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अमेरिकी संसद पर हमला, आने वाले गहरे संकट की आहट, देश हो जाए सावधान

अमेरिका में नागरिक दो विचारधाराओं में बंट गए हैं उससे साफ़ दिखाई पड़ रहा है कि वहां गृह युद्ध जैसे हालात बन रहे हैं। ये हालात बाकी दुनिया पर भी व्यापक असर डालेंगे और ये बड़ी चिंता की बात होगी।

Shivani Awasthi
Published on: 7 Jan 2021 4:54 PM GMT
अमेरिकी संसद पर हमला, आने वाले गहरे संकट की आहट, देश हो जाए सावधान
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महाशक्तिशाली देश अमेरिका में सत्ता के लिए इस तरह से उपद्रव होगा, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। यहां लोकतंत्र को बचाने के नाम पर हो रहे प्रदर्शन में हिंसात्मक गतिविधियां हुई।

अमेरिका में सीनेट पर हजारों लोगों के हल्ला बोल के नाम पर जो कुछ हुआ वो निंदनीय होने के साथ साथ एक चेतवानी भी है। इस तरह की घटना किसी भी देश के हाल के इतिहास में नहीं हुई है। अमेरिका जैसे बड़े और लोकतान्त्रिक देश के लिए तो ऐसी घटना अकल्पनीय और अभूतपूर्व है। भले ही ये अमेरिकी चुनाव में धांधली के आरोपों के खिलाफ गुस्से और आक्रोश में उठाया गया कदम था लेकिन ये घटना अमेरिकी नागरिकों में सिस्टम के प्रति अविश्वास और नफरत को भी दर्शाती है।

डोनाल्ड ट्रम्प पर लोगों की भावनाएं भड़काने का आरोप

अमेरिका में चंद महीने पूर्व एक अश्वेत नागरिक की पुलिस के हाथों मौत के बाद पूरे देश में दंगे हुए, हिंसा हुई और जबरदस्त बवाल हुआ। उसके बाद अब ये घटना दिखाती है कि वहां का सिस्टम किस तरह चरमरा रहा है और लोग कितने असंतुष्ट हैं। इसके पीछे नेताओं और राजनीतिक दलों का भी बहुत बड़ा हाथ है।

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डोनाल्ड ट्रम्प पर लोगों की भावनाएं भड़काने का आरोप लगता है लेकिन आरोप लगाने वाले नेता और उनकी पार्टी हालात ठीक करने और नागरिकों में विश्वास जगाने के नाम पर कुछ नहीं करतीं हैं। जब ब्लैक लाइव मैटर और एंटीफा के उग्र प्रदर्शनकारी घूम घूम कर आगजनी और हिंसा कर रहे थे तब स्थितियां शांत करने की बजाये पोलिटिकल लीडर्स और उनके दलों ने आग में घी डालने का ही काम किया।

US का सिस्टम बेहद सुस्त, वैध रूप से आये लोगों की भरमार

दरअसल, अमेरिका में शासन के कामकाज के तरीकों में दशकों से कोई बदलाव नहीं आया है। वहां अवैध रूप से आये लोगों की भरमार है। कल-कारखाने चीन, मेक्सिको शिफ्ट हो चुके हैं। तुष्टिकरण चरम पर पहुंचा दिया जा चुका है। एक पूंजीवादी देश होते हुए भी धीरे धीरे वामपंथी विचारधारा का समावेश किया जाता रहा है। सिस्टम बेहद सुस्त रफ़्तार से काम करने का आदि हो चुका है। देश का प्रशासनिक ढांचा ऐसा है कि हर राज्य एक अलग देश की तरह बिहेव करता है और राष्ट्रीय नेतृत्व की अनसुनी की जाती है। रंगभेदी स्थितियां ज्यों कि त्यों हैं। ऊपर से मीडिया का ये हाल है कि वो पूरी तरह से और खुलेआम एकपक्षीय बना हुआ है, चैनल हों या अखबार, सब खेमों में बंटे हुए हैं।

america-white house

अमेरिकी नागरिक पर बुरा असर

इन स्थितियों ने अमेरिकी नागरिक पर बहुत असर डाला है। पहले तो चीजें सामने नहीं आतीं थीं या पता नहीं चलतीं थीं लेकिन बीते चार साल में मेनस्ट्रीम मीडिया के रवैये, और फिर कोरोना काल में महामारी के फैलाव ने समाज में सब उलट पुलट दिया है।

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अब जो बिडेन को 20 जनवरी को प्रेसिडेंट की कुर्सी संभालनी है। उनके सामने भी रास्ता काँटों भरा है। दो हिस्सों में बंटे समाज को संभालना कोई आसान काम नहीं है। जिस तरफ ट्रम्प के कार्यकाल में उनके विरोध का सुर दिन प्रतिदिन बनाये रखा गया अब वही बिडेन के बारे में होने वाला है। सीनेट में हजारों प्रदर्शनकारियों ने घुस कर अपनी मंशा साफ़ कर दी है। ट्रम्प भी कह चुके हैं कि लड़ाई जारी रहेगी। उन्होंने भले ही हार स्वीकार कर ली है लेकिन साफ़ कहा है अभी तो लड़ाई की शुरुआत हुई है।

US Violence Capitol trump Supporters Protest Violent -washington-dc curfew

अमेरिकी नागरिक दो विचारधाराओं में बंट गए

बहरहाल, जिस तरह अमेरिका में नागरिक दो विचारधाराओं में बंट गए हैं उससे साफ़ दिखाई पड़ रहा है कि वहां गृह युद्ध जैसे हालात बन रहे हैं। ये हालात बाकी दुनिया पर भी व्यापक असर डालेंगे और ये बड़ी चिंता की बात होगी। अमेरिका को अपदस्थ करके चीन विश्व की सुपर पावर बनना चाहता है और अमेरिका के हालातों से पूरा फायदा उठाने की वो कोशिश करेगा।

- नीलमणि लाल

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