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खाकी पर भारी खादीः राजनीति में बढ़ती दिलचस्पी, एक और अधिकारी कतार में
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य बिहार में विधानसभा चुनाव की आहट सुनते ही राजनेताओं का दिल बदलने से दल बदलने तक का खेल शुरू हो गया है।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य बिहार में विधानसभा चुनाव की आहट सुनते ही राजनेताओं का दिल बदलने से दल बदलने तक का खेल शुरू हो गया है। लेकिन इन सबके बीच भारतीय पुलिस सेवा के बड़े अधिकारी का खाकी उतारकर खादी पहनने का मोह राजनीति के प्रति बढ़ती दिलचस्पी का एक और उदाहरण बनने जा रहा है।
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गुप्तेश्वर पाण्डेय अभी किसी भी दल में जाने से इंकार कर रहे हैं
हांलाकि गुप्तेश्वर पाण्डेय अभी किसी भी दल में जाने से इंकार कर रहे हैं पर माना जा रहा है कि पुलिस की नौकरी छोड़ने के बाद पाण्डेय सत्तारूढ जद (यू) से राजनीति में अपनी नई पारी की शुरुआत करेंगे। गुप्तेश्वर पाण्डेय भारतीय पुलिस सेवा के कोई पहले अधिकारी नहीं हैं उनके पहले यूपी में तो इसका लंबा चौड़ा इतिहास है। ये बात अलग है कि इसमें कुछ लोग सफल रहे तो कुछ असफल रहे हैं।
जीपी रहे श्रीश चन्द्र दीक्षित भाजपा से 1991 में सांसद रहे
यूपी में डीजीपी रहे यशपाल सिंह, बृजलाल एके जैन के अलावाश्रीश चन्द्र दीक्षित इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है। प्रदेश के डीजीपी रहे श्रीश चन्द्र दीक्षित भाजपा से 1991 में सांसद रहे। भाजपा ज्वाइन करने वाले पूर्व डीजीपी (होमगार्ड) सूर्य कुमार शुक्ला को कोई राजनीतिक पद नहीं मिला है। लेकिन भाजपा ने बृजलाल को जरूर एससीएसटी कमीशन का चेयरमैन बनाकर उन्हे राज्यमंत्री का दर्जा दे रखा है। एक और डीजीपी यशपाल सिंह ने भी 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले अप्रैल 2011 में पीस पार्टी का दामन थामा था। लेकिन उन्हे राजनीति कुछ खास रास नहीं आई।
केरल के एडीजी रहे राजबहादुर भी लखनऊ की सरोजनीनगर विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना भाग्य आजमा चुके है। पर भाग्य न उनका साथ नहीं दिया। जबकि डिप्टी एडीजी रहे मंजूर अहमद ने कांग्रेस और बसपा दोनों दलों में रहकर मेयर और विधायकी का चुनाव लड़े और दोनों चुनावों में शिकस्त का सामना करने के बाद राजनीति से तौबा कर ली। एडीजी रहे मनोज कुमार सिंह भी २०११ में कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन कई प्रयास के बाद भी उन्हे टिकट नहीं मिला।
politics (social media)
एडीजी सुब्रत त्रिपाठी ने किसी दल में शामिल होने के बजाय अपनी ही पार्टी 'मनुवादी पार्टी' बनाई
एडीजी सुब्रत त्रिपाठी ने किसी दल में शामिल होने के बजाय अपनी ही पार्टी 'मनुवादी पार्टी' बनाई। चुनावी राजनीति में न सही लेकिन अपनी पार्टी के जरिए वे राजनीतिक गतिविधियों में हमेशा सक्रिय रहते है। आईजी रहे एसआर दारापुरी भी अपना दल बना चुके है। राबर्ट्सगंज से सांसदी और उससे पूर्व शाहाबाद से विधायकी का चुनाव भी लड़े लेकिन सफल नहीं हुए। आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट में रहकर दारापुरी राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रहते है। तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार में पुलिस महानिरीक्षक रह चुके अमरदत्त मिश्र ने रिटायर होने के बाद विधानसभा चुनाव भदोही से लड़ा लेकिन पराजित हुए। जबकि डीआईजी रहे सीएम प्रसाद सोनभद्र की दुद्वी विधानसभा से जीतकर विधानसभा पहुंचे।
बात केवल यहीं तक सीमित नहीं है। राजनेताओं के साथ में रहकर भी कई लोगों को राजनीति रास आ गयी। सपा बसपा से सांसद- विधायक रहे उमाकांत यादव पुलिस की नौकरी से बर्खास्त होने के बाद राजनीति में आए । पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सुरक्षाकर्मी रहे प्रो.एसपी सिंह बघेल कभी लोकसभा तो कभी राज्य सभा के सदस्य बनते रहे। इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सुरक्षा में रहे कमल किशोर कमांडों कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा में अपनी आमद दर्ज करा चुके है।
सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे अहमद हसन रिटायर होने के बाद से समाजवादी पार्टी की राजनीति में आ गए
सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे अहमद हसन रिटायर होने के बाद से समाजवादी पार्टी की राजनीति में सक्रिय है। यूपी कैडर के एक आईपीएस अधिकारी दावा शेरपा राजभवन में एडीसी रहने के बाद नौकरी छोडकर अपने गृहराज्य मेघालय चले गए जहां पर दार्जिलिग से चुनाव लड़े पर वह चुनाव हार गए और राजनीति से किनारा कर लिया।
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मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे सत्यपाल सिंह बागपत से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीतकर मोदी सरकार में मंत्री भी बने। फैजाबाद के एसएसपी रहे डीबी राय भाजपा के टिकट से दो बार लोकसभा पहुंच चुके है। सपा सरकार में एसटीएफ से इस्तीफा देकर पीपीएस अधिकारी शैलेन्द्र सिंह ने चंदौली ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी कांग्रेस से शुरू की। सीआरपीएफ में आई जी रहे वीवीएस पवार ने रालोद और एडीजी बीजेन्द्र सिंह और डीआईजी केके तिवारी सरीखे नेताओं ने चुनाव के दौरान पीस पार्टी ज्वाइन की लेकिन चुनावी खुमारी उतरने के साथ ही राजनीति करने का जज्बा भी जवाब दे गया।
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