ऐतिहासिक शिव मंदिर चढ़ा कोरोना की भेंट, सावन को लेकर लिया गया ये बड़ा फैसला

हमीरपुर सरीला के गौरवशाली श्री शल्लेश्वर मंदिर और उसमे स्थापित अति प्राचीन शिवलिंग पर सावन महोत्सव में रुद्राभिषेक और शिवलिंग और साथ में शिवपुराण प्रतिवर्ष होता रहा है।

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Published on: 5 July 2020 6:09 AM GMT
ऐतिहासिक शिव मंदिर चढ़ा कोरोना की भेंट, सावन को लेकर लिया गया ये बड़ा फैसला
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हमीरपुर: हमीरपुर सरीला के गौरवशाली श्री शल्लेश्वर मंदिर और उसमे स्थापित अति प्राचीन शिवलिंग पर सावन महोत्सव में रुद्राभिषेक और शिवलिंग और साथ में शिवपुराण प्रतिवर्ष होता रहा है। हजारों की संख्या में कावड़िया जलाभिषेक करने आते थे। श्रावण मास में भक्तों का ब्रहम् मूरत से जलभषेक करने वालो का ताता,को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता के पुख्ता इंतजाम किया जाता रहा। हजारो की संख्या में कावडिया पैदल कावड़ लेकर श्री शललेस्वर मंदिर आते थे। इस बार कोविड-19महामारी के चलते समिति ने निर्णय लिया कि सावन महोत्सव नही होगा।

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इस वर्ष नही होगा सावन महोत्सव समिति ने लिया निर्णय

इस साल का श्रावण महोत्सव कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गया है। समिति के पदाधिकारियों ने एसडीएम को ज्ञापन देकर महोत्सव न मनाने का निर्णय लिया है। श्रावण महोत्सव में हर साल यहां विभिन्न धार्मिक आयोजन होते चले आ रहे हैं। सैकड़ों की तादाद में कांवरिया रोज दूरदराज की नदियों से जल लाकर प्राचीन शिवालय शैलेश्वर मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक करते थे। तथा मंदिर परिसर में श्रावण मास भर पार्थिव शिवलिंग का निर्माण किया जाता था। जिसमें खासी भीड़ उमड़ती थी।

श्रावण महोत्सव समिति ने बैठक करके कोरोना महामारी को देखते हुए एक साथ इस साल महोत्सव को ना मनाने का निर्णय लिया है। इस निर्णय से एसडीएम जुबेर बेग को अवगत करा दिया है। समिति के महेंद्र राजपूत, रामसेवक सिंह, हेमंत गुप्ता, बिंद्रावन, प्रशांत कुमार सहित आधा दर्जन से अधिक पदाधिकारियों ने ज्ञापन देकर यह भी कहा है कि इसके बाद भी कोई श्रद्धालु भरा कदम उठाते हैं तो उसके लिए समिति जिम्मेवार नहीं होगी। समिति ने पुलिस प्रशासन को भी इस निर्णय से अवगत कराया दिया है।

सरीला के श्री शल्लेश्वर मन्दिर में स्थापित शिवलिंग का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है

सावन मास सोमवार से शुरू हो गया इस मास में शिवपूजन एवं दर्शन का विशेष महत्व है। सावन मास सोमवार से शुरू हो रहा है। सावन मास में सोमवार को शिवलिंगों का विशेष पूजन अर्चन होता है। इस वर्ष कोरोना वायरस के चलते धर्मस्थल में भीड़भाड़ एकत्र न होने के निर्देश प्रशासन ने दे रखे हैं। मंदिर प्रबंधन भी भीड़ से परहेज करने के ईइंतजाम कर रहा है।

हमीरपुर जनपद से 65 किमी दूर श्री शलेश्वर धाम सरीला में स्थित श्री शल्लेश्वर मन्दिर में स्थित शिवलिंग का विशेष महत्व है। सावन मास के प्रत्येक सोमवार को यहां दर्शन-पूजन के लिए शिवभक्तों की भारी भीड़ उमड़ती रही है। सरीला जनपद हमीरपुर का एक अति पिछड़ा क्षेत्र है, यह क्षेत्र अपने आप मे महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र कई तपस्वीयों व ऋषि मुनियों की कर्मभूमि रहा है। जहां के अवशेष अपने गर्भ में एक लंबा इतिहास छिपाये हुये है। बुंदेलखंड का इतिहास महाभारत काल से माना जाता है। महाभारत काल में सोलह महाजनपद थे जिनमें से एक जनपद चेदिन था जिसको आज बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है। चेदि महाजनपद की राजधानी शुक्तिमती थी, इस जनपद के प्राचीनतम राजा शिशुपाल थे जिन्हें श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से मारा था।

इसी प्राचीनतम अच्छेचेदि प्रदेश का छोटा सा हिस्सा है - सरीला

इसी प्राचीनतम अच्छेचेदि प्रदेश का छोटा सा हिस्सा है - सरीला। जिसमें अति प्राचीन तम शिवलिंग स्थापित हैं "शल्लेश्वर मंदिर"में। जिसकी वजह से लाखों श्रद्धालु अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने इस मंदिर में उपस्थित होते हैं। आज भी लाखों लोग शिवरात्रि के पावन पर्व पर इस मंदिर में इस शल्लेश्वर धाम मे माथा टेकने आते हैं। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बुंदेलखंड में गुप्त काल को स्वर्ण युग माना गया है। गुप्त काल में इस क्षेत्र में मंदिरों, गुफाओं,और वास्तुकला का उदय हुआ उससे पहले मंदिरों का उल्लेख नहीं मिलता है। बुंदेलखंड क्षेत्र में मंदिरों का निर्माण गुप्त काल में शुरू हुआ और चंदेल काल तक उसका विस्तार चरम पर था। बुंदेलखंड में चंदेलों का सम्राट 9वीं शताब्दी में स्थापित हुआ।

चंदेल काल में प्रथम राजा चंद्रवर्धन थे जो चंद्रवंशी क्षत्रिय थे। बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा मंदिरों का निर्माण चंदेल काल में हुआ राजा परम लाल 1202 तीसरी में कुतुबुद्दीन एबक से पराजित होकर कालिंजर चले गये थे। क्षेत्र मुस्लिम शासकों के अधीन हो गया था। इस चेदि प्रदेश या बुंदेलखंड में विशालकाय मंदिरों की स्थापना हुई जो आज पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं। श्री शल्लेश्वर धाम सरीला में प्राचीनतम शिवलिंग हैं।

यहां पर बने मठ को देखने से प्रतीत होता है कि उनका निर्माण गुप्तकाल एवं चंदेल काल के मध्य हुआ भगवान शिव के शिवलिंग को देखें तो चंदेलकाल के पूर्व का निर्माण माना जा सकता है। मठ में गुम्बद दीवार होने से यह चंदेलकालीन प्रतीत होता है। सरीला स्टेट की वंशावली महाराजा छत्रसाल से प्रारंभ हुई। आज सरीला स्टेट हमीरपुर जनपद की एक तहसील है यहां प्रतिवर्ष शिवरात्रि के पावन वर्ष पर लाखों श्रद्धालु इस शिवलिंग पर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते हैं।

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मंदिर में कराई जाएगी बैरीकेटिंग

मंदिर कि समिति द्वारा इस वर्ष कोरोना वायरस के चलते सरकार की गाइडलाइन के द्वारा ही मन्दिर परिसर में भीड़ न हो इसके लिए बैरीकेटिंग कराई जा रही है। गर्भगृह में पांच भक्तों को जाकर पूजन-अर्चन का इंतजाम किया गया है। उनका प्रयास होगा कि शासन द्वारा तय किए गए नियमों के तहत ही लोग भगवान की भक्ति कर अपनी मनोकामना पूर्ण करें।

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