PF घोटालाः जानिए अब तक क्या हुआ, क्या है पूरा मामला, ऐसे फंसे करोड़ों रुपये

उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन (यूपीपीसीएल) में 2600 करोड़ के पीएफ घोटाले पर राजनीति तेज हो गई है। इसके साथ ही मामले की जांच तेज हो गई है। इस मामले में पूर्व एमडी एपी मिश्रा के साथ दो अन्य अधिकारी गिरफ्तार हो चुके हैं और तीन-तीन दिन की पुलिस रिमांड पर हैं।

Dharmendra kumar
Published on: 7 Nov 2019 2:39 PM GMT
PF घोटालाः जानिए अब तक क्या हुआ, क्या है पूरा मामला, ऐसे फंसे करोड़ों रुपये
X

लखनऊ: उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन (यूपीपीसीएल) में 2600 करोड़ के पीएफ घोटाले पर राजनीति तेज हो गई है। इसके साथ ही मामले की जांच तेज हो गई है। इस मामले में पूर्व एमडी एपी मिश्रा के साथ दो अन्य अधिकारी गिरफ्तार हो चुके हैं और तीन-तीन दिन की पुलिस रिमांड पर हैं।

वहीं अब योगी सरकार ने आईपीएस आनंद कुलकर्णी को एसएसपी, ईओडब्ल्यू (SSP, EOW) नियुक्त कर दिया है। कुलकर्णी की अगुवाई में अब इस घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू करेगी।

बात दें हाल ही में आनंद कुलकर्णी को वाराणसी के एसएसपी पद से स्थानांतरित किया गया था। आनंद कुलकर्णी को तेज तर्रार आईपीएस माना जाता है।

यह भी पढ़ें…आखिर क्यों योगी सरकार ने 7 पीपीएस अफसरों को किया बर्खास्त? यहां जानें

पीएफ घोटाले में गिरफ्तार पूर्व एमडी एपी मिश्रा को कोर्ट ने तीन दिन की पुलिस रिमांड पर भेज दिया है। पुलिस को 7 नवंबर की सुबह 10 बजे से 10 नवंबर सुबह 10 बजे तक की रिमांड मिली है।

गौरतलब है कि ईओडब्ल्यू ने एपी मिश्रा की 7 दिन की कस्टडी रिमांड की अर्ज़ी दी थी, लेकिन कोर्ट ने तीन दिन की रिमांड ही मंजूर की। एपी मिश्रा को मंगलवार को कई घंटे की पूछताछ के बाद ईओडब्ल्यू ने गिरफ्तार किया था।

इस मामले में गिरफ्तार सुधांशु द्विवेदी और पीके गुप्ता को कोर्ट ने 3 दिन की पुलिस कस्टडी रिमांड पर भेज दिया है। ईओडब्ल्यू को 9 नवंबर शाम 4 बजे तक की रिमांड मिली है। ईओडब्ल्यू ने वैसे इन दोनों की भी 7 दिन की पुलिस कस्टडी की मांगी थी, तीन दिन की रिमांड मिली।

यह भी पढ़ें…गेस्ट हाउस कांड: मायावती ने मुलायम के खिलाफ वापस लिया केस, बताई ये वजह

यूपी के बिजली विभाग के कर्मचारियों के पीएफ का पैसा निजी कंपनी DHFL में लगाने वाले यूपीपीसीएल के पूर्व एमडी एपी मिश्रा को मंगलवार को गिरफ्तार किया था।

यह पूरा घोटाला लगभग 2 हजार 631 करोड़ रुपए का है। DHFL कंपनी डूब चुकी है और बिजली विभाग के कर्मचारियों के पैसे भी डूब गए हैं।

उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों ने 18 नवंबर से दो दिवसीय कार्य बहिष्कार करने की घोषणा की है।

यूपी के डीजीपी ओपी सिंह ने कहा था कि आर्थिक अपराध शाखा (EOW) घोटाले की छानबीन कर रही है और इसमें शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

यह भी पढ़ें…गुजरात सरकार ने खरीदा 191 करोड़ रुपये का खास विमान, चलेंगे ये लोग

यह है पूरा मामला

साल 2014 में फैसला हुआ कि उन कंपनियों में उत्तर प्रदेश स्टेट पावर सेक्टर एंप्लॉइज ट्रस्ट और उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन अंशदायी भविष्य निधि ट्रस्ट के पैसे का निवेश किया जाए, जहां से ज्यादा ब्याज मिले। इसके बाद दिसंबर, 2016 से हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों में निवेश शुरू कर दिया गया है।

मार्च, 2017 में पावर सेक्टर एंप्लॉइज ट्रस्ट ने करीब 4,121 करोड़ रुपये का निवेश हाउसिंग फाइनेंस कंपनी DHFL में किया। यह निवेश दो एफडी के रूप में किया गया। एक एफडी एक साल के लिए और दूसरी एफडी तीन साल के लिए की गई। एक साल की एफडी में करीब 1,854 करोड़ और तीन साल की एफडी में करीब 2,268 करोड़ रुपये का निवेश हुआ।

यह भी पढ़ें…पूरे होंगे सपने! प्रधानमंत्री मोदी का बड़ा बयान, कहा- कैबिनेट ने लिया ये फैसला

एक साल की FD दिसंबर, 2018 में मेच्योर हो गई, जिसका पैसा ट्रस्ट को वापस मिल गया। वहीं, तीन साल की एफडी मार्च, 2020 में पूरी होगी। अब यही पैसा कंपनी में फंस गया है। यहा पैसा इसलिए फंसा है, क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने कई संदिग्ध कंपनियों और सौदों से जुड़े होने की सूचना के बाद DHFL के भुगतान पर बैन लगा दिया है। अब यही डर है कि कहीं कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई फंस न जाए।

ईओडब्ल्यू ने शुरुआती जांच में पाया है कि पीएफ के निवेश के लिए कोई टेंडर जारी नहीं हुआ था। सिर्फ कोटेशन के जरिए DHFL में 2,268 करोड़ रुपये निवेश कर दिए गए। बताया जाता है कि कर्मचारियों के 2268 करोड़ रुपये न फंसते। DHFL में पहला निवेश 17 मार्च, 2017 को हुआ। इसके बाद 24 मार्च, 2017 को जब बोर्ड ऑफ ट्रस्ट की बैठक हुई तब कंपनी में निवेश हुआ।

यह भी पढ़ें…सिद्धू को पाकिस्तान जाने की मिली इजाजत, केंद्र को तीन बार लिख चुके थे चिट्ठी

बैठक में 17 मार्च को हुए निवेश पर सवाल उठाने के बजाय बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठक में यह भी प्रस्ताव पास हुआ कि सचिव, ट्रस्ट केस-टू-केस बेसिस मामले में निदेशक वित्त से अनुमोदन लेंगे। अगर 24 मार्च, 2017 को ही बोर्ड बैठक में इस प्रस्ताव पर सवाल खड़ा कर दिया जाता तो शायद बिजली कर्मचारियों का 2268 करोड़ रुपये नहीं फंसता।

Dharmendra kumar

Dharmendra kumar

Next Story