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गोरखपुर में गायब हो गए शराब पीने वाले, जानें क्या है वजह

एक दिन की बंपर शराब बिक्री ने शौकिनों की जेब खाली कर दी या फिर लॉकडाउन की मजबूरी ने इन्हें शरीफ बना दिया। सच्चाई कुछ भी हो लेकिन शराब की दुकानों के बाहर सन्नाटे ने लाइसेंसी ठेकेदारों के साथ ही आबकारी विभाग के जिम्मेदारों के हाथ-पांव फुला दिये हैं।

Dharmendra kumar
Published on: 10 May 2020 12:03 PM IST
गोरखपुर में गायब हो गए शराब पीने वाले, जानें क्या है वजह
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गोरखपुर में गायब हो गए शराब पीने वाले, जानें क्या है वजह

गोरखपुर: एक दिन की बंपर शराब बिक्री ने शौकिनों की जेब खाली कर दी या फिर लॉकडाउन की मजबूरी ने इन्हें शरीफ बना दिया। सच्चाई कुछ भी हो लेकिन शराब की दुकानों के बाहर सन्नाटे ने लाइसेंसी ठेकेदारों के साथ ही आबकारी विभाग के जिम्मेदारों के हाथ-पांव फुला दिये हैं। आबकारी विभाग के पास जहां टारगेट पूरा करने का संकट है, वहीं कोटे से कम शराब बिक्री से परेशान लाइसेंसी ठेकेदारों को जुर्माने का भय सताने लगा है। अब तो दुकानदार अपना लाभ छोड़कर शराब खरीदने का ऑफर देने लगे हैं।

गोरखपुर में 513 अंग्रेजी, बीयर और देसी शराब की दुकानें हैं। इनमें से राजस्व का आधा हिस्सा देसी शराब की बिक्री से पूरा होता है। सामान्य दिनों में जिले की शराब की दुकानों से 2 से 2.5 करोड़ की शराब बिकती है, लेकिन लॉकडाउन में बिक्री 50 से 75 लाख के बीच सिमट गई है। लॉकडाउन में बाद बीते 4 अप्रैल को शराब की दुकानें खुलीं तो शौकिनों की लंबी कतार लग गई थी। एक ही दिन में करीब 6 करोड़ की बिक्री के बाद अनुमान लगाया जाने लगा कि स्टाक चंद दिनों में खत्म हो जाएगा। पर दूसरे दिन से ही बिक्री धड़ाम है। कूड़ाघाट के जिस दुकानों पर 10 लाख रुपये की अंग्रेजी शराब बिकी थी, वहां दूसरे दिन की बिक्री 2 लाख पर सिमट गई। पिछले दो-तीन दिनों से लाइसेंसियों का हालत खराब है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

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रेलवे स्टेशन रोड पर देसी की दुकान खूब गुलजार रहती है। पिछले कुछ दिनों से वहां सन्नाटा है। यहां प्रतिदिन देसी शराब बेचने का कोटा करीब 5000 शीशी बेचने का है, पर बिक रही है बमुश्किल 500 शीशी ही। वहीं दाउदपुर देसी शराब की दुकान का कोटा करीब 3000 शीशी प्रतिदिन का है लेकिन बिक्री 700 शीशी की भी नहीं है। सिक्टौर ग्रामीण क्षेत्र पड़ता है, ऐसे में वहां की स्थिति कमोबेश ठीक है। यहां प्रतिदिन 1500 शीशी बिक्री का कोटा है, लेकिन बिक्री बमुश्किल 600 शीशी है।

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जंगल कौड़िया में आम दिनों में 15 से 20 पेटी बीयर की बिक्री थी, पिछले दो दिनों में 2 पेटी की भी बिक्री नहीं हो रही है। यही हाल जलकल बिल्डिंग में बीयर की दुकान का है। यहां एक दिन में 24 पेटी बीयर बिक्री का कोटा है लेकिन बिक रहा है बमुश्किल 6 पेटी। जिला आबकारी अधिकारी वीपी सिंह का कहना है कि कोटे के मुताबिक शराब बेचनी ही है। तय कोटे से कम बिक्री पर लाइसेंसियों की सुरक्षा राशि से कटौती की जाएगी। फिलहाल बिक्री प्रभावित है। स्थिति सामन्य होगी तो बिक्री भी बढ़ेगी।

प्रतीकात्मक तस्वीर

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मजदूर लौट गए गांव, कैसे हो बिक्री

देसी शराब की बिक्री ऐसे मजदूरों पर टिकी है, जो रोज कमाते हैं और खर्च कर देते हैं। या फिर ग्राम प्रधान, सांसदी और विधायकी के चुनाव में देसी की बिक्री पर जोर रहता है। एक लाइसेंसी ठेकेदार का कहना है कि देसी शराब आम तौर पर ऐसे लोग पीते हैं, जो रोज कमाते हैं और खर्च कर देते हैं। ऐसे लोगों का रोजगार बुरी तरह प्रभावित है। जिसका असर बिक्री पर है। क़स्बाई इलाकों में देसी शराब की दुकानों की बिक्री तो कुछ हद तक ठीक है, लेकिन शहरी इलाकों की दुकानों में सन्नाटा है।

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इसी क्रम में बीयर की बिक्री भी बुरी तरह प्रभावित है। शराब कारोबारी अंकुश श्रीवास्तव का कहना है कि देसी का दाम 5 रुपये बढ़ गया है। वहीं अब अंग्रेजी शराब की बढ़े कीमत पर आ रही है। संकट और बढ़ता दिख रहा है। लॉकडाउन आगे बढ़ा तो तय कोटे की शराब भी नहीं बेच सकेंगे। आबकारी विभाग के अधिकारी रोज चेतावनी दे रहे हैं कि कोटा से कम शराब बिकी तो सिक्योरिटी मनी से कटौती की जाएगी। अब तो ग्राहकों को मुनाफा छोड़कर शराब बेचने की नौबत आ गई है। ऐसे करेंगे तो कम से कम जुर्माने से तो बचेंगे।

रिपोर्ट: पूर्णिमा श्रीवास्तव

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