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बनारस में टूटी उम्मीदें: बुनकरों की हालत बहुत ही खराब, यहां फेल हुई सरकार
बनारस की जिन गलियों में खटर-पटर की आवाज आती थी, वहां सन्नाटा पसरा है। रंग-बिरंगी साड़ी बनाने वाले बुनकरों की जिंदगी बदरंग हो चुकी है। जिन करघों पर सालों से जिंदगी का ताना-बाना बुना जाता था, अब उसे ही कौड़ियों के भाव बेचा जा रहा है।
वाराणसी। बनारस की जिन गलियों में खटर-पटर की आवाज आती थी, वहां सन्नाटा पसरा है। रंग-बिरंगी साड़ी बनाने वाले बुनकरों की जिंदगी बदरंग हो चुकी है। जिन करघों पर सालों से जिंदगी का ताना-बाना बुना जाता था, अब उसे ही कौड़ियों के भाव बेचा जा रहा है। लॉकडाउन में बनारस के बुनकरों के सामने अब इसके अलावा कोई और चारा नहीं बचा है। बेबस बुनकर अपने पावरलूम और हथकरघा को बेच रहे हैं।
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औने-पौने दाम पर बेच रहे हैं लूम
लल्लापुरा के रहने वाले सिराजुद्दीन के पास तीन पावरलूम हैं। लेकिन अब वो सभी लूम बेच रहे हैं। सिराजुद्दीन बताते हैं कि एक लाख 45 हजार रुपए में उन्होंने पावरलूम लगवाया था लेकिन अब उसे तीस हजार में कबाड़ीवाले को बेच दिया।
न्यूजट्रैक से बात करते हुए उनकी आंखें भर आईं। कहते हैं सालों से पुश्तैनी धंधे को संभालकर रखा था। लेकिन अब और नहीं। घर में फंकाकसी की नौबत है। बच्चों की फीस नहीं भर पा रहा हूं। जैसे-तैसे खर्च चल रहा है। सिर्फ सिराजुदीन ही नहीं उनकी तरह कई बुनकर अपने करघे बेच रहे हैं लेकिन नौबत यहां तक आ गई है कि खरीददार नहीं मिल रहे हैं।
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बुनकर(फोटो-सोशल मीडिया)
बुनकरों को नहीं मिल रहे हैं ऑर्डर
बुनकरों के मुताबिक कोरोना की वजह से बाजार पूरी तरह ध्वस्त है। अगले कुछ महीनों तक ऐसा ही रहने की संभावना है। बाजार पहले ही साड़ियों से पटा पड़ा है। लिहाजा नई साड़ी बनाने के लिए उन्हें किसी तरह का ऑर्डर नहीं मिल रहा है। ऐसे हालात में बनारस में लाखों बुनकर बेरोजगार हो चुके हैं।
फोटो-सोशल मीडिया
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घर का खर्च चलाने के लिए कुछ सब्जी बेच रहे हैं तो किसी ने चाय की दुकान खोल ली है। जो बचे हैं वो अब अपने लूम बेचकर रोजी-रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं। लेकिन उनके सामने समस्या ये है कि लूम के खरीददार नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में वो कबाड़ीवालों को बेचने पर मजबूर हैं। जानकार बता रहे हैं कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो अगले कुछ महीनों नें पांच हजार से अधिक लूम बिक जाएंगे।
बुनकरों ने केंद्र सरकार से मांगा राहत पैकेज
बुनकरों के सामने दोहरी समस्या है। एक तो बाजार मंदा है, दूसरे सरकार ने भी बुनकरों के लिए आंखें मूंद ली हैं। हालांकि बिजली सब्सिडी को लेकर सरकार जरुर बैकफुट पर आ गई है लेकिन इसका ये मतलब नहीं की बुनकरों की सभी समस्याएं ठीक हो गई हैं। बुनकर केंद्र सरकार से लगातार राहत पैकेज की मांग कर रहे हैं।
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रिपोर्ट- आशुतोष सिंह
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