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UP Two Mafia Dons: कभी गहरे दोस्त थे यूपी के ये दो माफिया डॉन, जिनसे अपराध भी थर्राता था, अब फिर चर्चा में आया नाम

UP Two Mafia Dons: अवधेश राय हत्याकांड में कोर्ट का फैसला आने के बाद मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह का नाम एक बार फिर चर्चा हैं। ये नाम फिर चर्चा में क्यों है जानिए इसके पीछे क्या है कारण।

Ashish Pandey
Published on: 5 Jun 2023 5:56 PM GMT
UP Two Mafia Dons: कभी गहरे दोस्त थे यूपी के ये दो माफिया डॉन, जिनसे अपराध भी थर्राता था, अब फिर चर्चा में आया नाम
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कभी गहरे दोस्त थे यूपी के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह: Photo- Social Media

UP Two Mafia Dons: 1991 में वाराणसी में हुए अवधेश राय हत्याकांड पर एमपी-एमएलए कोर्ट ने सोमवार को माफिया डाॅन मुख्तार अंसारी को उम्रकैद की सजा सुनाई है। वहीं 16 साल पहले हुए बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या मामले में हाल ही में गाजीपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने मुख्तार अंसारी को 10 साल की सजा के साथ ही 5 लाख का जुर्माना भी लगाया था। बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या मामले में मुख्तार और उसके भाई अफजाल अंसारी पर गैंगस्टर एक्ट लगा था। अवधेश राय हत्याकांड में सजा मिलने के साथ ही एक समय पूर्वांचल में दो बड़े माफिया डॉन मुख्तार और बृजेश सिंह की दुश्मनी की कहानी एक बार फिर से ताजा हो गई।

बॉलीवुड फिल्मों की तरह है बृजेश सिंह की कहानी-

बृजेश सिंह की कहानी बाॅलीवुड फिल्म की तरह है। बॉलीवुड की फिल्मों में दिखाया जाता है कि कैसे 12वीं की परीक्षा पास कर कॉलेज में अपने सपनों को पूरा करने के लिए जाने वाला नौजवान गैंगस्टर बन जाता है। ठीक ऐसी ही कहानी है अरुण सिंह उर्फ बृजेश सिंह की। बनारस के धौरहरा गांव के एक संभ्रांत किसान व स्थानीय नेता रविंद्र नाथ सिंह के बेटे अरुण सिंह ने 12वीं की परीक्षा पास की और अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए आगे की पढ़ाई करने लगा। अरुण सिंह ने बीएससी में एडमिशन ले लिया। रविंद्र नाथ सिंह भी हर पिता की तरह चाहते थे कि उनका बेटा भी पढ़ लिखकर अफसर बने और परिवार के साथ-साथ गांव का नाम भी रोशन करे, लेकिन यहां नियती को कुछ और ही मंजूर था और अरुण सिंह उर्फ बृजेश सिंह की किस्मत में कहानी कुछ और ही लिखी थी।

27 अगस्त 1984 वह तारीख जिसने बदल दी बृजेश की जिंदगी-

27 अगस्त 1984 की ऐसी तारीख थी जिसने अरुण सिंह की जिंदगी बदल दी। पिता रविंद्र नाथ सिंह की गांव के ही दबंगों ने बेरहमी से हत्या कर दी। पिता की हत्या के बाद अरुण सिंह की जिंदगी में नया मोड़ आ गया वह बौखला गया और उसने अपनी जिंदगी का रुख ही बदल दिया। अरुण ने पिता के हत्यारों को निपटाने की कसम खाई और एक साल के अंदर ही 27 मई 1985 को हत्या के मुख्य आरोपी हरिहर सिंह की हत्या का आरोप लगा। अरुण सिंह अब बृजेश सिंह बनने की राह पर निकल चुका था और उसके ऊपर हत्या का पहला मुकदमा दर्ज हो चुका था, लेकिन वह अभी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा क्योंकि उसे अभी पिता के बाकी हत्यारों से बदला लेना बाकी था।

जब मुख्तार से शुरू हुई अदावत

अब बृजेश की कहानी दूसरी ओर करवट ले चुकी थी, पढ़ाई छोड़ वह जुर्म की राह पर निकल पड़ा था। उसकी दोस्ती त्रिभुवन सिंह से हो गई। बृजेश और त्रिभुवन की कहानी कुछ एक जैसी ही थी, तो दोनों में दोस्ती भी जल्दी हो गई। वहीं जेल में रहकर बृजेश सिंह को अब समझ में आ गया था कि जरायम की दुनिया ही अब उसका सब कुछ है। यहीं से उसे ताकत हासिल करनी है और पैसा भी कमाने हैं। फिर क्या था दोनों ने यहीं से अपना धंधा शुरू कर दिया। जेल से ही बृजेश और त्रिभुवन ने स्क्रैप और बालू की ठेकेदारी करने वाले साहिब सिंह का साथ पकड़ा। फिर क्या था दोनों अब साहिब सिंह के लिए काम करने लगे। साहिब सिंह को सरकारी ठेके दिलवाने लगे और यहीं से बृजेश सिंह का टकराव शुरू हुआ पूर्वांचल के दूसरे माफिया डॉन मुख्तार अंसारी से। बतादें कि मुख्तार साहिब सिंह के विरोधी मकनू सिंह के लिए काम कर रहा था।

सरकारी ठेकों में वर्चस्व को लेकर मकनू और साहिब सिंह तक चली आदावत अब बृजेश और मुख्तार के बीच भी शुरू हो गई। फिर हालात ऐसे बिगड़े कि मुख्तार और बृजेश दोनों ने अपने सरपरस्तों से खुद को अलग कर अपना गैंग बना लिया और दबदबा कायम करना शुरू किया। मुगलसराय की कोयला मंडी, आजमगढ़, बलिया, भदोही, बनारस से लेकर झारखंड तक शराब की तस्करी, स्क्रैप का कारोबार, रेलवे के ठेके बालू के पट्टे को लेकर बृजेश और मुख्तार के बीच गोलियां चलने लगीं।

तारीख 15 जुलाई साल 2001-

तारीख 15 जुलाई साल 2001... समय 12: 30 बजे....पूर्वांचल एक बड़ा माफिया अपने काफिले के साथ गाजीपुर के मुहम्मदाबाद से मऊ जा रहा था नाम था मुख्तार अंसारी। मुख्तार का लाव-लश्कर अभी उसरी चट्टी के पास पहुंचा ही था कि तभी स्वचालित असलहों से उसके काफिले पर ताबड़तोड़ फायरिंग होने लगी। ये गोलियां पूर्वांचल का एक और डॉन बृजेश सिंह अपने साथियों के साथ मिलकर बरसा रहा था। उत्तर प्रदेश की क्राइम हिस्ट्री में यह घटना उसरी चट्टीकांड के नाम से दर्ज हो गई। हमले में मुख्तार तो बच गया लेकिन उसके एक गनर की मौत हो गई। वहीं जवाबी फायरिंग में एक शूटर भी मारा गया। बाहुबली मुख्तार ने इस मामले में बृजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह सहित 15 अज्ञात हमलावरों के खिलाफ मामला दर्ज कराया। घटना के बाद बृजेश सिंह फरार हो गया।

90 के दशक में मुख्तार और बृजेश की दुश्मनी ने पूर्वांचल को खून से लाल कर दिया था। मु्ख्तार जहां अपने दुश्मनों को खुलेआम चुनौती देता था तो बृजेश सिंह शातिर से दिमाग से निपटाने में यकीन रखता था। वर्चस्व की लड़ाई में कई लोगों का खून बहा और मौतें हुई। लेकिन चट्टीकांड क्यों हुआ इसके पीछे भी एक हत्या वजह बनी। इससे पहले की घटनाओं में एक दूसरे के गुर्गे मारे गए थे, लेकिन चट्टी कांड में पहली बार दोनों माफिया आमने-सामने आए थे।

एक समय था जब मुख्तार और बृजेश के बीच तगड़ा याराना था और दोनों ही उस समय अंडरवर्ल्ड में अपनी पैठ बना रहे थे, लेकिन 1991 में वाराणसी के पिंडारा से विधायक रहे अजय राय के भाई अवधेश राय की हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में मुख्तार और उसके गैंग का नाम आया। कहा जाता है कि बृजेश ने मुख्तार को अवधेश को लेकर एक बार हिदायत भी दी थी, लेकिन अवधेश के मर्डर ने बृजेश और मुख्तार के बीच खाई खींच दी। एक लाश क्या गिरी पूर्वांचल को रक्तांचल में बदलने की जमीन तैयार हो चुकी थी। दोनों के बीच दुश्मनी बढ़ती जा रही थी, लेकिन ताकत मुख्तार की बढ़ती जा रही थी और साल 1996 में वह पहली बार विधायक बन गया।

मुख्तार अंसारी बनाम बृजेश सिंह

मुख्तार अंसारी ने अपनी राजनीतिक पहुंच का इस्तेमाल किया और बृजेश सिंह के पीछे पुलिस पड़ गई। कोई रास्ता न देख बृजेश सिंह ने मुख्तार को ही निपटाने का प्लान बना डाला और ऊसर चट्टीकांड उसी का नतीजा था।

बृजेश और मुख्तार की दुश्मनी तब और बढ़ गई जब मुंबई के सिलसिलेवार बम धमाकों ने बृजेश सिंह और दाऊद इब्राहिम के रास्ते अलग कर दिए। वहीं इस बीच उत्तर प्रदेश में विरोधी मुख्तार अंसारी का कद भी लगातार बढ़ता जा रहा था। मुख्तार ने राजनीति का रास्ता अपनाया और अपने कद को बड़ा कर लिया वहीं बृजेश सिंह पर कानूनी शिकंजा कसने लगा।

बृजेश सिंह पर पुलिस ने रखा 5 लाख का इनाम

साल 2001 में हुई इस घटना के बाद बृजेश सिंह यूपी से फरार हो गया। बृजेश सिंह पर यूपी पुलिस ने 5 लाख इनाम भी रखा था साल 2008 में वह उड़ीसा के भुवनेश्वर से पकड़ा गया। जहां वह नाम और भेष बदलकर रहता था। अब बृजेश सिंह की गिरफ्तारी के बाद उनके परिवार ने भी राजनीतिक वजूद को बढ़ाना शुरू किया। उनके बड़े भाई उदयनाथ सिंह दो बार एमएलसी रहे, पत्नी अन्नपूर्णा सिंह को एमएलसी बनाया। खुद बृजेश सिंह भी एक बार बीजेपी से एमएलसी बने और अभी हाल ही में उनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह फिर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर एमएलसी बनी हैं।

लेकिन अब वक्त बदल गया है। पूर्वांचल में जिस मुख्तार अंसारी की वजह से बृजेश को यूपी छोड़ना था। अब वह खुद सलाखों के पीछे है। सोमवार को उसे अवधेश राय हत्याकांड में एमपी-एमएलए कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। इस तरह से देखा जाए तो अब मुख्तार को ताउम्र जेल में ही रहना होगा।

Ashish Pandey

Ashish Pandey

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