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नहीं रहे प्रधानमंत्री प्रिंस: शोक में डूबी पूरी दुनिया, हिल उठा ये पूरा देश

प्रिंस खलीफा, बिन सलमान अल-खलीफा के निधन की घोषणा बहरीन की सरकारी समाचार एजेंसी की ओर की गयी। बताया गया कि अमेरिका के मेयो क्लिनिक में खलीफा का इलाज चल रहा था।

Newstrack
Published on: 11 Nov 2020 11:53 AM GMT
नहीं रहे प्रधानमंत्री प्रिंस: शोक में डूबी पूरी दुनिया, हिल उठा ये पूरा देश
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नहीं रहे प्रधानमंत्री प्रिंस: शोक में डूबी पूरी दुनिया, हिल उठा ये पूरा देश

नई दिल्ली: दुनिया के अबतक के सबसे ज्यादा दिनों तक प्रधानमंत्री के पद पर रहने वाले बहरीन के प्रिंस खलीफा, बिन सलमान अल-खलीफा का बुधवार को 84 साल की उम्र में निधन हो गया। सलमान अल-खलीफा दुनिया में काफी चर्चित थे। उन्होंने 1971 में बहरीन की स्वतंत्रता के बाद से देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला हुआ था। प्रिंस खलीफा करीब 49 साल पीएम रहे।

मेरिका के मेयो क्लिनिक में ली अन्तिम सांस

प्रिंस खलीफा, बिन सलमान अल-खलीफा के निधन की घोषणा बहरीन की सरकारी समाचार एजेंसी की ओर की गयी। बताया गया कि अमेरिका के मेयो क्लिनिक में खलीफा का इलाज चल रहा था। बहरीन न्यूज एजेंसी ने कहा, 'रॉयल कोर्ट ने अपने रॉयल हाईनेस के प्रति शोक व्यक्त किया, जिनका आज सुबह अमेरिका के मेयो क्लिनिक में निधन हो गया है।' साथ ही न्यूज एजेंसी ने कहा कि देश में एक सप्ताह के राजकीय शोक की घोषणा की गई है।

Bahrain's PM Prince Khalifa dies

स्वदेश में ही दफनाने की रस्म होगी

पीएम प्रिंस खलीफा को दफनाने की रस्म अमेरिका से शव स्वदेश लाने के बाद होगी। कोरोना प्रतिबंधों के अनुरूप इस रस्म में शामिल होने वाले रिश्तेदारों की संख्या को सीमित रखा जाएगा। राजकीय शोक सप्ताह के दौरान झंडे को आधे मस्तूल पर फहराया जाएगा। वहीं, सरकारी मंत्रालयों और विभागों को तीन दिनों तक बंद रखा जाएगा।

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खलीफा का अपना एक निजी द्वीप भी था

प्रिंस खलीफा की ताकत और संपत्ति की झलक इस छोटे से देश में चारों ओर दिखाई पड़ती है। देश के शासक के साथ उनका चित्र कई दशकों तक सरकारी दीवारों की शोभा बढ़ाता रहा। खलीफा का अपना एक निजी द्वीप था जहां वह विदेशी आगंतुकों से मुलाकात करते थे।

Bahrain's PM Prince Khalifa dies-2

अरब क्रांति के दौरान लगे थे भ्रष्टाचार

प्रिंस खलीफा, खाड़ी देशों में नेतृत्व करने की पुरानी परंपरा का प्रतिनिधित्व करते थे, जिसमें सुन्नी अल खलीफा परिवार के प्रति समर्थन जताने वालों को पुरस्कृत किया जाता था। हालांकि उनके तौर तरीकों को 2011 के विरोध प्रदर्शन के दौरान चुनौती मिली थी। साल 2011 की अरब क्रांति के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हें हटाने की मांग भी उठी थी।

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