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मोदी के संसदीय क्षेत्र का ये गांव आया चर्चा में, यहां हुआ ये काम
हमने प्रधानमंत्री आवास योजना की लाभार्थी श्रीमती इंद्रावती देवी से बातचीत कि उन्होंने बताया कि उनके पा रहने के लिए कोई मकान नहीं था किंतु प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उन्हें यह बड़ी मदद मिली।
लखनऊ। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के सेवापुरी ब्लाक का एक छोटा सा गांव है पचवारा । लगभग तीन हजार की आबादी वाला यह गांव मूल रुप से खेतीहर मजदूरों का गांव है । यहां के लोग मजदूरी करके अपनी रोजी रोटी कमाते है। सेवापुरी ब्लाक से करीब 7 किमीं दूर बसे इस छोटे से गांव में सरकार की की योजनाए पहले से पहुंच चुकी है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 42 मकान बनाए गये । मनरेगा जैसी योजना यहां लोगों के लिए संजीवनी साबित हो रही है।
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काम की तलाश में कामगार
मनरेगा से जहां एक ओर गांव में चकरोड और नाले का निर्माण कराया गया,खेतो को समतल कराया गया वहीं लोगों को काम भी मिला लेकिन ग्राम प्रधान सविता देवी ने बताया कि उनका बजट इतना नहीं होता कि गांव के हर कामगार को साल भर काम दिया जाये । एसी स्थिति में कामगारों को आसपास के गांव में काम तलाशना होता है यहां के बहुत से लोग हथकरघे से भी जुड़े है और लोहता बुनाई का काम करने जाते है।
अभी हालहिं में लॉकडाउन के दौरान 113 लोग जो रोजी रोटी की तलाश में बाहर गये थे अपने गांव पचवारा वापस लौटे। श्रीमती सविता देवी बताती हैं कि गाइडलाइन के हिसाब से इन सभी को क्वारन्टीन करने के बाद अब मनरेगा में ही काम दिया जा रहा है।
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विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी
हमने प्रधानमंत्री आवास योजना की लाभार्थी श्रीमती इंद्रावती देवी से बातचीत कि उन्होंने बताया कि उनके पा रहने के लिए कोई मकान नहीं था किंतु प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उन्हें यह बड़ी मदद मिली। एक अन्य लाभार्थी श्री प्यारेलाल ने भी केंद्र सरकार की इस योजना की प्रशंसा की और कहा कि उनके सांसद श्री नरेंद्र मोदी ने क्षेत्र के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।काश्त छोटी और बिखरी होने के कारण यहां के किसान आमतौर पर बमुश्किल अपने परिवार के लिए गेहूं और धान उपजा पाते है।
शिक्षा के लिए गांव में एक प्राइमरी स्कूल
ग्राम प्रधान ने बताया कि नीति आयोग ने सेवापूरी ब्लाक को संतृप्ति करने के लिए चुना है। इससे हम सभी में विकास की नई उम्मीदे जगी है और आने वाले दिनों में पचवारा जैसे गांव का कायाक्लप होने की पूरी उम्मीद की जा सकती है । जो भी हो यह छोटा सा गांव मूल रुप में अपनी परम्पराओं को संजोए रखने में कामयाब हुआ है और विभिन्न जातियों के लोग जिस सांप्रदायिक सद्भाव के साथ यहां रहते है वह खुद में एक अनोखी मिशाल है। बच्चो की शिक्षा के लिए गांव में ही एक प्राइमरी स्कूल है।
रोजगार के लिए नहीं जाना होगा दूर
गांव के छोटे बच्चे यहां पर शिक्षा प्राप्त करते है हालांकि उसके बाद की शिक्षा के लिए उन्हें कम से कम 4 से 5 किमी वाले दूरी के स्कूलों में जाना पड़ता है। गांव के लोगों का कहना है कि अगर यहां पर मनरेगा में साल भर काम की व्यवस्थ कर दी जाये तो इससे विकास को तो बल मिलेगा ही साथ ही लोगों को रोजगार के लिए दूर नहीं जाना होगा। छोटे उद्दोगों की भी यहां पर पर्याप्त गुंजाइश है।लोहता का हैंडलूम उद्दोग काफी पुराना है और आसपास के गांव की एक बड़ी आबादी को रोजगार देता है।
इसके केंद्र को पचवारा या उसके इर्दगिर्द वाले गांव में अगर विस्तार दिया जाये तो इससे क्षेत्रीय स्तर पर लोगों के रोजगार की एक अच्छी व्यवस्था हो सकती है।
रिपोर्टर- श्रीधर अग्निहोत्री , लखनऊ