की जानकारी है कि पूरी दुनिया में भारतीय मेधा का झंडा बुलंद करने वाले स्वामी विवेकानंद को इसी हाथरस में अपना पहला शिष्य मिला था।

जब एएसएम बने स्वामी जी के पहले शिष्य

देश में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हाथरस की पहचान एक औद्योगिक केंद्र के रूप में हुआ करती थी। उस समय हाथरस में देसी घी और हींग का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता था और यहां पर तमाम कपास फैक्ट्रियां भी थीं।

स्वामी विवेकानंद वृंदावन से हरिद्वार जाते समय कुछ देर के लिए हाथरस जंक्शन स्टेशन पर रुके थे।‌ यह बात 132 साल पहले 1888 की है। यहीं पर स्वामी विवेकानंद की मुलाकात हाथरस जंक्शन स्टेशन के असिस्टेंट स्टेशन मास्टर शरद चंद्र गुप्ता से हुई थी जो स्वामी विवेकानंद व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके पहले शिष्य बन गए थे।

हाथरस नाम से जुड़े चार रेलवे स्टेशन

हाथरस में चार रेलवे स्टेशन ऐसे हैं जिनसे हाथरस का नाम जुड़ा हुआ है। इन चार स्टेशनों के नाम हाथरस सिटी, हाथरस जंक्शन, हाथरस किला और हाथरस रोड रेलवे स्टेशन हैं। आज भले ही दलित लड़की के साथ रेप और उसकी हत्या के कारण हाथरस की चर्चा हो रही हो मगर हाथरस को एक अन्य कारण से भी याद किया जाता है और यह कारण भी रेलवे से ही जुड़ा हुआ है।

संन्यासी पर पड़ी एएसएम की नजर

यह बात करीब 132 साल पहले की है। उस दिन एक गरीब संन्यासी हाथरस जंक्शन स्टेशन की बेंच पर बैठा हुआ था। इस संन्यासी ने अपनी यात्रा कुछ दूर पैदल चलकर, कुछ दूरी ट्रेन से और कुछ दूर बैलगाड़ी से पूरी की थी। अचानक वहां के असिस्टेंट स्टेशन मास्टर (एएसएम) शरद चंद्र गुप्ता की नजर बेंच पर बैठे संन्यासी पर पड़ी।

संन्यासी के व्यक्तित्व का जादुई असर

एएसएम संन्यासी के रूप रंग, उनकी लंबी नाक और बड़ी आंखों को देखकर काफी प्रभावित हुए। वे तुरंत संन्यासी के पास पहुंचे और उनसे बातचीत शुरू कर दी। एएसएम संन्यासी के ज्ञान और उनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए।

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एएसएम ने संन्यासी से एक रात के लिए अपना मेहमान बनने का अनुरोध किया। वे संन्यासी को स्टेशन के पीछे बने अपने घर ले गए। सन्यासी में एक-दो दिन एसएम के घर पर ही बिताए। एएसएम के साथ एक-दो दिन बिताने के बाद संन्यासी ने जाने की इच्छा जताई तो एएसएम ने उनसे और रुकने का अनुरोध किया।

एएसएम ने दे दिया पद से इस्तीफा

संन्यासी के जादुई व्यक्तित्व ने एसएम शरद चंद्र गुप्ता पर ऐसा असर डाला कि उन्होंने संन्यासी के रास्ते पर चलने का ही फैसला कर लिया। उन्होंने स्टेशन जाकर तुरंत अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वे संन्यासी के पहले शिष्य बनकर उनके साथ निकल पड़े। वह संन्यासी और कोई नहीं बल्कि नरेंद्रनाथ दत्त थे जो आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। शरत चंद्र संन्यास लेने के बाद रामकृष्ण मिशन के स्वामी सदानंद के रूप में जाने गए।

किताबों में मिलता है इस मुलाकात का जिक्र

यह एक संन्यासी और उसके शिष्य की मन मोह लेने वाली कहानी है। इस कहानी का जिक्र द लाइफ ऑफ स्वामी विवेकानंद, बाई हिज ईस्टर्न एंड वेस्टर्न डीसाइपिल्स, अद्वैत आश्रम में मिलता है। इसके साथ ही स्वामी विवेकानंद पर 1947 में लिखी गई किताब में स्वामी विरजानंद ने भी स्वामी विवेकानंद और शरद चंद्र गुप्ता के बीच हुई इस मुलाकात का उल्लेख किया है।

स्वामी जी ने इस तरह परखा समर्पण

शरत को अपना शिष्य बनाने से पहले स्वामी विवेकानंद ने उन्हें अपना भीख मांगने का कटोरा दिया था और उनसे कहा था कि वह स्टेशन के कूलियों और खलासियों के पास जाकर खाने की भीख मांगें। उन्होंने अपने शिष्य के समर्पण की भावना को परखने के लिए यह तरीका अपनाया था।

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शरत ने एक पल भी इंतजार नहीं किया। वे स्टेशन गए और उन लोगों से खाना मांगा जो एक दिन पहले तक उनके अधीन काम किया करते थे। वह मांगी गई भिक्षा के साथ स्वामी जी के पास वापस लौटे और मांगी गई भिक्षा को अपने गुरु को सौंप दिया। इससे यह बात साबित हो गई कि शरत ने अपना अभिमान त्याग दिया था।

विवेकानंद के साथ कीं कई यात्राएं

स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर स्वामी सदानंद ने 1897-98 में स्वामी जी के साथ उत्तर भारत और कश्मीर की यात्रा भी की थी। सदानंद को मद्रास में रामकृष्ण मिशन का मठ स्थापित करने के लिए भी जाना जाता है। स्वामी विवेकानंद की शिक्षा और उनके विचारों का प्रसार करने के लिए उन्होंने जापान की भी यात्रा की थी।

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शरत डॉ.बोशी सेन के अच्छे दोस्त थे जो बाद के दिनों में विश्व प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक बने। वे अल्मोड़ा में रहते थे। हाथरस जंक्शन के एएसएम रहे शरत चंद्र गुप्ता या स्वामी सदानंद बंगाली थे मगर वे जौनपुर से जुड़े हुए थे। 1911 में उनका निधन हो गया। रामकृष्ण मिशन में उनके योगदान को आज भी याद किया जाता है।

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