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औरतों को उनका हक याद दिलाने वाले मजाज को लखनऊ ने किया याद

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ओल्ड ब्वायज़ एसोसिएशन लखनऊ की ओर से उर्दू कवि असरारुल हक मजाज़ की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करने के लिए कई लोग इकट्ठा हुए। उनकी निशातगंज कब्रिस्तान निकट पेपर मिल कॉलोनी पर स्थित कब्र पर लोगों ने फातिहा ख्वानी करते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए दुआ की गई ।

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Published on: 5 Dec 2020 10:36 PM IST
औरतों को उनका हक याद दिलाने वाले मजाज को लखनऊ ने किया याद
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औरतों को उनका हक याद दिलाने वाले मजाज को लखनऊ ने किया याद

लखनऊ: जिस शायर के कदमों के नीचे कभी लड़कियां अपने दुपट्टे बिछा दिया करती थी उसने उन्हें सूरज से भी आंख मिलाने की नसीहत दी और औरतों को बताया कि जिंदगी में उनके हक -ओ- हुकूक क्या हैं। उसने औरतों से कहा कि तेरे माथे पर यह आंचल बहुत खूब है लेकिन, इसे तू एक परचम बना लेती तो अच्छा था। ऐसे शायर मजाज लखनवी को उनकी पुण्यतिथि पर लखनऊ के संजीदा लोगों ने याद किया और उनकी शायरी को तरन्नुम में गाकर अपनी श्रद्धांजलि दी।

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मजाज़ की आत्मा की शांति के लिए दुआ की गई

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ओल्ड ब्वायज़ एसोसिएशन लखनऊ की ओर से विश्वविद्यालय कुलगीत के रचयिता और प्रसिद्ध उर्दू कवि असरारुल हक मजाज़ की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करने के लिए कई लोग इकट्ठा हुए। शनिवार को उनकी निशातगंज कब्रिस्तान निकट पेपर मिल कॉलोनी पर स्थित कब्र पर लोगों ने फातिहा ख्वानी करते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए दुआ की गई । मशहूर शायर मजाज़ का देहांत केवल 44 साल की आयु में 5 दिसंबर 1955 को दिमाग की नस फट जाने से हो गया था। उनकी शायरी ने महिलाओं को स्त्री चेतना और स्वतंत्रता के मायने समझाए।

श्रद्धांजलि के इस मौके पर विशेष रूप से शिरकत करते हुए प्रसिद्ध शायर नजमी लखनवी ने मजाज़ के प्रति अपनी अकीदत व प्रेम का इजहार उनकी प्रसिद्ध ग़ज़ल-

''खुद दिल में रहकर आंख से पर्दा करे कोई

हां लुत्फ़ जब है पा के भी ढूंढा करे कोई ''

को अपने विशेष तरन्नुम में पेश करते हुए किया।

शायर मजाज लखनवी (फाइल फोटो )

अनवर हबीब अल्वी ने मजाज़ के जीवन व शायरी पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि केवल 44 साल की जिंदगी में उर्दू शायरी में जो मकाम मजाज़ ने हासिल किया उसकी कोई नज़ीर नहीं मिलती। उनकी ज़िंदगी उमंगो हौसलों से भरपूर शुरू हुई और महरूमयों , मायूसियों में गिरकर खत्म हो गई लेकिन उन्होंने नज़र ए अलीगढ़ नामी नज्म लिखकर अलीगढ़ को तराने की शक्ल में जो तोहफ़ा दिया है वो आने वाली दुनिया में भी याद किया जाएगा। नजमुद्दीन अहमद फारूकी ने भी इस मौके पर मजाज़ की ग़ज़ल-

कुछ तुझको खबर है हम क्या-क्या ऐ शोरिश ए दौरां भूल गए

वह ज़ुल्फ़ ए परेशां भूल गए वह दीदा ए गिरियां भूल गए

तरन्नुम से पेश की।

तारिक सिद्दीकी ने कही ये बात

एसोसिएशन के अध्यक्ष तारिक सिद्दीकी ने अपने संबोधन में तमाम लोगों का धन्यवाद करते हुए कहा कि एसोसिएशन ने लखनऊ से संबंधित उन तमाम अदीबों और कवियों की रचनाएं और उनके काम को दुनिया के सामने लाने की कोशिश की है जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में या तो शिक्षा प्राप्त की या फिर उन्होंने वहां शिक्षक की हैसियत से काम अंजाम दिया। उन्होंने इस अवसर पर एसोसिएशन की लिटरेरी व कल्चरल शाखा के पूर्व कन्वीनर अहमद इरफान अलीग को भी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि अहमद इरफान अलीग ने एसोसिएशन को साहित्यिक गतिविधियों की ओर आकर्षित किया और आज का प्रोग्राम भी उन्हीं की कोशिशों का नतीजा है। कार्यक्रम का संचालन सैयद मोहम्मद शोएब ने किया।

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फातिहा पानी में एसोसिएशन के संरक्षक डॉक्टर सोहेल अहमद फारुकी, अध्यक्ष तारिक सिद्दीकी, सचिव जावेद सिद्दीकी, उप सचिव मोहम्मद गुफरान, माधव सक्सेना, मेराज हैदर ,अमीक़ जामई , एजाज़ हुसैन, हुसैन अहमद , मेहरू जाफर, आतिफ हनीफ, अशफ़ाक ख़ान और अतीक अनवर सिद्दीकी खास तौर पर मौजूद रहे।

अखिलेश तिवारी



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