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Uttar Pradesh: फाइलों में यूपी कायम करता रिकॉर्ड, हरियाली के नाम बंजर पड़ी जमीन
Greenery in UP: विश्व पर्यावरण दिवस पर देखिए यूपी में हरियाली के लिए बजट में विकास तो हो रहा है लेकिन बंजर जमीन कुछ और ही बयां कर रही है। हर साल लाखों पेड़ तो लगे लेकिन सूखकर मिट्टी में मिल गए।
Uttar Pradesh: एक दशक तक सूखा की विभीषिका झेलने के बाद बुंदेलखंड को हरा भरा करने के लिए साल-दर साल पौधरोपण का लक्ष्य बढ़ रहा है। अमूमन प्रदेश के हर जिले में लगभग एक करोड़ से लेकर डेढ़ करोड़ पौधे पांच सालों में लगाए लगाए हैं। मगर पौधरोपण के नाम पर बरती जा रही लापरवाही से पौधरोपण अभियान को झटका लग रहा है। विभाग में पड़ी फाइलों के कागजों में पौधरोपण कर हरियाली का दावा हो रही है। लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि जहां पौधरोपण का दावा हो रहा वहां, जमीन बंजर पड़ी है। विभाग के द्वारा रोपित कराए गए स्थानों पर सूखी धरती विभाग की लापरवाही को उजागर रही है।
हमने बुंदेलखंड समेत कुछ जिलों के आंकड़े देखे तो सभी जिलों का एक जैसा हाल देखने को मिला है। पिछले पांच साल यानि सन 2019 में प्रदेश के लगभग हर जिले एक से लेकर डेढ़ करोड़ तक पौधरोपण हुए। पिछले पांच सालों में रोपित पौधों के अगर आधे पौधे भी सुरक्षित होते हो विभाग के पास पौध रोपित करने के लिए जगह तक न बचती। पिछले साल जिन स्थानों पर विभाग ने पौधरोपण कराया उसमें धूल उड़ रही है। जिससे विभाग के अभियान पर प्रश्नचिन्ह लग रहे है। जिले में वन विभाग क 29 नर्सरी है जिसमें पौधरोपण के लिए पौधों को तैयार किया जाता है। हर साल बड़ी मात्रा में छायादार पौधों की खेप तैयार होने के बाद भी धरती का श्रंगार करने में लापरवाही बरती जा रही है। लेकिन जिला प्रशासन द्वारा बजट पास होकर पौधे तो लग गए लेकिन उनकी देख-रेख नहीं हो सकी।
महोबा का हाल
2019 में में 14.66 लाख पौधे रोपित करने का लक्ष्य रखा गया था जो 2020 में बढ़कर 44लाख कर दिया गया। 2021 में जिले में 54 लाख पौधे रोपित करने का लक्ष्य मिला और 2022 में विभाग 60 लाख पौधे रोपित करा चुका है। अब विभाग को 63 लाख 34 हजार 830 पौधों को रोपित करने का लक्ष्य मिला है। जिले का क्षेत्रफल 3144 किलोमीटर है जिसमें से तीस फीसदी वन क्षेत्रफल है। साल दर साल पौधरोपण का लक्ष्य बढ़ने के बाद भी जिले में वन क्षेत्रफल में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हो पा रही है।
यूपी के इस गांव में किसानों की मेहनत ला रही रंग
महोबा विकास खंड के एक छोटे से गांव काकुन में किसान की मेहनत रंग ला रही है। पानी के अभाव में जिस स्थान पर धूल उड़ती थी मगर अब उस स्थान पर हरियाली छा गई है। सिंचाई संसाधनों के अभाव में जहां मुश्किल से एक फसल तैयार हो पाती। काकुन गांव में जल स्तर नीचे होने के कारण बोरिंग भी सफल नहीं हो पाती ऐसे में किसान डॉ धर्मेन्द्र कुमार मिश्रा ने बरसात के पानी को सुरक्षित रखने के लिए खेत में पानी बैंक बनाकर पानी को संरक्षित किया और इस पानी की मदद से बाग तैयार किया है। किसान के बाग में आधुनिक प्रजाति के फलदार पौधे रोपित कराए गए है। जिससे आंवला, नीबू, आम सहित अन्य फलों का उत्पादन हो रहा है। किसान के द्वारा आंवला से मुरब्बा और च्यवनप्राश तैयार कराया जा रहा है जिससे ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार का मौका मिल रहा है। गांव में किसान के प्रयासों की सराहना हो रही है।
कानपुर की स्थिति गंभीर
कानपुर में करीब डेढ़ लाख पौध रोपे गए हैं। लेकिन आधे पौधे भी सुरक्षित नहीं बचाए जा सके। वर्ष 2018-2019 में 1375428, 2029-20 में 2848486, 2020-21 में 3610217, 2021-22 में 4423680 और 2022-23 में 3994643 लाख पौधे लगाए गए। लेकिन इन पौधों के संरक्षण की न तो विकास भवन द्वारा कोई व्यवस्था हुई और न जिला प्रशासन। मालूम हो सरकारी विभागों द्वारा ही नहीं बल्कि संस्थाएं भी लगातार पौधरोपण कर रही हैं। लेकिन पौधों हरा-भरा रखने के लिए कोई कवायद नहीं हो रही। इस पर हमने जिम्मेदारों से बात करने की कोशिश की तो कोई अधिकारी कुछ भी जवाब देने के लिए सक्षम नहीं है।
कानपुर देहात का क्या है हाल
हरा-भरा करने के लिए पिछले पांच साल में करीब पौने दो करोड़ से अधिक पौधे रोपे गए,लेकिन पौधों की सुरक्षा की जिम्मेदारी का निर्वहन न होने के कारण यहां हरियाली व वनक्षेत्र में कोई इजाफा नहीं हो सका। हर साल पौधरोपण होने पर भी 33 फीसदी के सापेक्ष सिर्फ 3.26 फीसदी ही वनक्षेत्र बना है।वहीं विभाग के पास यह आंकड़ा तक नहीं है कि रोपित होने वाले पौधे कितने बचे हैं,और कितने नष्ट हो गए हैं।
हर साल जुलाई माह में चलने वाले पौधरोपण अभियान में लाखों की संख्या में पौधे रोपित किए जाते हैं। इसके लिए वन विभाग के साथ ही अन्य विभागों को लक्ष्य भी आबंटित किया जाता है,लेकिन अभियान खत्म होते ही रोपित पौधों का सत्यापन उनके संरक्षण की अनदेखी की जाती है। इससे रोपे जाने वाले पौधों में आधे भी पेड़ नहीं बन पाते।
हालात यह है कि पिछले कई सालों से कुछ स्थानों पर बराबर हो रहे पौधरोपण के बाद भी धरती में हरियाली नहीं हो पा रही है। पिछले पांच साल में करीब पौने दो करोड़ से अधिक पौधे रोपित होने के बाद भी 33 फीसदी के सापेक्ष महज 3.26 फीसदी ही वनक्षेत्र हो पाया है। इसमें 0.97 फीसदी वन क्षेत्र सड़कों व हाईवे किनारे रोपे गए पौधों की वजह से है। अभियान खत्म होते ही रोपित पौधों का सत्यापन उनके संरक्षण की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है।