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अमेरिका का खतरनाक हथियार: दुश्मनों को नहीं आएगा नजर, इन देशों पर करेगा हमला

हवाई युद्धाभ्यास के दौरान भी एआई तकनीकी से लैस ड्रोन्स ने साबित किया है वे इंसानों से बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। बड़ी बात यह है कि अन्य ड्रोन्स की तरह इनको उड़ान के दौरान कोई भी इंसान ऑपरेट नहीं करेगा।

Newstrack
Published on: 12 Dec 2020 2:04 PM IST
अमेरिका का खतरनाक हथियार: दुश्मनों को नहीं आएगा नजर, इन देशों पर करेगा हमला
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अमेरिका का खतरनाक हथियार: दुश्मनों को नहीं आएगा नजर, इन देशों पर करेगा हमला

नई दिल्ली: अपनी सुरक्षा के किले को और मजबूत करने के लिए अमेरिकी एयरफोर्स ने एशिया और यूरोप में बढ़ते सैन्य टकराव के बीच घातक स्टील्थ ड्रोन को बनाने का काम शुरू कर दिया है। बताया गया है कि यह ऑर्टिफिशिल इंटेलिजेंस (एआई) से लैस ये नई तकनीकी वाले ड्रोन दुश्मन की रडार की पकड़ में आए बिना हमला करने और खुफिया जानकारी जुटाने के काम आएंगे। इनको उड़ान के दौरान कोई भी इंसान ऑपरेट नहीं करेगा।

उड़ान के दौरान कोई भी इंसान ऑपरेट नहीं करेगा

हवाई युद्धाभ्यास के दौरान भी एआई तकनीकी से लैस ड्रोन्स ने साबित किया है वे इंसानों से बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। बड़ी बात यह है कि अन्य ड्रोन्स की तरह इनको उड़ान के दौरान कोई भी इंसान ऑपरेट नहीं करेगा। यूएस एयरफोर्स लाइफ मैनेजमेंट सेंटर (AFLMC) 2021 की गर्मियों में एक और परीक्षण के लिए प्रोटोटाइप बनाने के लिए तीन फर्मों को ठेका सौंपा है।

निर्माण के लिए तीन प्राइवेट फर्मों के साथ साझेदारी

सोमवार को अमेरिकी वायु सेना ने घोषणा की कि उसने मई 2021 तक मिशनाइज्ड प्रोटोटाइप के निर्माण के लिए तीन प्राइवेट फर्मों के साथ साझेदारी की है। इसके तहत अमेरिकी डिफेंस कंपनी बोइंग को 25.7 मिलियन डॉलर, जनरल एटॉमिक्स को 14.3 मिलियन डॉलर और क्रैटोस अनमैन्ड एरियल सिस्टम को 37.8 मिलियन डॉलर की राशि दी गई है।

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युद्धकाल में इंसानी पायलटों की सहायता भी करेंगे

इन तीनों कंपनियों के ड्रोन में ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकी होने के कारण इंसानों के ऑपरेट करने की जरूरत नहीं होगी। ये ड्रोन अमेरिका के स्काईबर्ग वेनगार्ड प्रोग्राम का हिस्सा होंगे। इस प्रोग्राम के तहत ये ड्रोन युद्धकाल में इंसानी पायलटों को हवा में मजबूती प्रदान करेंगे। इनकी सहायता से अमेरिका अपने दुश्मनों पर भारी पड़ेगा। ये हवा में दुश्मन के किसी भी खतरे से निपटने में सक्षम होंगे। इससे अमेरिकी पायलटों के कीमती जान की भी रक्षा होगी।

भविष्य के युद्धों में अमेरिका इसका प्रयोग भी कर सकता है

जिन तीनों फर्म को अमेरिकी वायुसेना ने ड्रोन बनाने का ठेका दिया है, उन्हें इस क्षेत्र में व्यापक अनुभव है। क्रेटोस ने पहले ही XQ-58 Valkyrie ड्रोन को इस प्रोग्राम के शुरूआती चरण के लिए बनाया था। यह स्टील्थ ड्रोन देखने में अमेरिका के एफ-35 और एफ-22 की तरह है। माना जा रहा है कि भविष्य के युद्धों में अमेरिका इसका प्रयोग भी कर सकता है।

स्टील्थ तकनीकी से लैस इस ड्रोन का नाम

बोइंग ने भी ऑस्ट्रेलियाई सेना के लिए इस साल के शुरू में अपने पहले मॉडल को रोल आउट किया था। स्टील्थ तकनीकी से लैस इस ड्रोन का नाम बोइंग एयरपावर ट्रिमिंग सिस्टम या बोइंग लायल विंगमैन प्रोजक्ट रखा गया है। ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस यह ड्रोन खुद के दम पर किसी भी मिशन को अंजाम दे सकता है।

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अफगानिस्तान, सीरिया, ईराक और लीबिया के युद्ध में काम कर चुके हैं रीपर ड्रोन

जनरल एटॉमिक्स ने भी हाल ही में अपने प्रयोगात्मक एवेंजर यूएवी की घोषणा की थी। इस ड्रोन को एमक्यू-9 रीपर ड्रोन की जगह बनाया गया है। बता दें कि एमक्यू-9 रीपर ड्रोन की ताकत को दुनिया ने अफगानिस्तान, सीरिया, ईराक और लीबिया के युद्ध में देखा है। जहां इसने अपने दुश्मनों की कमर तोड़कर रख दी थी। भारत भी इस ड्रोन को खरीदने की तैयारी में है। एक नए सॉफ्टवेयर अपग्रेड के साथ जीई का एवेंजर यूएवी एयर-टू-एयर कॉम्बैट ड्रिल्स में अपनी ताकत दिखा चुका है।

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