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कभी पुरखों ने दान कर दी थी करोड़ों की हवेली आज वंशज लगा रहे दिहाड़ी

करीब 137 वर्ष तक नगर पालिका गाजीपुर का कार्यालय रही दो मंजिला भव्य इमारत आज बेशक वीरान और बेजान हो चुके है, लेकिन आज भी इश्क का रुतबा कायम है गाजीपुर के बीचों-बीच स्थित मुगल शैली में बने नक्काशी युक्त मेहराबदार बरामदो से सुसज्जित इस भव्य इमारत दीवार पर लगे उर्दू और अंग्रेजी में लिखे शीला पट इस बात की तस्दीक कर रहे हैं की इस बिल्डिंग को डोनेट करने वाला कोई साधारण व्यक्ति नहीं था।

Roshni Khan
Published on: 10 July 2019 3:49 PM IST
कभी पुरखों ने दान कर दी थी करोड़ों की हवेली आज वंशज लगा रहे दिहाड़ी
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रजनीश कुमार मिश्रा

गाजीपुर: इसे समय का फेर नहीं कहे तो और क्या कहेंगे जिनके पुरखों ने आलीशान हवेली ही नहीं बल्कि गुलाब और जैसमिन से गमकते विशाल गार्डन को बिना किसी संकोच के गाजीपुर के ब्रिटिश अधिकारियों को करीब 137 साल पहले नगर पालिका कार्यालय के लिए दान कर दिया था।

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करीब 137 वर्ष तक नगर पालिका गाजीपुर का कार्यालय रही दो मंजिला भव्य इमारत आज बेशक वीरान और बेजान हो चुके है, लेकिन आज भी इश्क का रुतबा कायम है गाजीपुर के बीचों-बीच स्थित मुगल शैली में बने नक्काशी युक्त मेहराबदार बरामदो से सुसज्जित इस भव्य इमारत दीवार पर लगे उर्दू और अंग्रेजी में लिखे शीला पट इस बात की तस्दीक कर रहे हैं की इस बिल्डिंग को डोनेट करने वाला कोई साधारण व्यक्ति नहीं था।

शिलापट्ट पर लिखें अभिलेख के मुताबिक हाजी इलाही कादिर बख्श ने सन 1872 में बिना किसी मुनाफे के यह बिल्डिंग और गार्डन गाजीपुर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन को दान करते हैं खैर सरकारी बेरुखी और समय के थपेड़ों से बेहाल एक सदी के इतिहास को समेटे यह इमारत फटी साड़ी में खूबसूरत किसी बेवा की भाती लगती है।

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कौन थे खुदा बख्शा

मौजूदा समय में टाउन हॉल या नगर पालिका परिषद के नाम से मशहूर बिल्डिंग को दान करने वाले हाजी इलाही कादिर बख्श के वंशजों के करीबी 85 वर्षीय मोहम्मद बशीर खान कहते हैं कि कादिर बख्श अंग्रेज सरकार के सरकारी सप्लायर थे। वह ब्रिटिश सेना को मीट की सप्लाई किया करते थे कादिर वख्श ने ही गाजीपुर के शक्ति मोहल्ले में कादरी मस्जिद बनवाई थी। उस समय में मस्जिद के गुम्बदों पर लगे पीतल पतरों पर सोने का पानी चढ़ाया गया था ।यह मस्जिद आज भी मौजूद है उसमें अजान और नमाज होती है मोहम्मद बशीर खान कहते हैं की कादिर के बेटे यूं ही ब्रिटिश सरकार मे दरोगा हुआ करते थे ।और उनका उस जमाने में रुतबा हुआ करता था लेकिन समय के साथ साथ सब कुछ बदल गया।।

दुसरों की दुकान पर मजदूरी करते है वंशज

समय का पहिया घुमता रहता है। कब राजा रंक और फकीर को बादशाह बना दो कोई नहीं जानता आज ठीक ऐसा ही हाजी इलाही मोहम्मद कादिर वख्श के साथ हुआ ।अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद धीरे धीरे कादिर बख्श का परिवार गुमनामी के अंधेरे में होता चला गया। मोहम्मद बशीर खान कहते हैं कि आज हालात यह है कि जिस हाजी कादिर खान की दान दी हुई जिस बिल्डिंग और गार्डन से नगर पालिका लाखों रुपए महीनों का किराया वसूल कर रहा है, उन्हीं कादर खान के वंशज दूसरों की दुकान पर मजदूरी कर रहे हैं।।

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विल्डिंग तो है पर उजड़ गया बाग

जीस शिलापट्ट में खुदा बख्श ने बिल्डिंग के साथ साथ जिस गार्डन का जिक्र किया है वह गार्डन आज उजड़े चमन हो गया है अर्थात बाग का कहीं नामोनिशान तक नहीं है चारों तरफ अतिक्रमण और धूल उड़ रही है।।

नहीं सहेजे तो मिट जाएगा इतिहास

टाउन हॉल के आसपास के लोगों का कहना है कि जब तक इस बिल्डिंग में जिला परिषद कार्यालय था तब तक इसकी देखरेख होती थी लेकिन जब से यह कार्यालय शिफ्ट हुआ है तब से इसे ऐतिहासिक इमारत की शुभ लेने वाला कोई नहीं है उनका कहना है कि यदि ऐसे ही रहा तो जल्द ही एक शादी का इतिहास दफन हो जाएगा आसपास के वहां के लोगों ने जिला परिषद उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग को चाहिए कि जिला परिषद पुराने भवन को चाहिए की इस इमारत को हैरिटेज घोषित कर संरक्षित करे।

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