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क्या है मां मंगला भवानी के मंदिर का राज, जिसके दर्शन कर चुका है प्रथम चीनी यात्री ह्वेनसांग

बलिया जिलें को कौन नहीं जानता बलिया एक ऐसा जिला हैं। ये जिला देश को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारियों के लिए जाना  हैं।

Roshni Khan
Published on: 17 Feb 2020 7:45 AM GMT
क्या है मां मंगला भवानी के मंदिर का राज, जिसके दर्शन कर चुका है प्रथम चीनी यात्री ह्वेनसांग
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क्या है मां मंगला भवानी के मंदिर का राज, जिसके दर्शन कर चुका है प्रथम चीनी यात्री ह्वेनसांग

रजनीश कुमार मिश्र

बाराचवर (गाजीपुर): बलिया जिलें को कौन नहीं जानता बलिया एक ऐसा जिला हैं। ये जिला देश को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारियों के लिए जाना हैं। लेकिन इसी जिलें मे कुछ ऐसे धार्मिक व पौराणिक स्थल भी हैं, जिसे लोग बहुत कम हीं जानते है। इस धार्मिक स्थल को पुर्वान्चल के साथ साथ बिहार के कुछ जिलें के लोग हीं जानते हैं। हम उस धार्मिक व पौराणिक स्थल की बात कर रहें है, जहां कभी साक्षात भगवान नरायण माता लक्ष्मी के साथ निवास करते थे। बलिया जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर व बिहार और गाजीपुर सीमा के नजदीक गंगा किनारे नेशनल हाईवे 19 के नजदीक बलिया के सोहाव विकासखण्ड के नसीरपुर में स्थित मां मंगला भवानी बिराजमान हैं।

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ये एक ऐसी जगह है। जो पुराणो में भी वर्णित है। इस जगह पहुंच कर भक्त अपने को ध्नय समझते हैं। कहां जाता है कि प्रथम चीनी यात्री ह्वेनसांग ने पाटलिपुत्र जाते समय अपने डायरी में इस जगहं का वर्णन किया है। इस जगह का वर्णन कुछ समय पहले के बलिया के पुर्व जिलाधिकारी हरिसेव राम द्वारा लिखित बलिया एक दृष्टि में भी किया गया हैं।

प्रथम चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा नामक डायरी में भी किया हैं। मां मंगला भवानी का उल्लेख

यहां के पुजारी श्यामा विहारी पान्डेय बताते हैं कि छठी शताब्दी ईसा पूर्व प्रथम चीनी यात्री ह्वेनसांग पाटलिपुत्र जाते समय इस रास्ते जा रहा था। इस जगह पर उस समय जंगल था। जब चीनी यात्री यहां पहुंचा तो देखा की यहां एक झाड़ में मुर्ति पड़ी हुई है। तब ह्वेनसांग ने उस जगह सफाई कर पुजा किया और अपनी यात्रा आरम्भ की।

मुगल बादशाह औरंगजेब ने किया खंडित

इस गावं के लोग व पुजारी श्यामनारायण पान्डेय बताते हैं। जब मुगल बादशाह औरंगजेब का शासन इस देश में हुआं। तब औरंगजेब सभी मंदिरों व मूर्तियों को तोड़ते हुए, इस स्थान तक आ पहुचां। और मां कि मुर्ति को खंडित कर गंगा में फेक दिया। कुछ बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि जब मुर्ति गंगा में बहने लगीं तो पत्थर की मुर्ति औरत रुप में आ गई। उसी समय किसी चरवाहे को देख उस औरत ने अपने पास बुला कहां कि मुझे पिपल के पेड़ के निचे ले चलो जैसे ही औरत पेड़ के निचे पहुचीं पुनः औरत मुर्ति में तब्दील हो गई।

श्री मद्देवीभागवत पुराण में भी हैं वर्णित

इस तीर्थ स्थल का जिक्र मद्देवीभागवत पुराण में भी किया गया हैं। इस महापुराण में टीका के रुप से लिए गये अंश को पंडित तारकेश्वर उपाध्याय ने सन् 1956 में छपी कामेश्वर धाम नामक पुस्तिका में लिखा है। जब भगवान शिव कारो में जिसे लोग कामेश्वर धाम के नाम से भी जानतें हैं। निवास करने लगें। तब भगवान नारायण भी जगह के महिमा नैसर्गिक छटा से मुग्ध होकर माता लक्ष्मी के साथ यहीं निवास करने लगें।

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इस पबित्र जगहं हुआ था देव सेनापति कामदेव से विग्रह विवाद

श्री मद्देवीभागवत पुराण के अनुसार इस मां मंगला भवानी के पबित्र स्थल पर लक्ष्मी के पुत्र देव सेनापति कामदेव से भगवान शिव का विग्रह विवाद हुआं था।

इस जगह कि मान्यता

यहां के ग्रामीण व पुजारी श्याम बिहारी पान्डेय बताते हैं कि जो चरवाहा मां मंगला भवानी को पिपल के पेड़ के निचे लाकर बिठाया था। उसी को स्वप्न में मां भवानी ने कहां कि जो हमें सच्चे मन से पुजेगा उसकी हर मनोकामना पुर्ण होगी। तभी से इनका नाम मंगला भवानी पड़ा।

नवरात्रि मे होती है हजारों की भीड़

वेसे तो इस रमणीक जगह हर रोज भीड़ लगीं रहतीं है। लेकिन नवरात्रि के महिने में हर रोज हजारो की तदात में भक्तों की भिड़ लगीं रहती है। भक्तो की भीड़ सोमवार व शुक्रवार को और बढ़ जाती है। इस भीड़ को काबु करने के लिए पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ती हैं।

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जिला प्रशासन व नेता नहीं करते मदद

यहां के ग्रामीण बताते हैं कि बहुत सारे मंत्री हुए लेकिन इस पौराणिक व धार्मिक स्थल के सुंदरीकरण के लिए कोई भी नेता व जिला प्रशासन के लोग सहयोग नहीं करते। लोग बताते हैं कि इस मंदिर का जीतना निर्माण हुआं है। सभी दानपेटिका में मिले व यहां के ग्रामीणों के द्वारा व आस-पास के लोगों के द्वारा किया गया हैं।

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