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धरती का विनाश: होने वाली है बड़ी आकाशीय घटना, इन क्षेत्रों को खतरा
अंटार्कटिका में उल्कापिंडों की गिनती बाकी जगहों से आसान होती है। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि अगर उल्कापिंड बर्फ के अंदर चला गया तो उसे खोजना मुश्किल हो जाता है। बर्फ भी टूटकर सागर में बह जाती है।
नई दिल्ली: पृथ्वी और अंतरिक्ष बहुत सारे रहस्यों से भरी पड़ी है। देश और विदेश के वैज्ञानिक इस गुत्थी को सुलझाने में जुटे रहते हैं। धरती पर हर साल 17 हजार से ज्यादा उल्कापिंड (Meterorites) टकराते हैं। पृथ्वी से टकराने वाले ये उल्कापिंड ज्यादातर भूमध्य रेखा के निकटवर्ती प्रदेशों में गिरते हैं। इस बात का खुलासा एक वैज्ञानिक ने किया जब वो अंटार्कटिका में एक रिसर्च के लिए गए थे। वो स्नोमोबाइल से अंटार्कटिका में घूम रहे थे तभी उन्हें उल्कापिंड का एक टुकड़ा पड़ा मिला।
1988 से मार्च 2020 तक धरती पर कितने उल्कापिंड गिरे?
बता दें कि वैज्ञानिक जियोफ्री ईवाट इंग्लैंड के यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर में एप्लाइड मैथमेटेशियन हैं। अंटार्कटिका की यात्रा के बाद वो और उनके साथी इस बात की खोज में लग गए कि हर साल धरती पर कितने उल्कापिंड गिरते हैं और सबसे ज्यादा उल्कापिंड कहां गिरते हैं। जियोफ्री ने ये भी बताया कि अप्रैल 1988 से मार्च 2020 तक धरती पर कितने उल्कापिंड गिरे और उनकी जगहों का रिकॉर्ड है। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और नासा द्वारा बनाए गए इस नक्शे में बताया गया है कि धरती पर किस जगह सबसे ज्यादा उल्कापिंडों की बारिश हुई है।
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धरती पर हर साल 17 हजार से ज्यादा उल्कापिंड गिरते हैं
इन लोगों ने धरती के कुछ इलाकों को चुना और फिर दो साल तक स्टडी की। स्टडी का ज्यादा उपयुक्त समय गर्मियां थीं। इसलिए गर्मियों के मौसम में धरती के अलग-अलग हिस्सों में ये उल्कापिंडों के गिरने का अध्ययन करते रहे। इस साल 29 अप्रैल को जियोलॉजी मैगजीन में ईवाट ने रिपोर्ट पब्लिश कराई। इसमें बताया कि धरती पर हर साल 17 हजार से ज्यादा उल्कापिंड गिरते हैं। सबसे ज्यादा उल्कापिंड भूमध्य रेखा के निकटवर्ती प्रदेशों पर गिरते हैं।
आग के गोलों को देखना है तो भूमध्य रेखा के पास बितानी होगी रात
जियोफ्री ईवाट कहते हैं कि अगर आपको सच में उल्कापिंडों के आते हुए आग के गोलों को देखना है तो आपको भूमध्य रेखा के आसपास के इलाकों में जाकर रात बितानी होगी। ईवाट कहते हैं कि अंटार्कटिका में उल्कापिंडों की गिनती बाकी जगहों से आसान होती है। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि अगर उल्कापिंड बर्फ के अंदर चला गया तो उसे खोजना मुश्किल हो जाता है। बर्फ भी टूटकर सागर में बह जाती है।
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धरती के चारों तरफ होने वाली उल्कापिंडों की बारिश सबसे ज्यादा भूमध्य रेखा के नजदीक गिरते हैं। यहां इनके गिरने की तीव्रता और संख्या भी ज्यादा होती है। कई तो महासागरों में गिर जाते हैं इसलिए उनकी गणना करना मुश्किल होती है लेकिन दुनिया भर के दूरबीनों से उनकी तस्वीरें आ जाती हैं।
नॉर्दन लाइट्स का खूबसूरत नजारा
जियोफ्री बताते हैं कि नॉर्वे जैसे इलाकों में भी आपको उल्कापिंडों की बारिश के नजारे खुली आंखों से देखने को मिल जाएंगे। साथ ही साथ आपको वहां पर नॉर्दन लाइट्स का खूबसूरत नजारा भी देखने को मिलेगा।
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