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सोनभद्र: टेशू के फूल से महिलाओं को मिला रोजगार, कर रहीं ऐसा फायदेमंद काम
पूरे जिले के विभिन्न क्षेत्रों में इस काम मे लगी महिलाएं बताती है इसमे लागत कम आती है और आमदनी अच्छी हो जाती है क्योंकि यह जंगलों में आसानी से निःशुल्क उपलब्ध हो जाता है ।
सोनभद्र : वसन्त ऋतु में खिलने वाले पलाश ( टेशू ) के फूल भले कवियों और लेखकों के लिए साहित्यिक उपयोगी हो लेकिन सोनभद्र जैसे पहाड़ी अंचलो में रहने वाले आदिवासी परिवार के लिए टेशू के फूल सशक्त आजीविका के साधन बनने लगे हैं । इन जंगलों में बहुतायत पाए जाने वाले पलास के फूलों को इकट्ठा कर महिलाये रंग और गुलाल बनाने का काम कर रही हैं।
टेशू के फूल
पूरे जिले के विभिन्न क्षेत्रों में इस काम मे लगी महिलाएं बताती है इसमे लागत कम आती है और आमदनी अच्छी हो जाती है क्योंकि यह जंगलों में आसानी से निःशुल्क उपलब्ध हो जाता है । बभनी क्षेत्र की ललिता देवी बताती है कि उनके साथ करीब दो सौ महिलाएं इस काम मे लगी है । प्रोसेस और मार्केटिंग के सवाल पर उन्होंने बताया कि हम सभी राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी है और इसके प्रोसेसिंग के साथ मार्केटिंग का काम एन आर एल एम विभाग ही देखता है ।
टेसू के फूल से महिलाएं रोजगार प्राप्त कर रही है
इस सम्बंध में एनआरएलएम के जिला समन्वयक एम जी रवि बताते है कि पूरे जिले में समूहों के माध्यम से सैकड़ो महिलाएं जुड़ी है और रोजगार प्राप्त कर रही है । उनका यह भी कहना है कि यू तो रंग गुलाल बारहों मास किसी न किसी रूप बिकता है किंतु होली के अवसर पर इसकी बिक्री ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि यह पूरी तरह से हर्बल है ।
अभी तक 20 कुंतल के आसपास उत्पादन हो चुका
आमदनी के सवाल पर रवि कहते है कि अभी तक 20 कुंतल के आसपास उत्पादन हो चुका और 15 से 16 कुंतल की बिक्री भी हो चुकी । ऐसे में अभी तक एक लाख से ज्यादा की आमदनी इन समूहों को हो चुकी । मार्केटिंग के सवाल पर श्री रवि ने बताया कि जिलाधिकारी कार्यालय और विकास भवन से लेकर बाजारों में भी हमारे आउटलेट खुले हुए है साथ ही "सोनबाजार" एप के माध्यम से ऑनलाइन भी खरीद की जा सकती है । उन्होंने यह भी बताया कि कई क्षेत्रों की महिलाये पलास के अलावा गेंदा, गुलाब, पालक, चुकंदर आदि का भी उपयोग कर रंग गुलाल बना रही है जिसके लिए प्रोसेसिंग से जुड़े उपकरण विभाग से मुहैया कराया जा रहा है ।
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हर्बल रंग
पलाश के फूलों से बनने वाले इन हर्बल रंग गुलालों को लेकर चिकित्सक भी काफी उत्साहित है उनका मानना है कि आज के दौर में यह बहुत ही सराहनीय पहल है । त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रूपेश बाजपेयी की माने तो निश्चित रूप से यह एक सराहनीय पहल है क्योंकि केमिकल युक्त रंग और गुलाल त्वचा को ही नही आंखों को भी भारी नुकसान पहुचाते है । इसलिए इन केमिकलयुक्त रंगों से बचना चाहिए ।
रिपोर्ट : सुनील तिवारी
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