×

लॉकडाउन में मसीहा बने दो दोस्त, रोज भर रहे बेजुबानों का पेट

लॉकडाउन के दौरान परेशान गरीब, मजदूर और अन्य जरुरतमंदों को तो सरकार के साथ-साथ कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा भोजन व राहत सामग्री मुहैया करवाया जा रहा है, लेकिन भूख से बेहाल मानसिक रोगी और बेजुबान जानवरों की सुधि लेने वाला कोई नहीं।

Ashiki
Published on: 1 May 2020 4:51 PM GMT
लॉकडाउन में मसीहा बने दो दोस्त, रोज भर रहे बेजुबानों का पेट
X

गोंडा: आपदा कोविड-19 के कारण उपजे वैश्विक महामारी के संकट से पूरे विश्व में हाहाकार मचा हुआ है। कोरोना के इस संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए देश में लॉकडाउन में लागू किया गया है। लॉकडाउन से गरीब और ज़रूरतमंद लोगों के साथ-साथ बेजुबान और बेसहारा पशु-पक्षियों के लिए भी यह बहुत ही मुश्किल समय है। लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं और ऐसे में इन पशु-पक्षियों को खाना नहीं मिल पा रहा है। सड़क पर घूम रहे मानसिक विक्षिप्त, बेजुबान जानवरों, कुत्तों तथा बंदरों की दशा और भी दयनीय हो गई है। इनका जीवन भी संकट में है क्योंकि उनके लिए इस समय भोजन की समस्या है।

ये पढ़ें: क्या-क्या मिला आपको: 3 जोन में बने अलग-अलग नियम, यहां देखें पूरी लिस्ट

लॉकडाउन के दौरान परेशान गरीब, मजदूर और अन्य जरुरतमंदों को तो सरकार के साथ-साथ कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा भोजन व राहत सामग्री मुहैया करवाया जा रहा है, लेकिन भूख से बेहाल मानसिक रोगी और बेजुबान जानवरों की सुधि लेने वाला कोई नहीं। ऐसे में इन बेजुबानों की तकलीफ को समझते हुए शहर के समाजसेवी अजय कुमार मिश्र और उनके मित्र अजय गुप्ता ने बेसहारा जानवरों के लिए एक कदम आगे बढ़ाया है।

दोनों अपने सहयोगियों के साथ प्रतिदिन सड़क पर इधर उधर घूम रहे मानसिक रोगियों, छुट्टा जानवरों को सब्जी, फल, हरा चारा व अन्य खाद्य सामग्री मुहैया करवा रहे हैं। जानवरों के ये सच्चे दोस्त उनके लिए लगातार काम कर रहे है और एक हजार से ज्यादा जानवरों को रोज खाना खिला रहे हैं।

बेजुबानों को भोजन कराकर ही करते हैं भोजन

रेलवे स्टेशन से सटे ग्राम रानीजोत के मूल निवासी और अब बड़गांव पुलिस चौकी के निकट मधू विहार के निवासी अजय कुमार मिश्रा एर्फ पप्पू की मिश्रा मिल स्टोर के नाम से दुकान है, जिसमें वे हार्डवेयर, सेनेट्री और पाइप की थोक बिक्री का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के बाद जब काम धंघा बंद हुआ तो सरकार ने दिहाड़ी मजदूर, विकलांग, गरीबों के लिए सरकार ने मदद की घोषणा किया और तमाम सामाजिक संस्थाएं भी उनके मदद में जुट गईं।

ये पढ़ें: कमश्निनर की कोशिश से शुरू होगा मनरेगा, गरीब और मजदूरों को मिलेगा काम

लेकिन बेसहारा मानसिक रोगी, जानवर और बंदरों के लिए कोई आगे नहीं आया तो उनके मन में आया कि इनका पेट भरने के लिए कुछ करना चाहिए। इसकी चर्चा जब उन्होंने अपने मित्र और अर्पिता अगरबत्ती के मालिक राजू गुप्ता से की तो उन्होने भी भी तनमन और धन से सहयोग का भरोसा दिया। इसके बाद से ही कुछ अन्य सहयोगियों के साथ इन पागल, बेजुबान जानवरों के भोजन की व्यवस्था करने लगे। अब प्रतिदिन इन बेजुबानों को भोजन करवाने के बाद ही हम लोग भोजन करते हैं।

निःस्वार्थ पशुओं की सेवा

अजय कुमार मिश्रा ने कहा कि पहले मैं और मेरे पड़ोसी और सहयोगी अर्पिता अगरबत्ती के मालिक राजू गुप्ता अपने निजी खर्च से पशुओं के भोजन की व्यवस्था करते हैं। इस नेक कार्य में अब जिले के कई गणमान्य नागरिकों के उत्साहवर्धन से लाकडाउन के दूसरे दिन से ही नगर क्षेत्र के लगभग सभी बेसहारा पशुओं के भोजन की व्यवस्था की जा रही है।

ये पढ़ें: अगले दो साल तक बनी रहेगी कोरोना महामारी, शीर्ष संस्थानों के वैज्ञानिकों की चेतावनी

उन्होने बताया कि खैरा मंदिर, बड़गांव, रानी बाजार से लेकर पोर्टरगंज और शहर में आवास विकास, चौक, फैजाबाद रोड, बेलसर रोड, बहराइच रोड पर घूम-घूम कर मानसिक रोगियों, बेसहारा जानवरों, कुत्तों और बंदरों को ब्रेड, बिस्कुट, पूड़ी, हरा चारा, सब्जी और फल खिलाकर उनका पेट भरने का प्रयास किया जाता है। हर दिन अपने घर से निकलकर रास्ते में दर्जनों मानसिक रोगियों और एक हजार से अधिक जानवरों का पेट भरते हैं। इनमें कुत्ते, बन्दर समेत अन्य जानवर शामिल हैं।

प्रतिदिन 12 कुंतल का है खर्च

अजय मिश्रा बताते हैं कि इस कार्य में प्रतिदिन कुल मिलाकर 10 कुंतल सब्जी, दो कुंतल केला आदि खरीदना पड़ता है। तब शहर के लगभग एक हजार जानवर और इतने ही बंदरों के लिए एक टाइम के खाने की व्यवस्था हो पाती है। जानवरों के लिए सब्जी में गोभी, लौकी, टमाटर, भिंडी, मूली, साग व बंदरों के लिए केला लिया जाता है।

ये पढ़ें: काशी वासियों के इस कदम से जिला प्रशासन के छूटे पसीने, फिर हुआ ये…

जबकि शहर में घूम रहे लगभग चार दर्जन मानसिक रोगियों के लिए पूड़ी, ब्रेड और बिस्कुट का इंतजाम करना पड़ता है। इसमें तकरीबन सात-आठ हजार रुपए तक प्रतिदिन का खर्च आता है। उन्होंने बताया कि 10 बजे के बाद सब्जी मंडी जाते हैं और किसानों के बचे माल को सस्ते दाम में खरीदते हैं।

टेड़िया से लौकी और कटहाघाट के निकट से बंधा गोभी भी अपेक्षाकृत सस्ती मिल जाती है। इसके अलावा आवास विकास तथा कटहाघाट रोड पर स्थित केले के प्लांट में डाल से टूटा केला भी सस्ता मिल जाता है। राजू गुप्ता का अपना लोडिंग वाहन होने से मात्र डीजल ही भरवाना पड़ता है। नगर मजिस्ट्रेट के सहयोग से प्रशासन से पास ले लिया ताकि बिना किसी समस्या के जानवरों की मदद कर पाऊं।

बेजुबानों का पेट भरने पुनीत कार्य

पीएम केयर फंड में भी पांच हजार एक सौ रुपए दान कर चुके समाजसेवी अजय मिश्रा और राजू गुप्ता का कहना है कि संकट के समय में बेजुबानों का पेट भरना सबसे पुनीत कार्य है। इससे उन्हें खुशी मिलती है। परिवार और शुभचिंतकों की शाबासी उन्हें संबल प्रदान करती है।

ये पढ़ें: सूडान का ऐतिहासिक फैसला, अब महिलाओं के खतने पर होगी जेल, जानें इसके बारे में

ईश्वर की इच्छा तक उनका यह कार्य चलता रहेगा। आज के समय में ज़रूरत है कि हम सब मिलकर एक-दूसरे की ताकत बनें और साथ ही, इन बेजुबानों का भी ख्याल रखें। इस मुश्किल वक़्त को हम सब अपनी इंसानियत से ही हरा सकते हैं। उन्होंने समाज के सक्षम लोगों से अपील किया है कि कोई भी इंसान अथवा जानवर भूखा मिले तो उसे भोजन अवश्य कराएं।

रिपोर्ट- तेज प्रताप सिंह

Ashiki

Ashiki

Next Story