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इलाहाबाद हाईकोर्ट की आज की बड़ी ख़बरें

आयोग ने 60 सहायक प्रोफेसरों की भर्ती का निकाला, जिसमें से 30 पद सामान्य वर्ग, 10 पद अन्य पिछड़ा वर्ग, 13 पद अनुसूचित जाति एवं एक पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित  किया गया। इसके बाद एक संशोधन द्वारा सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के पदों की संख्या 30 से घटाकर दस कर दी गई और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 30 पद अनुसूचित जाति के लिए 20 पद कर दिए गए।

SK Gautam
Published on: 31 Oct 2019 4:43 PM GMT
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इलाहाबाद हाईकोर्ट

सहायक प्रोफेसर पदों पर भर्ती अब याचिका के निर्णय के अधीन, सर्कुलर व आयोग से जवाब तलब

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग प्रयागराज की सहायक प्रोफेसर पद की भर्ती में आरक्षण नियमों का उल्लंघन किए जाने की वैधता के खिलाफ याचिका पर राज्य सरकार व आयोग से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि भर्ती के तहत नियुक्ति होती है तो वह याचिका के निर्णय पर निर्भर करेगी। यह आदेश न्यायमूर्ति अभिनव उपाध्याय ने उत्तम सोलंकी व दो अन्य की याचिका पर दिया है।

मालूम हो कि आयोग ने 60 सहायक प्रोफेसरों की भर्ती का निकाला, जिसमें से 30 पद सामान्य वर्ग, 10 पद अन्य पिछड़ा वर्ग, 13 पद अनुसूचित जाति एवं एक पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया गया। इसके बाद एक संशोधन द्वारा सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के पदों की संख्या 30 से घटाकर दस कर दी गई और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 30 पद अनुसूचित जाति के लिए 20 पद कर दिए गए।

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न जाति के लिए कोई पद आरक्षित नहीं किया गया। जिसे आरक्षण कानून के विपरीत करार देते हुए चुनौती दी गई है। आयोग के अधिवक्ता का कहना है कि डाक्टर विश्वजीत सिंह के फैसले के अनुसार आयोग ने यह संशोधन किया है। आयोग ने डाक्टर विश्वजीत सिंह केस का पालन करते हुए पदों का पुनर्निर्धारण किया है।

साथ ही याचियों ने 19 जून 2014 एवं 30 जुलाई 2014 की अधिसूचनाओ को चुनौती नहीं दी है। और चयनित अभ्यर्थियों को भी याचिका में पक्षकार नहीं बनाया गया है।

इसलिए याचिका पोषणीय नहीं है। याची ने संशोधन अर्जी दाखिल कर इन दोनों आदेशों को चुनौती देने के लिए कोर्ट से 1 सप्ताह का समय मांगा। याचिका की सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी।

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थार्नहिल रोड स्थित बंगला एक माह में खाली करने का निर्देश

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने थार्नहिल रोड प्रयागराज में स्थित नजूल भूमि पर स्थित बंगले में अवैध रूप से रह रहे निवासियों को 1 माह के भीतर कब्जा खाली करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अवैध रूप से रह रहे लोगांे को राज्य सरकार को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के बेदखल करने का अधिकार है।

कोर्ट ने कहा है कि नजूल भूमि पर अवैध कब्जेदारों के हटने के बाद उस भूमि को सरकार के कब्जे में दिया जाए, ताकि स्मार्ट सिटी योजना के तहत शहर का विकास कार्य पूरा किया जा सके।

जिलाधिकारी के आदेश के खिलाफ दाखिल 12 लोगों की याचिकाएं कोर्ट ने खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने प्रकृति राय व 6 अन्य सहित 6 याचिकाओं पर दिया है।

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राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता अजीत कुमार सिंह एवं अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता निमाई दास ने सरकार का पक्ष रखा। उनका कहना था नजूल भूमि पर पट्टे की अवधि समाप्त हो चुकी है और उसका नवीनीकरण भी नहीं हुआ है।

न ही जमीन की प्रकृति बदलने के संबंध में याचियों की अर्जी पर शासन ने कोई निर्णय नहीं लिया है। ऐसी स्थिति में जमीन पर याचियों को बने रहने का कोई हक नहीं है।

कोर्ट ने कहा केवल भूमि अधिकार में परिवर्तन के लिए आवेदन देने मात्र से किसी को कोई अधिकार नहीं मिल जाता। किसी भूमि पर कब्जा वैधानिक होना चाहिए, अनधिकृत रूप से किया गया कब्जा किसी भी रूप से मान्य नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा याचियों ने कोर्ट के अंतरिम आदेश से 15 माह से अधिक समय तक अवैध कब्जा बनाए रखा। वे एक माह मे कब्जा खाली करें।

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