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अब जागो योगी सरकार: बेकाबू हो रहे हैं प्रदेश के हालात, होंगे बुरे परिणाम

मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में यूपी में हालात अत्यंत गंभीर हो चुके हैं। आंकड़ों के मुताबिक पांच से सात प्रतिशत आबादी डिप्रेशन की गिरफ्त में है। आब्सेशन कम्पलसन डिस्आर्डर के शिकार लोग 10-14 प्रतिशत हैं। जबकि इस कोरोना काल में सूबे में स्ट्रैस डिस्आर्डर के शिकार के शिकार लोगों की औसत 80-90 फीसद तक है।

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Published on: 1 Nov 2020 1:07 PM GMT
अब जागो योगी सरकार: बेकाबू हो रहे हैं प्रदेश के हालात, होंगे बुरे परिणाम
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( फोटो:सोशल मीडिया)

लखनऊ। कोरोना काल में मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में उत्तर प्रदेश में हालात अत्यंत गंभीर हो चुके हैं। आंकड़ों के मुताबिक पांच से सात प्रतिशत आबादी डिप्रेशन की गिरफ्त में है। आब्सेशन कम्पलसन डिस्आर्डर के शिकार लोग 10-14 प्रतिशत हैं। जबकि इस कोरोना काल में सूबे में स्ट्रैस डिस्आर्डर के शिकार के शिकार लोगों की औसत 80-90 फीसद तक है। इतने भयावह हालात होने के बावजूद अफसोस की बात ये है कि इस दिशा में उत्तर प्रदेश सरकार और यहां के नौकरशाह इस कदर उदासीन हैं कि वह मानसिक स्वास्थ्य को बीमारी मानते ही नहीं हैं। वह इसे लग्जरी में गिनते हैं।

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सरकारी धन की लूट खसोट

mental health issue ( फोटो:सोशल मीडिया)

जबकि सूबे में कोरोना काल शुरू होने के बाद से कोरोना की जांच या रिपोर्ट को लेकर लोगों का तनाव और डिप्रेशन चरम पर है जिसका नतीजा है कोरोना पाजिटिव रिपोर्ट आने के बाद लोगों का आत्महत्या करना, लोगों का कोरोना जांच कराने से कतराना, कोरोना पाजिटिव निकल आने पर भी छिपाना, जांच कराने से बचने के बहाने बनाना, मौके से भागने की कोशिश करना।

चौंकाने वाली बात ये है कि मानसिक रोगों का भविष्य स्वास्थ्य विभाग के हवाले न होकर समाज कल्याण व एनजीओज के हवाले है। जोकि क्लिनीक चलाने व पुनर्वास के नाम पर सरकारी धन की लूट खसोट में लगे हैं।

mental health ( फोटो:सोशल मीडिया)

इन एनजीओज पर निगरानी का कोई तंत्र आज तक विकसित नहीं हो पाया है। मेंटल हेल्थ एक्ट 2017 से लागू है लेकिन आज तक उसका पूर्ण रूपेण क्रियान्वयन नहीं हो सका है। जबकि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दायर होने वाली याचिकाओं के जवाब में प्रदेश के अधिकारी हर बार झूठे वायदे करके चले आते हैं कि लागू किया जा रहा है।

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उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में प्रदेश के सभी जिलों में कोरोना काल में काउंसर तक नियुक्त नहीं हो सके। आठ- नौ नवंबर को इस संबंध में साक्षात्कार होने जा रहा है।

सरकारी स्तर पर ई संजीवनी के तहत नौ साइक्रिट्रिए नियुक्त हुए लेकिन ये भी हाथी के दिखाने के दांत साबित हुए क्योंकि मनोरोग का शिकार व्यक्ति काउंसर से फेस टु फेस बात करके संतुष्ट होना चाहता है। डिस्ट्रिक्ट हेल्थ प्रोग्राम सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट के जिम्मे है। स्वास्थ्य विभाग का कोई लेना देना नहीं है।

mental illness ( फोटो:सोशल मीडिया)

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बच्चों के लिए चाइल्ड सेक्रेट्री पर कोई काम नहीं

मजे की बात ये भी है कि प्रदेश में मेंटल हेल्थ से जुड़ा एक भी नशा मुक्ति केंद्र सरकारी पैसे से नहीं चल रहा है। खासकर बच्चों के लिए चाइल्ड सेक्रेट्री पर कोई काम नहीं हुआ है। चाइल्डहुड डिप्रेशन रिएक्टिव स्ट्रैस किसी भी वजह से हो सकता है कोई इस बारे में सोचना नहीं चाहता है।

सबसे खास बात ये है कि नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम के राज्य प्रभारी डा. सुनील पांडे को यहां से हटाकर कानपुर देहात का नोडल अधिकारी बनाकर भेजा जा रहा है। यानी अब मेंटल हेल्थ पर राज्य स्तर पर बात करने के लिए कोई अधिकारी भी नहीं रहेगा।

इसके अलावा जिलों में मेंटल हेल्थ पर जो बोर्ड गठित होने थे वह अभी तक गठित नहीं हो पाए हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो मेंटल हेल्थ पर सरकार का सारा काम कागजों से उतर कर जमीन पर अभी तक नहीं आ सका है।

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रिपोर्ट- रामकृष्ण वाजपेयी

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