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जिलों में कप्तानों की तैनाती पर मचा बवाल, आईपीएस कैडर में भारी असंतोष

योगी सरकार इन दिनों पुलिस कप्तानों को ताश के पत्तों की तरह फेंटने में लगी है। दो पुलिस कप्तानों का निलंबन हुआ तो IPS कैडर में भारी असंतोष दिखा।

Shivani
Published on: 14 Sept 2020 11:35 PM IST
जिलों में कप्तानों की तैनाती पर मचा बवाल, आईपीएस कैडर में भारी असंतोष
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अखिलेश तिवारी

लखनऊ. प्रदेश की योगी सरकार इन दिनों पुलिस कप्तानों को ताश के पत्तों की तरह फेंटने में लगी है। दो पुलिस कप्तानों पर निलंबन की कार्रवाई भी हुई है ऐसे में आईपीएस कैडर में भारी असंतोष पनप रहा है। जिन्होंने जूनियर और सीनियर अधिकारियों का भेदभाव खत्म कर दिया गया है । छोटे जिलों में वरिष्ठतम अधिकारियों और बड़े जिलों में कम अनुभवी को तैनाती दिए जाने से कैडर के अधिकारी खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं।

यूपी में कानून व्यवस्था को दूरुस्त करने के लिए IPS तबादले

कानून एवं व्यवस्था के मामले में लगातार विपक्ष के निशाने पर घिरती दिखाई दे रही योगी सरकार अपने को संभालने की जितनी कोशिश कर रही है उतनी ही मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। योगी सरकार ने पिछले 3 साल के दौरान पुलिस के दम पर ही गवर्नेंस का संदेश देने की पूरी कोशिश की है लेकिन पिछले डीजीपी के दौरान जिस तरह से सरकार की कानून व्यवस्था के मसले पर छीछालेदर हो रही थी वैसी ही स्थितियां इन दिनों भी बनी हुई हैं। हमलावर विपक्ष के नेता हर रोज कानून व्यवस्था के मामले में प्रदर्शन करने निकल जाते हैं और उनको संभालने में ही सरकार को सारी ताकत झोंकनी पड़ रही है।

yogi govt changes district SP IPS cadre Dissatisfied over transferred

प्रयागराज और महोबा के पुलिस कप्तानों पर आरोप लगने पर कार्रवाई

कठोर प्रशासक की छवि बनाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आईपीएस अधिकारियों पर कार्रवाई भी की है। प्रयागराज और महोबा के पुलिस अधीक्षक को निलंबित किया है। कई अन्य पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है लेकिन इस सबके बीच सबसे बड़ा असंतोष भी आईपीएस कैडर में ही पनप रहा है। आईपीएस अधिकारियों की सबसे बड़ी शिकायत जिलों में तैनाती को लेकर है।

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कप्तानों की जिलों में तैनाती पर मचा बवाल

असंतुष्ट अधिकारियों का कहना है कि सरकार जिलों में तैनाती के समय इस बात का बिल्कुल ख्याल नहीं कर रही है कि उनके कैडर में वरिष्ठता की भूमिका सबसे ज्यादा है। पुलिस बल में अधिकारियों के कंधे और सीने पर लगे बैज ही उन्हें कनिष्ठ अधिकारियों से सेल्यूट पानी का अधिकार दिलाते हैं।

इसके बावजूद जिलों में पुलिस अधीक्षक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पद पर तैनाती के दौरान इसका ख्याल नहीं रखा जा रहा है। पुलिस अधिकारियों के स्थानांतरण में सभी मानक ध्वस्त किए जा चुके हैं। यही इतना नहीं तबादलों में सरकार के कामकाज की शैली में विरोधाभास और अदूरदर्शिता भी दिखाई दे रही है। इस तरह की पोस्टिंग से मनमानी और खास तरह के जुगाड़ का भी आरोप लगने लगा है।

DIG स्तर के अधिकारियों को SP का मिल चुका चार्ज

हाल यह है कि योगी सरकार ने 2013 बैच के रोहित सिंह को बरेली जैसे महानगर व मंडल मुख्यालय पर कप्तान बना कर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का रुतबा दिया गया है जबकि कई अन्य जिलों में डीआईजी स्तर के अधिकारियों को पुलिस अधीक्षक बनाकर बिठा दिया गया है। राजधानी लखनऊ के बगल में स्थित जिला उन्नाव में 2007 बैच के आईएएस को तैनाती दी गई है जबकि 2008 बैच के अधिकारी को कुशीनगर जैसे छोटे जिले में पुलिस कप्तान बना कर भेजा गया है। एक डीआईजी स्तर के अधिकारी को 16 थानों वाले जिले में तैनात कर दिया गया । प्रतिनियुक्ति पर आये सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी को प्रयागराज जैसा महत्वपूर्ण जिला दिया गया है।

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मऊ जिले में कप्तानी देने में सरकार का भारी ऊहापोह दिखाई दिया। पहले जिसे तैनाती दी गई थी उसे 1 दिन बाद यह हटाकर प्रतीक्षारत कर दिया गया है। पिछली सरकारों में जब इस तरह की पोस्टिंग होती थी तो भारतीय जनता पार्टी की ओर से आरोप लगाए जाते थे कि ट्रांसफर -पोस्टिंग को उद्योग बना दिया गया है।

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ऐसे में योगी सरकार ने जब इस तरह से तबादले हो रहे हैं तो कैडर के भीतर असंतोष सुलगने लगा है। सवाल यह पैदा होता है कि आखिर सरकार ऐसे अटपटे तबादले की सूची को अंतिम रूप क्यों दे रही है। क्या सरकार को अधिकारियों की योग्यता की जानकारी 3 साल में नहीं हो सकी है अथवा किसी अन्य दबाव में फैसले लिए जा रहे हैं।

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ऐसा पहली बार हो रहा है जब वरिष्ठ अधिकारियों को छोटे जिलों में तैनाती दी जा रही है और कनिष्ठ एवं अधिकारियों को प्रदेश के महत्वपूर्ण जिलों की कमान सौंपी गई है। खास बात यह भी है कि जिलों की कप्तानी में पीपीएस कैडर की खुलकर उपेक्षा हो रही है इसके बावजूद आईपीएस कैडर सरकार के तौर तरीकों से संतुष्ट नजर नहीं आ रहा है।

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